By: divyahimachal
हिमाचल में अंतत: चुनाव का डंका बज गया और इसी के साथ सत्ता परिवर्तन बनाम सरकार रिपीट का इम्तिहान भी शुरू हो गया। अगले लगभग एक महीने तक चुनावी शोर के बीच मुद्दों का आखेट जारी रहेगा और 12 नवंबर के दिन मतदान की भूमिका में वर्तमान सरकार के अभियान या कांग्रेस के सियासी खानदान के बीच जनता का विश्लेषण सामने आएगा। छोटे से प्रदेश के 55 लाख मतदाता अपनी परंपरा के अनुसार वोट करते हैं, तो चुनाव मंचन से पहले कई पर्दे हटेंगे। अमूमन हिमाचल के मतदाता का विश्वास किसी एक दल की सत्ता की निरंतरता में नहीं रहा है, इसलिए मिशन रिपीट जैसे अभियानों को अतीत में ठोकरें लगती रही हैं। बावजूद इसके भाजपा का आधुनिक इतिहास व चुनाव जीतने के तौर तरीके पूरी तरह बदल गए हैं। कभी चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली पार्टी अब केवल जीत के लिए जानी जाती है, इसलिए कांग्रेस के लिए चुनौतियां कम नहीं होती। यह दीगर है कि चुनाव की औपचारिक घोषणा से कांग्रेस के लिए युद्ध क्षेत्र समतल हो गया है, वरना पिछले एक महीने से पार्टी के नेता तो दिल्ली दरबार में नाक रगड़ते न•ार आ रहे थे और इधर भाजपा को केंद्र सरकार आशीर्वाद दे रही थी। भाजपा के मिशन रिपीट का सबसे बड़ा सेहरा लगाकर स्वयं प्रधानमंत्री हिमाचल घूमते रहे हैं।
इसके अलावा पार्टी ने बतौर मुख्यमंत्री जयराम को अपना चेहरा बनाने के लिए सरकार का दम और ख•ााना लगाया है। दरअसल यह चुनाव जयराम की स्वीकृति में राजनीति का भविष्य भी देख रहा है। प्रदेश के सामने मुख्यमंत्रियों की तस्वीरों का मुकाबला स्व. वाई. एस. परमार से शुरू होकर कमोबेश हर मुख्यमंत्री का वजन देखता रहा है, तो इस बार जयराम ठाकुर के वजन को परखा जाएगा। उनकी नीतियों, कार्यक्रमों के अलावा सरकार के वजीरों के कामकाज की पड़ताल भी शुरू हो रही है। यहां यह भी देखा जाएगा कि जिस तरह पिछले कुछ महीनों में सरकार ने रेवडिय़ां बांटी हैं, क्या उसका कोई सीधा लाभ मिलेगा या जनता कर्ज के बोझ में दबे प्रदेश से सुशासन की बात पूछेगी। जो भी हो, अपने अंतिम चरण की हड़बड़ी में सरकार ने मुंह मांगे उपहार दिए हैं और सबसे अधिक झूले कर्मचारी वर्ग को दिए हैं। ऐसे में क्या यह वर्ग ओपीएस की जिद्द छोडक़र उन लाभों के प्रति कृतज्ञ होगा, जो समय-समय पर जयराम सरकार ने दिए हैं या कहीं यह चुनाव फिर एक तूफान लाकर खड़ा कर देगा। जो भी हो, हिमाचल का कर्मचारी वर्ग कम से कम संतुष्ट होने की मुद्रा में तो नहीं दिखाई दे रहा है।
करीब एक लाख नए मतदाताओं के मन में क्या होगा, इसे पढऩे की कोशिश यह चुनाव जरूर करेगा, जबकि युवा वर्ग के बेरोजगार हिस्से को केंद्र व राज्य के डबल इंजन की सवारी न करने का मलाल तो रहेगा ही। यह वर्ग अगर मोदी की मुट्ठी में कैद हो जाता है या गृहिणियों को महंगाई की मार नहीं सताती है, तो भाजपा को रिपीट होने का सौहार्द जरूर मिलेगा, वरना विपक्ष के लिए तो यह एक अवसर है जिसे कुरेद-कुरेद कर भुनाया जा सकता है। कांग्रेस को परिवर्तन का लाभ न मिले, इसके लिए भाजपा की सत्ता का मोहजाल शिमला से दिल्ली तक पार्टी को अपने चरित्र को विश्वसनीय तरीके से पेश करना पड़ेगा। पार्टियां चुनावी टिकटों के आबंटन को लेकर रहस्यमयी व्यवहार करती रही हैं और खास तौर पर कांग्रेस की ओर से अस्थिरता दिखाई दी है। कांग्रेस को विनेबिलिटी के आधार पर अगर भाजपा से मुकाबिल होना है तो अपने प्रत्याशियों के चयन में ईमानदारी दिखानी होगी। भले ही मुद्दों की फेहरिस्त को कांग्रेस लंबा कर ले, लेकिन अपने हर कदम को फूंक-फूंक कर ही रखना पड़ेगा।