By: divyahimachal
एक बार फिर पौंग जलाशय पर्यटन की उम्मीदों से भर रहा है। अपने अस्तित्व की मिट्टी पर विस्थापन का दर्द लिए विश्व का यह भूभाग टुकर-टुकर देखता रहा, लेकिन न इसे समझा गया और न ही इसकी धडक़नें सुनी गर्इं। यह अनूठा बलिदान इतिहास के लिए लिखा गया होता, तो विस्थापितों की बोली लगाने के बजाए उन्हें गले से लगाने का मंतव्य पैदा होता। बस हलदून घाटी को ऐसा समुद्र बनाकर छोड़ दिया गया, जिसके तट आज भी पीड़ा की गहराई के सबूत बनते हैं। बहरहाल सुक्खू सरकार हिमाचल को अपने जलाधिकारों पर स्वाभिमान दिलाना चाहती है और इसलिए अब बात सिर्फ तमाम बड़ी बांध या विद्युत परियोजनाओं की ही नहीं, बल्कि पानी की हर बूंद की होने लगी है। इसी कड़ी में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह से जब मुख्यमंत्री मुलाकात करते हैं, तो आशाओं के झरने हिमाचली अस्मिता के पास आकर मधुर संगीत सुनाते हैं। बीबीएमबी से 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली की मांग के साथ-साथ सुखविंदर सुक्खू शानन विद्युत परियोजना का बाइज्जत स्थानांतरण चाहते हैं। यह कलम दवात से लिखा समझौता भले ही रहा हो, लेकिन 99 साल बाद मार्च 2024 में खत्म हो रही लीज के बदले हिमाचल को उसके आर्थिक अधिकार लौटाने का सबब बन रहा है।
मुख्यमंत्री सुक्खू की दृष्टि में प्रदेश का स्वावलंबन उसी पानी को जागीर बनाता है जिसे हमने यूं ही बहने दिया, लेकिन अब अगर इसे छबील की तरह बांटा जाएगा तो देश को मालूम होगा कि पहाड़ कितना समृद्ध और शक्तिशाली है और रहेगा। रेणुका जी बांध परियोजना केवल विकास परियोजना नहीं, बल्कि सात राज्यों की प्यास बुझाने का सदका भी है। हम बांध तथा जल विद्युत परियोजनाओं को अभी तक केवल विकास या राष्ट्रीय निर्माण की दृष्टि से ही देखते रहे, जबकि यह पहाड़ को निचोडऩे-झिंझोडऩे, तोडऩे और मरोडऩे का ऐसा कत्र्तव्य है, जिसका ऋण राष्ट्रीय समग्रता में उतारा जा सकता है। इन परियोजनाओं ने आज तक पर्वतीय देह से ही कुठाराघात किया है। ऐसे में सुक्खू सरकार ने पर्वतीय रिश्तों को अहमियत देते हुए पानी से लाभान्वित राज्यों के बाद अब केंद्र से पूछा है, तो यह आत्मनिर्भरता का मुकदमा है और इसे पानी से भीग कर ही फैसला देना है।
जल के माध्यम से आत्मनिर्भर हिमाचल की नींव रखते हुए सुक्खू अगर तमाम बांध परियोजनाओं को प्रगति, संपन्नता व आर्थिक विकास का शगुन देना चाहते हैं, तो यह प्रदेश की वास्तविक हैसियत को परवान चढ़ाने का संकल्प है। इसी कड़ी में पौंग जलाशय की पर्यटन परियोजनाओं के नाम हो रहे 70 करोड़ का जलवा आने वाले दिनों में अपने रंग दिखाएगा। रामसर वेट लैंड की चयनित श्रृंखला में नाम कमा चुका यह क्षेत्र हर साल प्रवासी पक्षियों के आगमन, उनसे संबंधित शोध तथा आकर्षण के कारण प्रदेश की ख्याति बढ़ा रहा है। ऐसे में पर्यटन परियोजनाओं का ताज पहनकर यह क्षेत्र मेगा पर्यटन की मंजिल बन सकता है। जल क्रीड़ाओं की अधोसंरचना के साथ-साथ शिकारा तथा फ्लोटिंग होटल की परिकल्पना से पौंग डैम की किश्ती अब आर्थिकी के किनारे तक पहुंच सकती है। हम इसे सुक्खू सरकार का डिलीवरी सिस्टम कहें या प्रदेश के आत्मबल को आजमाने की कोशिश, लेकिन यहां कथनी और करनी का साथ दिखाई देने लगा है। पौंग जलाशय के साथ जुड़ा पर्यटन तब अपनी संभावनाओं को पूरा करेगा जब नगरोटा सूरियां के कालेज को स्टेट कालेज ऑफ फिशरीज स्टडी तथा इसके परिसर में एनसीसी का नेवल विंग व जल क्रीड़ा केंद्र बनाया जाए। पौंग पर्यटन की अभिलाषा में गगल एयरपोर्ट से नगरोटा सूरियां की सडक़ का चौड़ाकरण तथा गरली-परागपुर धरोहर गांव को फिल्म सिटी के रूप में विकसित करने की गुंजाइश को भी पूरा करना होगा, क्योंकि इसी क्षेत्र में एक बड़ा गोल्फ ग्राऊंड तथा चिडिय़ाघर की परियोजनाएं भी सामने आने वाली हैं।