जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:हम सभ्यता की राह पर चलते हुए संकीर्णता को अपना चुके हैं
खबर है कि छोटू महाराज नामक व्यक्ति प्रवचन करते हुए लोकप्रिय होता जा रहा था
जयप्रकाश चौकसे खबर है कि छोटू महाराज नामक व्यक्ति प्रवचन करते हुए लोकप्रिय होता जा रहा था। उसके भक्तों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। हाल ही में ज्ञात हुए इस महाराज का असली नाम सीमानंद गिरी है और वह एक महिला है। क्या उसने पुरुष वेश में इसलिए धारण किया कि महिला को समाज गंभीरता से नहीं लेता। हमारे समाज में तो साध्वियां भी हुई हैं। साध्वियों पर कुमार अंबुज की कविता इस तरह है- 'मगर अब वे सूखी हुई नहरें हैं या तुलसी की पत्तियां, धार्मिक तेज ने सोख लिया उनका मानवीय ताप।
वे इतनी पूजनीय हैं कि अस्पृश्य हैं, उनका जन्म एक उल्लसित अक्षर की तरह हुआ था, और शेष जीवन, एक दीप्त वाक्य में बुझ गया।' कभी-कभी प्रेम भी अजीबोगरीब काम करता है। एक जमाने में शम्मी कपूर और गीता बाली की प्रेम कहानी सुर्खियों में थी। गीता बाली को अभिनय संसार में प्रवेश दिलाने वाले केदार शर्मा, शम्मी कपूर के साथ फिल्म बना रहे थे। फिल्म में गीता बाली के लिए कोई भूमिका नहीं बन पाई परंतु उसने हठ किया कि वह भी कोई भी भूमिका करेंगी। अतः उसे पुरुष वेश पहनाकर एक भूमिका में प्रस्तुत किया गया।
दर्शक पहली नजर में गीता बाली को पहचान गए और उन्हें लगा कि क्लाइमैक्स में गीता बाली अपने महिला स्वरूप में आकर फिल्म का पूरा समीकरण बदल देगी परंतु ऐसा नहीं हुआ और दर्शक नाराज हो गए। सामाजिक मुद्दा यह है कि प्रवचन सुनने की अभिलाषा इतनी तीव्र क्यों है? क्या हम आत्मविश्वास खो चुके हैं? हम हमेशा यह चाहते हैं कि कोई अन्य हमारे लिए सोचे, हमारा कार्य करें और समय आने पर हमारे लिए अपने प्राण त्याग दें। सब क्षेत्रों में लोकप्रियता प्राप्त करने के साधनों में विविधता होते हुए भी महिला की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।
एक घटना इस तरह है कि कुछ विदेशी हिमालय आरोहण के लिए आए। यह घटना एडमंड हिलेरी और तेनजिंग के आरोहण के बाद की है। हिमालय पर जाने के लिए शेरपा की मदद ली जाती है। शेरपा वर्ग हिमालय को अपने हाथ की हथेली की तरह जानता है। उस समय शेरपा की सेहत ठीक नहीं थी। अतः शेरपा की पुत्री पुरुष वेश धारण करके पर्वतारोही दल के मार्गदर्शन के लिए जाती है। चढ़ाई के एक कठिन मोड़ पर महिला शेरपा का असली स्वरूप उजागर होता है। आगे की कथा पर्वतारोही और महिला शेरपा की प्रेम कथा है।
गुलजार की संजीव कुमार अभिनीत फिल्म 'अंगूर' में संजीव की पत्नी उससे पूछती है कि क्या महिला और पुरुष की विचार प्रक्रिया में अंतर होता है? इस अंतर को लेकर बहस तीव्र हो जाती है। बहरहाल लिंग भेद पर जार्ज बर्नार्ड शा के नाटक में प्रयुक्त संवाद का अर्थ यह है कि 'महिला पुरुष की तरह हो नहीं सकती। अंतर केवल शरीर में नहीं वरन विचार प्रक्रिया में है।' सदियों से महिला को पुरुष से कमतर होने की बात इतनी बार दोहराई गई है कि अब महिलाओं ने भी उस पर विश्वास कर लिया है। गौरतलब है कि सारे अपशब्द महिला केंद्रित हैं।
आचार्य रजनीश की निकटतम अनुयायी मां शीला पर भी आचार्य रजनीश की हत्या का आरोप लगाया गया था। जर्मन स्थित अदालत ने उन्हें निर्दोष पाया। चुनाव केंद्रित राजनीति में भी महिला मतदान निर्णायक बनता जा रहा है। संसद में 33% महिला होने की बात कभी हो नहीं पाई। कुछ महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन हैं और उन्होंने साहसी कार्य भी किए हैं। सुखद आश्चर्य है कि जंगल में बसे आदिवासी वर्ग में आज भी महिला और पुरुष को समान अधिकार प्राप्त है। हम सभ्यता की राह पर चलते हुए संकीर्णता को अपना चुके हैं।