बदलता विश्व
वैश्वीकरण की सतत तेज होती प्रक्रिया ने मार्शल मैकलुहान की ‘ग्लोबल विलेज’ की अवधारणा को लगातार मजबूती ही प्रदान की है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वैश्वीकरण की सतत तेज होती प्रक्रिया ने मार्शल मैकलुहान की 'ग्लोबल विलेज' की अवधारणा को लगातार मजबूती ही प्रदान की है। 'डिजिटल क्रांति' ने सूचनाओं के वैश्विक प्रवाह द्वारा इसे और सशक्त किया है। परिवर्तन प्रकृति की प्रवृत्ति है। सैमुअल हटिंगटन का कक्लैश आॅफ सिविलाइजेशन' यानी सभ्यताओं का टकराव अपने बदले हुए प्रारूप में अब अमेरिकी समाज में ही दिखाई दे रहा है।
अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत बहुत मुश्किल से अर्जित उसकी अपनी 'सामाजिक पूंजी' ही रही है, जो सामाजिक समरसता, सहकार और सभी तरह के विचारों, वर्गों और नृजातीय समूहों के समायोजन पर आधारित है। लेकिन पिछले कुछ समय से इन मूल्यों में भी उल्लेखनीय कमी देखी जा रही है। नस्ल, वर्ग और विचारधाराओं के विभाजन इतने अधिक बढ़ गए हैं कि ये संघर्ष का रूप लेते हुए दिखाई दे रहे हैं।
अमेरिकी संघीय और अध्यक्षीय प्रणाली अपने अंतर्विरोधों को संभालने के लिए संघर्ष कर रही है। अमेरिकी समाज का यह विभाजन कानून और व्यवस्था के समक्ष भी खतरा उत्पन्न कर रहा है। पक्ष और विपक्ष के आपसी अविश्वास इस कदर बढ़ गए हैं कि दोनों के ही बीच प्रत्यक्ष टकराव की स्थितियां पैदा हो गई हैं। समय-समय पर होने वाले निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव जहां सरकारों को वैधता प्रदान करते हैं, वहीं वर्तमान अमेरिकी चुनाव पर ही मान्यता और वैधता के प्रश्नचिह्न लगाए गए।
स्पष्ट जनादेश न होने से न सिर्फ निर्वाचन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करने का मौका मिलता है, बल्कि अमेरिका के विरोधी देशों विशेषकर चीन और रूस के लिए भी यह रोमांचक और सुखद क्षण रहा। हालांकि आखिरकार अमेरिका के चुनाव के नतीजों ने विश्व के सामने एक नई तस्वीर रखी।
बहरहाल, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के न्यायालय पहुंचने की बातों के बाद अगर कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकल पाया तो अमेरिका के अलावा विश्व राजनीति में भी अराजकता की स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
'वीरेंद्र बहादुर पांडेय, मनकापुर, गोंडा, उप्र
धीमी पटरी
रेलवे भर्ती बोर्ड चल रहा कछुए की चाल। मार्च 2018 में रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा लगभग तीन लाख रिक्त पदों पर भर्ती के लिए जमा किए गए आवेदन पत्रों पर नवंबर 2019 में चयन प्रक्रिया पूरी हुई। लेकिन परीक्षा पास किए बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र का इंतजार है।
सूत्रों का कहना है कि रेलवे में नौकरियों में तीन साल से अधिक लग जाते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पद रिक्त होते हैं या कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति होती है, तब पद खाली होने पर नियुक्ति हो पाती है। कछुए की चाल से नियुक्ति देना भी बेरोजगारों का अप्रत्यक्ष शोषण ही है। सब कुछ आॅनलाइन होने के बाद भी अगर बेरोजगारों को नियुक्ति के लिए लंबा इंतजार पड़े, तो इसे बोर्ड की कमजोरी कहना होगा।