गन्ना किसानों की सुध: कई घोषणाओं से किसान गदगद्, लेकिन भुगतान बकाया होने से नाराजगी

गन्ना किसानों की सुध

Update: 2021-06-14 13:20 GMT

गन्ने का बीता हुआ पेराई वर्ष किसानों के असंतोष एवं आक्रोश बढ़ाकर समाप्त हो चला है, जहां मिल मालिक सरकार द्वारा समय-समय दी जा रही रियायतों को लेकर गदगद हैं, वहीं कई घोषणाओं से आगामी वर्षों के लिए भी आकर्षक राहत पैकेज तैयार हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा पिछले दिनों इथेनॉल मिश्रण की 20 फीसदी साझेदारी से मिल मालिकों को बड़ी राहत महसूस हुई है। इथेनॉल को ऊर्जा एवं ईंधन के व्यापक स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण स्थान मिल चुका है। सरकार द्वारा लाई गई जैव ईंधन नीति, 2018 की रपट में कहा गया है कि सरकार पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण को 2022 तक 10 फीसदी और 2030 तक 20 फीसदी ले जाने का लक्ष्य रखती है। इसके लिए गन्ने से बनने वाले इथेनॉल के मूल्य में वृद्धि होने के साथ ही जो मिलें नई इकाई लगाना चाहेंगी, उनके लिए भी सरकार ने कई योजनाओं के अमल पर काम करना प्रारंभ कर दिया है।
इथेनॉल उत्पादन में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगभग 185 चीनी मिलों एवं डिस्टलरीज को 12,500 करोड़ रुपये के कर्ज को मंजूरी दी गई है। यह कर्ज मिल मालिकों को मामूली ब्याज दर पर उपलब्ध होगा। पिछले दिनों सरकार द्वारा गठित मंत्रिमंडलीय समूह भी बाजार चीनी मूल्य में वृद्धि की सिफारिश कर मिल मालिकों को राहत पहुंचाने का काम कर चुका है। चीनी मिल मालिकों की संस्था एसमा का आकलन है कि सरकार द्वारा निर्यात शुल्क में दी गई छूट के कारण मिल मालिकों को काफी मुनाफा होने की आशा है। लेकिन किसानों में निरंतर असंतोष पनप रहा है।
तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान छह महीनों से ज्यादा समय से आंदोलनरत हैं। चालू वित्त वर्ष में लगभग 15,000 करोड़ रुपये चीनी मिल मालिकों पर बकाया है, जिनमें 10,000 करोड़ से अधिक अकेले उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिकों का है। और पिछले पेराई सीजन का भी पूरा भुगतान अभी बाकी है। हालांकि सरकार के स्तर पर निरंतर घोषणाएं होती रही हैं। इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच कई महत्वपूर्ण फैसलों द्वारा भुगतान की तिथि तय कर चुकी है, पर अफसरों और मिल मालिकों की मिलीभगत से यह भुगतान संभव नहीं हो पाता है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि भुगतान समय पर न होने के कारण पिछले दिनों गन्ना किसानों की आत्महत्या के मामले भी प्रकाश में आए हैं। सरकार गन्ना मूल्य भुगतान के लिए चीनी मिलों को कई अवसरों पर ब्याज रहित कर्ज देती रहती है। चीनी का आयात शुल्क भी बढ़ा दिया गया है। साथ ही, प्रति टन चीनी निर्यात पर 3,500 रुपये की अलग से सब्सिडी दी जाती रही है। पिछले तीन वर्षों से केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी में कोई वृद्धि नहीं हुई है। केंद्र सरकार द्वारा एफआरपी घोषित होने के बाद राज्य सरकारें एसएपी के जरिये घोषित मूल्य में इजाफा कर किसानों को राहत पहुंचाती है। किसान संगठन अब अपनी बकाया राशि के साथ-साथ लाभकारी मूल्य की मांग भी करने लगे हैं, क्योंकि कृषि उत्पाद में प्रयोग होने वाली चीजों के दामों में तेजी से इजाफा हुआ है।
लेकिन नीति आयोग का निष्कर्ष है कि गन्ना उत्पादक किसान मुनाफे में है। गन्ना किसानों का मुनाफा कृषि उत्पादों के मुकाबले 60 से 70 फीसदी है। उन्हें पहले से ही लाभकारी मूल्य मिलता है। पिछले महीने एसमा के वार्षिक अधिवेशन में सर्वसम्मति से गन्ने के दामों में कोई बढ़ोतरी करने के बजाय कटौती करने की सिफारिश की गई है। इस कार्यक्रम में खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण का अतिरिक्त भार संभालने वाले मंत्री पीयूष गोयल भी थे। बाजार में चीनी का 65 फीसदी इस्तेमाल पेय पदार्थ एवं कन्फेक्शनरी कंपनियां करती हैं
और भारी मुनाफा कमाती हैं। शीरे के उत्पादन से भी मिल मालिकों को असीमित मुनाफे हैं, लेकिन सरकार शीरे के दाम नहीं बढ़ाती। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं। किसान धरने का काफी असर ग्राम सभा एवं जिला पंचायत के चुनावों में भी दिखा है। निकट भविष्य में सरकार और किसान संगठनों में कोई समझौता होता नजर नहीं आ रहा है। चुनाव आते-आते व्यापक किसान असंतोष देखने को मिल सकता है।
क्रेडिट बाय अमर उजाला 
Tags:    

Similar News

-->