यह जांच एक तरह से उनकी सादगी और पार्टी समर्पण को अलंकृत करते हुए उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव के लिए घोषित तौर पर अपना चेहरा बना रही है। दूसरे यह कि आगामी चुनावों तक अब सरकार की भाषा, वेशभूषा और आचरण में परिवर्तन आएगा। सरकार के दम पर अगली सत्ता और संगठन में अनुशासन व समर्पण से रिपीट होने का मंजर खड़ा किया जाएगा। भाजपा ने इतिहास टटोलने के बजाय भविष्य बचाने के लिए शीर्षासन करते हुए जो संकेत दिए हैं, उनसे प्रतीत होता है कि सरकारी फैसलों की दिशा बोल्ड होगी और पार्टी की दशा को कमजोर कर रहे नेताओं से दो टूक बात या उन्हें दरकिनार करने की रात शुरू होगी। ऐसे में भाजपा की जांच परख किसी बड़ी खाल उतारने के बजाय 'खाल बचाने' की परिस्थिति में बीती को बिसार देने में घर और बाहर को अधिक नकारात्मक संकेत देने से बच रही है। यहां न तो उत्तराखंड जैसे परिवर्तनों की अनुगूंज पैदा होगी और न ही गुजरात के पैमाने लागू होंगे। भाजपा अपनी सत्ता में आगे बढ़कर कुछ प्रयोग कर सकती है या सरकार के रुतबे में प्रकाश भर सकती है। यह अपनी ही सरकार को पिछले सालों के मुकाबले अंतिम वर्ष को सफलता के प्रतिफल में देखने की कसौटी है। जाहिर है अब हिमाचल के फलक पर ऐसे इरादों की बरसात होने जा रही है, जो विभिन्न वर्गों, क्षेत्रों, प्रशंसकों, कर्मचारियों, व्यापारियों, अधिकारियों और कारोबारियों को आकर्षित कर सकती है
अगले साल में जयराम के बोल्ड फैसले क्या होंगे, अब इस पर निगाहें रहेंगी क्योंकि इनमें से अधिकांश राजनीतिक या केंद्र के प्रश्रय में लिए जाएंगे। अब तक राजनीतिक फैसले लेने वालों में वीरभद्र सिंह व प्रेम कुमार धूमल को याद किया जाता है, तो क्या जयराम भी प्रदेश की राजनीतिक संरचना को अपने तौर पर संबोधित करेंगे। अभी हाल ही में मंडी संसदीय क्षेत्र में चुनावी परिपाटी ने उन्हें वीरभद्र सिंह की विरासत के सामने परखा है और इसीलिए वहां संवेदनाओं का मुद्दा सामने आया। यानी मंडी को मुख्यमंत्री चाहिए जैसी तस्वीर में वह एक बड़े नायक रहे, लेकिन अपने राजनीतिक अधिकारों से सड़क पर खड़े कांगड़ा के सिर पर हाथ न रखा तो पुनः वीरभद्र सिंह की विरासत टकराएगी। क्या इसका हल कांगड़ा एयरपोर्ट का विस्तार, धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा, मंत्रिमंडल में बड़े कद के मंत्री व लटकी फोरलेन परियोजनाओं को किसी मुकाम तक पहुंचाने से प्रदेश की राजनीति का सशक्तिकरण होगा। सत्ता व सत्तापक्ष के जिन आंकड़ों से भिन्न उपचुनावों की हार का हिसाब है, उनके सामने पार्टी के भीतर का असंतोष भी है। यहां पद और पदक एकतरफा रहेंगे, तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की विरासत का भी अपमान माना जाएगा। क्या प्रदेश की सरकार डबल इंजन की यात्रा में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की प्रतिष्ठा को छवि में उतार पाई। कुछ सपने तो केंद्रीय पलड़े में अनुराग ठाकुर के साथ भी हैं, तो इस एहसास को बटोरे बिना डबल इंजन की गति हासिल करना कठिन होगा।