महंगाई पर नकेल
अब केंद्र सरकार महंगाई को लेकर गंभीर दिखने लगी है। इस पर काबू पाने के लिए कुछ कदम भी उठाने शुरू कर दिए हैं। पहले पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क कम किया, राज्य सरकारों को वैट कम करने को कहा और अब खाद्यान्न की महंगाई पर रोक लगाने के उपाय आजमा रही है।
Written by जनसत्ता: अब केंद्र सरकार महंगाई को लेकर गंभीर दिखने लगी है। इस पर काबू पाने के लिए कुछ कदम भी उठाने शुरू कर दिए हैं। पहले पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क कम किया, राज्य सरकारों को वैट कम करने को कहा और अब खाद्यान्न की महंगाई पर रोक लगाने के उपाय आजमा रही है। गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी गई है। केवल उन्हीं देशों को गेहूं निर्यात किया जाएगा, जो इसकी मांग करेंगे। इसी तरह चीनी का निर्यात रोक दिया गया है। सोयाबीन और सूरजमुखी के आयात को दो वित्त वर्षों तक शुल्क मुक्त करने का नया फैसला किया गया है।
इससे उम्मीद जताई जा रही है कि खाद्यान्न संकट पैदा नहीं होगा और खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगेगा। पिछले कुछ महीनों में खाद्य तेलों की कीमत दो सौ रुपए के आसपास पहुंच गई है। इसे लेकर स्वाभाविक ही लोगों में चिंता दिखने लगी है। ये कुछ फौरी कदम हैं, जिनसे तात्कालिक राहत की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि थोक और खुदरा महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई है। महंगाई की सकल दर में इन कदमों से कितनी कमी आएगी, देखने की बात है। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में न केवल कच्चे तेल, बल्कि खाद्यान्न की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है, इसलिए वहां से आयात होने वाले सोयाबीन और सूरजमुखी को शुल्क मुक्त करने से कीमतों का बोझ ज्यादा नहीं पड़ेगा।
इस साल समय से पहले गर्मी पड़ने की वजह से गेहूं और सरसों की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनका उत्पादन कम हुआ है। इसलिए सरकार ने एहतियातन गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। देश की ज्यादातर आबादी सरसों और मूंगफली का तेल खाती है। सरसों का उत्पादन पिछले साल भी कम हुआ था, जिसका असर तेल की कीमतों पर देखा गया। फिर पाम आयल के आयात में भी कमी आई थी।
इसलिए खाद्य तेलों के मामले में उपलब्धता बढ़ाने की दृष्टि से सरकार का ताजा फैसला काफी राहत दे सकता है। हालांकि इसमें आयात की सीमा तय की गई है। एक वित्त वर्ष में सोयाबीन और सूरजमुखी के कच्चे तेल के बीस लाख टन तक के आयात को ही शुल्क मुक्त रखा गया है। हालांकि इससे खाद्य तेल की समस्या कितनी हल हो पाएगी और महंगाई में कितनी कमी आ सकती है, इसका अनुमान नहीं पेश किया गया है।
महंगाई बढ़ने की कई वजहें हैं। उन्हें देखते हुए कुछ समय पहले खुद रिजर्व बैंक ने कहा था कि महंगाई का यह दौर अभी लंबा खिंचेगा। पेट्रोल-डीजल पर जो उत्पादन शुल्क और वैट कम किया गया है, वह पिछले दो महीनों में हुई बढ़ोतरी से भी कम है। इसलिए बेशक कुछ देर के लिए उपभोक्ता को राहत महसूस हो, पर माल ढुलाई और कल-कारखानों की उत्पादन लागत में बहुत कमी नहीं आएगी, फिर उस हिसाब से लगने वाले जीएसटी में भी बहुत अंतर नहीं आएगा।
इसलिए कई विशेषज्ञों का कहना है कि ये फौरी कदम बहुत टिकाऊ साबित नहीं होने वाले। दरअसल, खाने-पीने की चीजों में महंगाई की बड़ी वजह उनकी ढुलाई पर आने वाली लागत है। इसे कैसे संतुलित किया जा सकेगा, अभी तक कोई खाका नहीं पेश हो सका है। लोगों की क्रयशक्ति और फिर औद्योगिक उत्पादन का घटना भी महंगाई बढ़ने का बड़ा कारण है। सरकार छिटपुट ही सही, महंगाई पर काबू पाने के प्रयास तो कर रही है, मगर इसके लिए समग्र रूप से व्यावहारिक कदम उठाए जाने की जरूरत है।