युवा आबादी को भुनाएं

यह सूचना सचमुच राहत देने वाली है कि केंद्र सरकार देश में जनसंख्या नियंत्रण का कोई कानून नहीं लाने जा रही। मौजूदा हालात में इसकी जरूरत नहीं है।

Update: 2022-06-10 03:23 GMT

नवभारत टाइम्स; यह सूचना सचमुच राहत देने वाली है कि केंद्र सरकार देश में जनसंख्या नियंत्रण का कोई कानून नहीं लाने जा रही। मौजूदा हालात में इसकी जरूरत नहीं है। यही बात केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने अप्रैल में संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पर बहस के दौरान कही थी। इस लिहाज से सरकार के रुख को लेकर किसी तरह का भ्रम होना नहीं चाहिए था, लेकिन इसी बीच सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक केंद्रीय मंत्री के इसके बिल्कुल उलट आशय वाले बयान आ गए। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक जहां पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया में वक्त लगता है और इस बारे में विचार-विमर्श जारी है, वहीं केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने साफ-साफ कहा कि देश में जल्दी ही जनसंख्या नियंत्रण का कानून आने वाला है। इसके बाद स्वाभाविक रूप से चर्चा शुरू हो गई कि संभवत: इस बारे में सरकार के पुराने रुख में बदलाव आया है। यह चर्चा चिंता बढ़ाने वाली इसलिए थी क्योंकि जनसंख्या के मोर्चे पर ताजा रुझान काफी पॉजिटिव हैं।

देश में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी प्रति महिला औसत प्रसूति दर 2015-16 के 2.2 से घटकर 2019-20 में 2 पर आ चुकी है। ध्यान रहे किसी देश या समाज में जनसंख्या को स्थिर रखने वाली दर यानी रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी रेट 2.1 मानी जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि अपने देश में औसत टीएफआर जरूरी बिंदु से भी नीचे आ चुका है। हालांकि यह सही है कि ऐसा पूरे देश में नहीं हुआ है। बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) और मणिपुर (2.17) जैसे राज्यों में यह अभी भी रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी लेवल से ऊपर बना हुआ है। लेकिन सभी राज्यों में ट्रेंड उतार का ही है। बिहार में यह चार के आसपास हुआ करता था, जो अब तीन के नीचे आ चुका है। ऐसे ही सभी समुदायों में भी टीएफआर में कमी देखी जा रही है। यह स्थिति कानून के दबाव से नहीं, आर्थिक विकास, शिक्षा और जागरूकता के प्रसार से हासिल की गई है।

ऐसे में अब जब जनसंख्या वृद्धि अपने आप काबू में आती दिख रही है, इसके लिए दंडात्मक प्रावधानों वाले कानून लाना कहां से मुनासिब है। वह भी ऐसे वक्त में, जब देश के हाथ से डेमोग्राफिक डिविडेंड के निकलने का डर पैदा हो गया है। 2021 में भारत की करीब 64 फीसदी आबादी कामकाज के लायक थी। अगले 10 साल में यह बढ़कर लगभग 65 प्रतिशत हो जाएगी। फिर इसमें गिरावट आने लगेगी। भारत में औसत उम्र 28 साल के करीब है। यह 2026 तक 30 और 2036 तक 35 साल हो जाएगी। इसलिए अभी तो युवा आबादी के अधिक इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाए ताकि आर्थिक विकास की रफ्तार तेज की जा सके। अगर यह काम अच्छी तरह से हुआ तो कुछ दशकों में भारत सुपरपावर का दर्जा हासिल कर सकता है।


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