चीन को वापस जाना ही होगा

भारत-चीन के बीच जो सैनिक तनाव मुक्ति की प्रक्रिया चल रही है उसका मुख्य मुद्दा यह है कि

Update: 2021-02-21 15:49 GMT

भारत-चीन के बीच जो सैनिक तनाव मुक्ति की प्रक्रिया चल रही है उसका मुख्य मुद्दा यह है कि लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा की स्थिति पुनः वैसी ही बनी रहे जैसी वह 2 मई, 2019 से पूर्व थी। भारत यह स्थिति बहाल करने के लिए कृत संकल्प है क्योंकि इसने उस पेगोंग झील के दोनों तरफ पुरानी स्थिति पर चीनी सेना को लौटाने का प्रण पूरा कर दिया है जहां चीनी सेना ने घुसपैठ की थी।

भारत ने यह कार्य कूटनीतिक व सैनिक वार्ताओं के दौर चला कर ही किया है जिससे उम्मीद बंधती है कि नियन्त्रण रेखा के अन्य हिस्सों या इलाकों में भी जहां- जहां चीनी सेना ने अतिक्रमण किया था वे भी खाली करा लिये जायेंगे। चीन से सैनिक कमांडरों की वार्ताओं के दस से अधिक दौर हो चुके हैं और ताजा दौर जारी है अतः यह सर्वप्रथम यह स्पष्ट होना चाहिए कि चीन की स्थिति एक आक्रमणकारी देश की है जिसके कब्जे में 1962 से ही भारत के लद्दाख की ही 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि दबी पड़ी है।

इससे एक तथ्य यह स्पष्ट होता है कि चीन सीमा विवाद के मामले में भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाये रखना चाहता है। इससे उसकी नीयत का अन्दाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है। चीन के कब्जे में जो 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि है उसे 'अक्साई चिन' कहा जाता है । परन्तु 1963 में चीन को पाकिस्तान के नामुराद हुक्मरानों ने 5400 वर्ग किलोमीटर का अपने कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा भी खैरात में दे दिया था और चीन के साथ नया सीमा समझौता कर लिया था ।

यह सीमा समझौता पूरी तरह नाजायज है क्योंकि पाकिस्तान ने उस इलाके को अपने भौगोलिक क्षेत्र में माना जो कानून के हर नुक्ते से और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार पाकिस्तान का वैध हिस्सा नहीं है और 1947 में हुए भारत-पाक बंटवारे की लकीरों में जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा था और इस पूरी रियासत का 26 अक्तूबर, 1947 को भारतीय संघ में संवैधानिक तौर पर विलय हो गया था।

जाहिर है कि यह 5400 वर्ग कि.मी. इलाका भी भारतीय संघ का ही हिस्सा है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि कूटनीतिक स्तर पर चीन को उसकी हैसियत का इकरार कराने की कोशिशें भारत की तरफ से लगातार की जाती रहनी चाहिएं जिससे लद्दाख में की गई उसकी कार्रवाई पर उसे न केवल शर्मिन्दा किया जाये बल्कि उसे चोरों (पाकिस्तान) का गवाह भी साबित किया जाये। मगर लद्दाख के मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह घटा है कि चीन ने पहली बार स्वीकार किया है कि विगत वर्ष 15 जून को इसकी गलवान घाटी में उसके सैनिकों का भारतीय सैनिकों के साथ हिंसक संघर्ष हुआ था जिसमें उसके एक बटालियन कमांडर समेत चार सैनिक मारे गये थे और पांचवां कर्नल रैंक का एक अफसर गंभीर रूप से घायल हो गया था। यह स्वीकारोक्ति घोषणा करती है कि चीन ने अपना अतिक्रमणकारी या आक्रमणकारी रवैया कबूल कर लिया है।

15 जून, 2019 को हुए इस संघर्ष में भारत के 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे जिनमें कर्नल 'सन्तोष बाबू' भी शामिल थे। इससे तसदीक होती है कि चीनी सैनिक अनधिकृत रूप से भारतीय इलाके में आना चाहते थे जिसका पुरजोर विरोध जांबाज भारतीय सैनिकों ने किया था और वीरगति का वरण किया था। इसका यह निष्कर्ष निकालना अब किसी भी सैनिक या कूटनीतिक रणनीतिकार के लिए कठिन नहीं हो सकता कि चीन ने विगत वर्ष मई में लद्दाख की पूरी नियन्त्रण रेखा की स्थिति बदलने का सैनिक अभियान चलाया था ।

मगर रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने तभी पूरे देश को सचेत कर दिया था कि चीनी सैनिक अच्छी-खासी संख्या में सीमा के पार भारतीय क्षेत्र में घुस आये हैं। उनके इस कथन ने पूरे देश को सावधान की मुद्रा में ला दिया और सैनिक स्तर पर भारत ने ऐसी चौकसी बरती की नवम्बर का महीना आते-आते भारतीय फौजों ने तिब्बत की कैलाश शृंखला के ऊंचे ठिकानों पर अपने तम्बू गाड़ दिये।

बेशक यह भारतीय इलाका ही था परन्तु सैनिक शिष्टाचार के नियमों को मानने वाले भारत के सामने चीन की आक्रमणकारी प्रवृत्ति का जवाब देने के लिए एेसा करना जरूरी हो गया था। यह ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया था । इससे यह भी सिद्ध होता है कि चीन एक 'सैनिक दिमाग' वाला देश है जो भारत के 'पंचशील' सिद्धान्तों की कोई कद्र करना नहीं जानता।

क्या यही अच्छा होता अगर पचास के दशक में भारत ने तब सख्त रुख अपनाया होता जब चीन ने मुस्लिम बहुल सिकियांग प्रान्त पर कब्जा किया था और इसके शहर 'काशगर' में भारतीय वाणिज्य दूतावास को जबरन बन्द कर दिया था। अब यह काशगर से इस्लामाबाद तक के लिए रेलगाड़ी चला रहा है। जबकि अक्साई चिन से लेकर सिक्यांग तक के इलाके में महाराजा जम्मू-कश्मीर के राजसी चिन्ह आज तक मौजूद हैं।

लद्दाख के सन्दर्भ में हमें पूरी तरह दिमाग साफ करके ऐसी रणनीति बनानी होगी कि चीन दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाली भारतीय सड़क में कहीं भी अवरोध पैदा न कर सके और इसके करीब देवसंग के पठारी मैदानी इलाकों में भारतीय क्षेत्र के 18 कि.मी. अन्दर तक जो इसकी सेनाएं आ गई हैं वे भी चुपचाप वापस पुरानी जगहों पर लौट जाये, साथ ही पूरी नियन्त्रण रेखा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती पूर्ववत जारी रहे।


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