'स्वच्छ भारत' : एक संकल्पित स्वप्न

देशवासियों के स्वच्छता प्रेम व विचार को दर्शाता है।

Update: 2021-11-08 04:40 GMT

प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध अभी भी कहीं न कहीं कागजों और भाषणों में ही नजर आता है। इस पर कड़े नियम अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि प्लास्टिक ही गंदगी की मूल जड़ है…


स्वच्छ भारत और स्वच्छता अभियान, एक देश को स्वच्छ बनाने का संकल्प और दूसरा देश को स्वच्छ भारत के रूप में देखने का स्वप्न, हर एक भारतीय अपनी आंखों व जहन में लेकर सोता व उठता है। स्वच्छ भारत अभियान जिसे स्वच्छ भारत मिशन के नाम से भी जाना जाता है, यह भारत सरकार के द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय स्तर का एक ऐसा स्वच्छता अभियान है जिसका उद्देश्य भारत की अधारभूत संरचनाओ तथा सड़कों, नदियों और गलियों व वातावरण आदि को साफ-सुथरा करना है। इस अभियान का शुभारंभ देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्तूबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार करना है। आज परिस्थितियां इस प्रकार की हंै कि किसी को स्वच्छ भारत अभियान के विषय में बताने की आवश्यकता नहीं है। सभी जानते हैं कि क्या है स्वच्छता अभियान और स्वच्छ भारत। बच्चे-बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक जन-जन के जेहन में एक ही सपना पलता है और वो सपना स्वच्छ भारत के संकल्प को साकार करने का ही सपना है। भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति का वरदान एक आदर्श रूप में प्राप्त है। लेकिन चिंतन का विषय यह है कि पता तो सब को है, पर करेगा कौन? क्या सरकार करेगी? या सरकार जाने के बाद दूसरी सरकार आने पर यह अभियान भी बंद बक्से में कैद हो जाएगा। सोचने का विषय है कि क्या गंगा सफाई से भारत साफ हो जाएगा या मिशन ही चलेंगे, यह चिंतनीय है। भारत की संस्कृति में प्राचीन काल से ही प्रत्येक त्योहार व पर्व का गहरा संबंध प्रकृति और स्वच्छता से रहा है, चाहे दिवाली हो या नवरात्र पर्व हो या नव वर्ष का आगमन। प्रत्येक त्योहार के आने पर साफ-सफाई की परंपरा और संस्कृति रही है। यहां तक कि आज पूरा देश स्वतंत्रता के 75 वर्षों के रूप में आयोजित आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम को भी एक प्रकार से स्वच्छता श्रमदान कार्यक्रम के रूप में मना रहा है जो कि देशवासियों के स्वच्छता प्रेम व विचार को दर्शाता है।

इसी विचार से आगे बढ़ते हुए आज देश महात्मा गांधी जी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को साकार करने के करीब नजर आता है। देश को स्वच्छ बनाने की होड़ में तरह-तरह की नीतियां, विधियां, कार्यक्रम इत्यादि अमल कराई जा रही हैं। सरकारी उपक्रमों में आयोजित स्वच्छ भारत पखवाड़ा उनमें से एक है। परंतु सवाल यह उठता है कि क्या इस अभियान को सफल बनाने में केवल सरकार का ही पूर्ण उत्तरदायित्व एवं जि़म्मेदारी है? आज जितने भी देश भारत से हर मायने में उच्च हैं, उनके विकास एवं प्रगति में उस देश की जनता का बहुमूल्य योगदान है। बाहर के देशों में जाकर हम भारतवासी वहां की स्वच्छता की तारीफ करते नहीं थकते। विदेश में उनके कानूनों का बराबर पालन करते हैं। भारत की विदेश से तुलना करते हैं एवं अपने ही देश में फैली गंदगी, स्वच्छता के अभाव के लिए सरकार को दोषी मानते हैं। क्या समाज की, इस देश के हर नागरिक की कोई जि़म्मेदारी नहीं है। बिल्कुल जि़म्मेदारी एवं जवाबदेही भी है। देश के हर नागरिक का यह फर्ज बनता है कि वह अपने घर को ही नहीं, अपने आस-पड़ोस, अपने नगर वातावरण को स्वच्छ रखने में जितना हो सकता है, उतना योगदान दे। गंदगी को न फैलाए, कूड़ेदान में ही कचरा फैंके तथा अपने परिवार एवं अपने बच्चों को सफाई की तरफ जागरूक एवं प्रेरित करे। स्वच्छता ही अच्छे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। अगर हमारा वातावरण स्वच्छ है, हवा-पानी साफ है, तो उसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। अगर हम छोटी उम्र से ही बच्चों के मन में यह विचार एवं मूल्य डालेंगे, तभी उनका और हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित होगा। कहा भी जाता है कि प्रत्येक कार्य मजबूत दृढ़ निश्चय व इच्छा शक्ति से ही संभव है, तो ऐसा ही एक दृढ़ निश्चय व संकल्प प्रत्येक देशवासी को अपने दैनिक जीवन की व्यावहारिकता में लाना होगा।

