अहंकार के नशे में चूर चीन: नई आर्थिक और सैनिक ताकत में मदमस्त होकर चीन जमा रहा है हर किसी पर धौंस

अहंकार के नशे में चूर चीन

Update: 2021-05-18 06:24 GMT

विजय क्रांति : चीन सरकार के सबसे महत्वपूर्ण मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के एक ताजा संपादकीय ने दुनिया भर के कूटनीतिक और रणनीतिक प्रेक्षकों को चौंका दिया है। इस समाचार पत्र और उसकी संपादकीय टिप्पणियों को चीन के कम्युनिस्ट शासकों की नीति का आधिकारिक हिस्सा माना जाता है। इस संपादकीय में ग्लोबल टाइम्स ने चीन को एक सुपर पावर बताते हुए अमेरिका को धमकी दी है कि दक्षिणी चीन सागर को लेकर अगर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ तो उसमें अमेरिका की हार होगी। चीन ने यह धमकी जापान के दक्षिणी सागर क्षेत्र में चल रहे जापान, आस्ट्रेलिया और फ्रांस के सैनिक अभ्यास में अमेरिकी सेना के भी शामिल होने पर दी है। चीन की ओर से यह धमकी एक ऐसे मौके पर आई है, जब दुनिया भर में वुहान वायरस के हमले के कारण चीन के खिलाफ सामूहिक अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की संभावनाएं बढ़ रही हैं। चीन की नई आर्थिक और सैनिक ताकत उसके कम्युनिस्ट नेताओं के सिर पर चढ़ गई है। इस ताकत में मदमस्त होकर चीन सरकार हर किसी देश पर धौंस जमा रही है और छुट्टे सांड की तरह हर किसी भी देश से भिड़ने में लगी हुई है। दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में बरसों तक आतंक मचाने के बाद अब चीन की नौसेना प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अरब सागर और अदन की खाड़ी जैसे दूरस्थ समुद्रों में नौसैनिक अड्डे बनाकर पूरी दुनिया के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर रही है।

बीजिंग की हेकड़ी: चीन ने पूरे दक्षिणी चीन सागर को अपना इलाका घोषित कर रखा

बीजिंग की हेकड़ी का यह हाल है कि उसने चीन की मुख्य भूमि से दो हजार किमी दूर तक के पूरे दक्षिणी चीन सागर को अपना इलाका घोषित किया हुआ है। इनमें मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, जापान, ब्रुनेई और आस्ट्रेलिया समेत कई देश हैं। इनमें से कई देशों के सीधे नियंत्रण वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर घुसकर चीनी नौसेना ने कई द्वीपों पर कब्जा जमा लिया है और कई जगह तो समुद्र में उभरी चट्टानों के आसपास लाखों टन पत्थर मिट्टी डालकर अपनी नौसेना के ठिकाने और वायुसेना के लिए हवाई पट्टियां भी विकसित कर ली हैं। चीन का दावा है कि पूरे दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के गर्भ में छिपे तेल और खनिज संपदा पर केवल उसी का अधिकार है।
अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने चीन को बढ़ावा देकर बहुत बड़ी गलती की

पश्चिमी देशों को अब समझ आ रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और उनके सहयोगी हेनरी किसिंजर ने चीन को बढ़ावा देकर बहुत बड़ी गलती की। अमेरिका ने तब तत्कालीन सोवियत संघ से डरकर कम्युनिस्ट चीन को ताइवान की जगह संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बनाने, सुरक्षा परिषद में उसे वीटो अधिकार देने, अपनी आधुनिक तकनीक और निवेश तथा अपने बाजार उपलब्ध कराने की जो गलती की, वह आज पूरी दुनिया को बहुत महंगी पड़ रही है। आज चीन ने लगभग सभी अमीर देशों की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और यहां तक कि वहां के मीडिया में गहरी सेंध लगा ली है। उसने छोटे और कमजोर देशों को अपनी बेल्ट-एंड-रोड योजना के तहत बेतहाशा उधार देकर और वहां के भ्रष्ट नेताओं को साधकर उनकी घरेलू और विदेश नीति पर भी गहरी जकड़ जमा ली है। हालांकि इन देशों के भीतर अब चीन के विरुद्ध आवाज उठने लगी है, लेकिन इन देशों के वोट का इस्तेमाल करके चीन ने संयुक्त राष्ट्र समेत कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों को पंगु बना डाला है।
चीन के नेताओं की दादागिरी लंबी गुलामी की तिलमिलाहट की अभिव्यक्ति है

