आदित्य नारायण चोपड़ा: अब आसमान में चीनी जासूसी गुब्बारे लगातार फोड़े जा रहे हैं और अमरीका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश चीन के खिलाफ आग उगल रहे हैं, इससे ड्रैगन पूरी तरह से बौखला चुका है। भारत की रक्षा तैयारियों से भी वह काफी परेशान हो चुका है। हर तरफ से तीखी प्रतिक्रियाओं से परेशान चीन चौतरफा आक्रामक कदम उठा रहा है। कुछ दिन पहले दक्षिणी चीन सागर के द्वीपों को लेकर हुए विवाद के बाद अब उसने भारत के इलाके अक्साई चिन में एक बार फिर बड़ी चाल चल दी है। अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत चीन अब भारत से लगती एलएसी के करीब तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में रेलवे लाईन बिछाने की योजना पर काम कर रहा है। यह रेलवे लाइन भारत के लिए काफी चिन्ता की बात है, इस बात का अंदाजा इससे लग सकता है कि अक्साई चिन से होकर गुजरने वाला शिजियांग तिब्बत राजमार्ग ही भारत और चीन के बीच तनाव भड़कने का कारण बना था और इसके बाद 1962 में इसको लेकर युद्ध हो गया था।तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के विकास और सुधार आयोग ने अपनी रेलवे नेटवर्क विस्तार की योजना का खुलासा कर दिया है। जिसके तहत 2025 तक मौजूदा 1400 किलोमीटर से 4 हजार किलोमीटर तक और 2035 तक 5 हजार किलोमीटर तक रेलवे नेटवर्क का विस्तार मार्गों को बिछाने की योजना भी शामिल है जो चीन से लगती भारत और नेपाल की सीमा के करीब से गुजरेंगे। चीन की प्रस्तावित रेलवे लाइन तिब्बत से शिगात्से से शुरू होकर उत्तर पश्चिम में नेपाल सीमा तक जाएगी। दूसरी तरफ यह अक्साई चिन से होकर गुजरते हुए शििजयांग प्रांत के होटान में खत्म होगी। यह रेलवे लाइन अक्साई चिन के रोटोग और चीन के इलाके में पैगोंग झील के पास से होकर गुजरेगी। चीन रेलवे लाईन नेटवर्क के विस्तार से दो उद्देश्य पूरे करना चाहता है। एक तो चीन सीमावर्ती क्षेत्रों को एकीकृत करने के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर सीमा पर तेजी से सेना जुटाने की क्षमता विकसित करके सीमा सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहता है। दूसरी तरफ वह तिब्बत के आर्थिक एकीकरण में तेजी लाना चाहता है।अक्साई चिन का ये इलाका तिब्बती पठार के उत्तर-पश्चिम में है, ये कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे का इलाका है। अगर ऐतिहासिकता में देखा जाए तो ये इलाका भारत को मध्य एशिया से जोड़ने वाले सिल्क रूप का हिस्सा था। सैकड़ों सालों तक ये मध्य एशिया और भारत के बीच संस्कृति, बिजनेस और भाषा को जोड़ने का माध्यम रहा है, अक्साई चिन लगभग 5,000 मीटर ऊंचाई पर स्थित एक नमक का मरुस्थल है। इसका क्षेत्रफल 42,685 वर्ग किलोमीटर है, ये इलाका निर्जन है यहां स्थाई बस्तियां नहीं हैं। चीन ने अक्साई चिन के इलाके पर 1950 के दशक में कब्जा कर लिया था। भारत लंबे समय तक इस मामले से अनभिज्ञ रहा, 1957 में भारत को पता चला कि इलाके में चीन ने सड़क निर्माण तक शुरू कर दिया है। भारत ने इसकी खबर मिलते ही विरोध जताया। भारत के विरोध जताने के साथ इस इलाके को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे विवाद की शुरुआत हुई। बाद में ये विवाद युद्ध में भी बदला जब चीन ने भारत पर हमला किया था, इस इलाके में बनाई गई सड़क को पहली बार चीन ने 1958 में अपने नक्शे में दिखाया था। ये भारत द्वारा जताए गए विरोध के खिलाफ चीनी दादागिरी थी।संपादकीय :महापौर चुनाव पर कशमकशनये राज्यपालों की नियुक्तिनिवेशकों को भाया उत्तर प्रदेशबाल विवाह : असम में बवालहम भारत के वासीइंसान हों या जानवर- आशियाना सबको चाहिएअब चीन एक बार फिर दादागिरी दिखा रहा है और भारत पूरी तरह से चौकस हो चुका है। यद्यपि चीन की इन खबरों की 33 महीनों से सीमा पर जारी गतिरोध के बीच मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के हथकंडे के रूप में भी देखा जा रहा है। भारत ने भी चीन की चुनौती का सामना करने के लिए अपनी सरहदों को मजबूत बनाने का काम शुरू कर दिया है। चीनी सीमा के निकट रणनीतिक महत्व वाले इलाकों में भारत भी रेलमार्ग बिछा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में भारतीय रेलवे की मौजूदगी चार प्रस्तावित रेलमार्गों से दर्ज होगी। जिनमें से तीन उत्तर पूर्व और एक उत्तर में स्थित है। यह रेल मार्ग भारतीय रेल नेटवर्क को 1352 किलोमीटर तक लेकर जाएंगे। यह रेल मार्ग पूरा होने के बाद चीन के किंग हाई-तिब्बत मार्ग को पछाड़कर दुनिया का सबसे ऊंचा रेलमार्ग बन जाएगा। अरुणाचल में भी तेजी से सड़कों और पुलों का निर्माण जारी है। सियांग में क्लास-70 ब्रिज भारत की सुरक्षा तैयारी का हिस्सा है। इस पुल से 70 टन वजन के सैन्य उपकरण सीमा क्षेत्रों में आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले महीने ही इस पुल का उद्घाटन किया था। बीते दो सालों में सीमावर्ती इलाकों में 200 से ज्यादा प्रोजैक्ट तैयार हो चुके हैं। इसके अलावा भारतीय वायुसेना ने लगातार अपनी ताकत में जबरदस्त इजाफा किया है। भारतीय वायुसेना के पास अब हर तरह के लड़ाकू विमान हैं। बेंगलुरु में आयोजित एयर शो में भारतीय सैन्य ने अपना दमखम दिखा दिया है। चीन की चुनौतियों का मुकाबला हम अपनी रक्षा मजबूत करके ही कर सकते हैं। रक्षा क्षेत्र में हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। भारत को सीमाओं पर शांति बनाए रखने के लिए प्रचंड ताकत की जरूरत है जो हम हासिल कर रहे हैं। चीन को भी इस बात का अहसास है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं बल्कि 2023 का भारत है।
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