आवश्यकता सरकारी कड़ेपन की भी महसूस की जाती है। प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध अभी भी कहीं न कहीं कागजों और भाषणों में ही नजर आता है। इस पर कड़े नियम अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि प्लास्टिक ही भारत में सबसे ज्यादा गंदगी की मूल जड़ है। इस जड़ को उखाड़ कर इसके स्थान पर वैकल्पिक नए प्रयोग व शोध से कपड़े के थैलों व प्रकृतिमित्र वस्तुओं को व्यवहार में लाना होगा। इस बात की भी सख्त आवश्यकता है कि स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण दैनिक विषयों को प्राथमिकता के साथ स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए ताकि बच्चे स्वच्छता के महत्व को अपने बाल्यकाल से ही समझ कर राष्ट्र हित में जीवनपर्यंत के लिए अपना सकें। देश में स्वच्छता शिक्षा को अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि इस अभियान को सफल बनाने में युवा वर्ग की भी अहम भूमिका है। युवा वर्ग में देश के प्रति प्रेम है, देश को उन्नति के पथ पर ले जाने की क्षमता है एवं शिक्षित युवा वर्ग इस अभियान के देश पर होने वाले प्रभाव को भली-भांति जानता है। आज के युवा आशावादी भी हैं। एक बहुत प्रचलित कहावत है कि 'बूंद बूंद से ही सागर भरता है'। सच ही तो है, अगर इस देश का हर नागरिक स्वच्छता की ओर सचेत रहे तथा अपनी भूमिका की तरफ सजग रहे तो वे दिन दूर नहीं जब भारत का 'क्लीन इंडिया-ग्रीन इंडिया' का सपना साकार होगा।

ऐसा नहीं है कि समाज जागरूक नहीं है। समाज के विभिन्न वर्गों ने आगे आकर स्वच्छता के इस जन अभियान में हिस्सा लिया है और अपना योगदान दिया है। सरकारी कर्मचारियों से लेकर जवानों तक, बालीवुड के अभिनेताओं से लेकर खिलाडि़यों तक, उद्योगपतियों से लेकर अध्यात्मिक गुरुओं तक, सभी ने इस महान काम के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। देश भर के लाखों लोग सरकारी विभागों द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता के इन कामों में आए दिन सम्मिलित होते रहे हैं। इस काम में एनजीओ और स्थानीय सामुदायिक केन्द्र भी शामिल हैं। नाटकों और संगीत के माध्यम से सफाई-सुथराई और स्वास्थ्य के गहरे संबंध के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर पूरे देश में स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं। स्वच्छ भारत एक जन-आंदोलन का रूप ले चुका है क्योंकि इसे जनता का अपार समर्थन मिला है। बड़ी संख्या में नागरिकों ने भी आगे आकर साफ-सुथरा भारत बनाने का प्रण किया है। स्वच्छ भारत अभियान के आरंभ के बाद गलियों की सफाई के लिए झाड़ू उठाना, कूड़े-कर्कट की सफाई, स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित करना और अपने चारों ओर स्वास्थ्यवर्धक वातावरण बनाना अब जनता की प्रकृति बन गई है। इस भावना को दृढ़ करना होगा।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं
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