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेताओं की मौजूदा दादागिरी उस तिलमिलाहट की अभिव्यक्ति है, जो सदियों की लंबी गुलामी, दूसरे देशों के हाथों पिटाई और अपमान से जन्मी हीनभावना तथा अपने पापों के कारण पैदा हुई असुरक्षा से जन्मी है। 1912 में जब पहली बार हान जाति ने चीनी गणराज्य की स्थापना की, उस समय चीन एक बहुत छोटा सा देश था, जिसके कई हिस्से तत्कालीन रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, पुर्तगाल और फ्रांस के कब्जे में थे। इससे पहले तीन सौ साल से हान चीनी मंचूरियन राजाओं के और उससे भी कई सौ साल पहले से मंगोल राजाओं के अधीन थे।
ग्रेट वाल ऑफ चाइना: मंगोलों, तुर्कों, तिब्बतियों से बचने के लिए चीन की सीमाओं की चारदीवारी थी

आज चीन जिस 21 हजार 196 किमी लंबी ग्रेट वाल ऑफ चाइना पर बहुत गर्व करता है, असल में वह पिछले ढाई हजार साल से चीन की सीमाओं की चारदीवारी थी, जिसे मंगोलों, तुर्कों, हूणों, तातारों, तिब्बतियों और हुई समेत दूसरी जातियों के हमलों से बचने के लिए बनाया गया था। चीनी हान जाति आज खुद को दुनिया की सबसे सभ्य जाति और केंद्रीय राजशक्ति मानती है। कम्युनिस्ट चीनी सरकार हान जाति के इसी सपने को पूरा करने के लिए विश्व विजय का अश्वमेघ चला रही है। इस विश्व विजय अभियान के तहत 1912 के बाद पहले तो चीन ने दक्षिणी मंगोलिया (1919) और मंचूरिया (1935) पर कब्जा करके उन्हेंं चीन में मिला लिया, फिर माओ के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार ने पूर्वी तुर्किस्तान (1949) को हथिया लिया, जिसे शिंजियांग नाम दिया गया। इसके तुरंत बाद 1950 में तिब्बत पर हमला करके उसे हराया और 1951 में उसे जबरन एक संधि पर हस्ताक्षर करवा कर तिब्बत को चीन का हिस्सा बना लिया। इन जबरन कब्जों का परिणाम है कि आज का चीन 1912 वाले चीन का चार गुना है और उसकी सीमाएं नौ ऐसे देशों रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और उत्तरी कोरिया के साथ मिलती हैं, जो पूरे इतिहास में कभी भी चीन के पड़ोसी नहीं रहे।
तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के कारण चीनी सेनाएं भारत की सीमा तक आ पहुंचीं

1951 में तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के कारण ही चीन की सेनाएं भारत, नेपाल और भूटान की सीमा तक आ पहुंचीं। तब से इन देशों के कई सीमावर्ती हिस्सों पर चीन अपना दावा इस आधार पर जता रहा है कि ये इलाके कभी तिब्बत का हिस्सा थे। तिब्बत, शिंजियांग और दक्षिणी मंगोलिया में अपने फौजी दबदबे और भयंकर पुलिस दमन के बावजूद चीन न तो इन देशों की जनता का दिल जीत पाया है और न वहां आजादी की ललक को खत्म कर पाया है। चीन के कम्युनिस्ट शासक पिछले 72 साल से खुद चीन के भीतर लोकतंत्र के समर्थन में उठने वाली आवाजों को कुचलने, मुस्लिम और ईसाई धर्मावलंबियों और फालुन-गांग जैसे लोकप्रिय आध्यात्मिक संगठनों का गला घोंटने तथा पार्टी के भीतर की गंभीर गुटबाजियों पर अंकुश लगाने में हलकान हुए पड़े हैं।
( लेखक चीन मामलों के विशेषज्ञ एवं सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं )
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