बिहार के पश्चिमी चंपारण में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से निकल कर नरभक्षी बने बाघ को शूटरों ने मौत के घाट उतार दिया। टी-105 नाम के इस बाघ पर 9 लोगों को मारने का आरोप है। यह मूक शाही जानवर अपनी सफाई में कुछ नहीं बोल सकता। इसे किसने और कैसे नरभक्षी बनने के लिए मजबूर किया? आखिरकार मनुष्यों से दूर रहने वाला जंगल का यह राजा उनका शिकार क्यों करने लगा? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? बाघ के रहवास क्षेत्र में अतिक्रमण करके यदि उसके सामने बेदखल करने के हालात उत्पन्न हो जाएं और जानवर होने के कारण वह अपनी सफाई में कुछ नहीं कह सकता तो क्या उसे मौत की सजा दिए जाना क्या उसके साथ आदिम तरीके का अत्याचार नहीं होगा। टी-105 और दूसरे 17 अन्य बाघों के साथ यही हुआ। उन्हें एकतरफा फैसले से मौत तो मिली पर न्याय नहीं मिल सका। विगत वर्षों में उन्हें नरभक्षी करार देते हुए मौत के घाट उतार दिया गया। उनका कसूर सिर्फ यही रहा है कि उनके रहवास क्षेत्र में लगातार दखलंदाजी, अतिक्रमण, सुरक्षा के भय और शिकार की कमी ने उन्हें विवश होकर नरभक्षी बना दिया। मनुष्य बाघों के प्राकृतिक आहार में शामिल नहीं है, किंतु शिकार में कमी और बाघ विचरण क्षेत्र में लोगों की आवाजाही से बाघ नरभक्षी बनने को मजबूर होते हैं।
एक बार किसी मानव का शिकार करने के बाद बाघ को ये आसान शिकार लगने लगते हैं। पिछले तीन सालों में बाघों के हमले में 100 लोगों की मौत हुई है। बाघों की समस्या यह भी है कि बाघ संरक्षित वनक्षेत्र से दूसरे वन क्षेत्र में जाने के बीच मानव आबादी पड़ती है। इससे बाघों की आवाजाही बाधित हो रही है। बाघों की कुल आबादी में से करीब 1 हजार बाघ, बाघ परियोजनाओं के बाहर विचरण करने को विवश हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक वर्ष 2009 से लेकर अब तक 17 बाघों को नरभक्षी करार देते हुए मौत के घाट उतारा जा चुका है। नरभक्षी बनने के हालात को समझे और सुधारे बगैर यह एकतरफा और सीधे मौत की सजा बाघों को मिली है। देश में इस राष्ट्रीय पशु पर हर तरफ से खतरा मंडरा रहा है। वर्ष 2021 में देश में कुल 126 बाघों की मौत हुई। वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक कुल 1 हजार 59 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 197 बाघ शिकारियों का शिकार हुए हैं। विश्व में बाघों की 80 फीसदी आबादी भारत में है। देश में सर्वाधिक बाघों की आबादी 526 मध्यप्रदेश में है। माना जाता है कि आजादी से पहले देश में बाघों की संख्या करीब 40 हजार थी, किन्तु शिकार और प्राकृतिक आवास के छिनने से उनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। वर्ष 2021 में बाघों की संख्या 3700 थी। यूं तो कागजों पर बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास किए जाते हैं, किन्तु हकीकत में यह शानदार जीव मानव निर्मित हालात के सामने बेबस साबित हो रहा है।
बाघों के संरक्षण-संवद्र्धन के लिए प्राधिकरण देश में 23 बाघ परियोजनाएं संचालित कर रहा है। कहने को तो प्राधिकरण की जिम्मेदारी जैव विविधता, नदियों के संरक्षण, पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों, भू-क्षरण को रोकना है, ताकि बाघों का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रहे। इसके बावजूद प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा है। इसका मुख्य कारण है कि राष्ट्रीय और राजकीय बाघ उद्यानों का प्रबंधन राज्यों की सरकारें करती हैं। राज्यों में स्थानीय राजनीति बाघों के संरक्षण में आड़े आती है। देश के ज्यादातर राष्ट्रीय उद्यान अतिक्रमण से त्रस्त हैं। कई राष्ट्रीय उद्यानों में बसे गांवों की पुनर्वास प्रक्रिया अभी तक अधूरी है। बाघों को सर्वाधिक खतरा शिकारियों से है। अंतरराष्ट्रीय काले बाजार में बाघों की खाल और अंगों की मांग अधिक होने के कारण उनका शिकार हो रहा है। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ रहे तापमान से बाघों को ठंडे इलाकों में ठिकाना खोजने के लिए जंगलों से बाहर निकलने को भी विवश होना पड़ रहा है। इससे बाघ न सिर्फ नरभक्षी बन रहे हैं, बल्कि शिकारियों के हत्थे चढ़ कर भी जान गंवा रहे हैं। इसके अलावा रेल, सडक़, पुल और बांध जैसी आधारभूत परियोजनाओं के विस्तार से और जंगलों में लगने वाली आग से बाघों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है। पर्यटन भी बाघों की शांति भंग कर रहा है। जंगल में होने वाली पालतू जानवरों की चराई और खेती के विस्तार से भी बाघों को खतरा बढ़ रहा है। वन क्षेत्र में खनन कार्य बाघों के लिए प्रमुख बाधा बनी हुई है। एक वयस्क बाघ को एक साल में औसतन करीब 50 जानवरों का शिकार चाहिए। इस हिसाब से शिकार होने वाले जानवरों की संख्या करीब 500 होनी चाहिए। किन्तु बाघ के आहार में शामिल हिरण, चीतल, सांभर और बारहसिंघा जैसे वन्यजीवों की संख्या में कमी आ रही है।
इन जानवरों की संख्या में कमी की प्रमुख वजह भी मानवीय गतिविधियां और शिकार हैं। वनों की कटाई के कारण बाघ ही नहीं, दूसरे वन्यजीवों को भी विचरण क्षेत्र और शिकार में कमी का सामना करना पड़ रहा है। इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011 से 2021 के बीच 32 बाघ परियोजनाओं के राष्ट्रीय उद्यानों के वनावरण में 22.62 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। नई दिल्ली, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम समेत देश के 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फॉरेस्ट कवर में कमी आई है। बाघ शांतप्रिय और शर्मिला वन्यजीव है। विकास कार्यों की दखलंदाजी ने उनका सुकून छीन लिया है। इसका परिणाम है कि बाघों का इनसानों से संघर्ष बढ़ रहा है। बाघों के संरक्षण व संवर्धन के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है। पर्यावरण को दुरुस्त रखना है, तो यह कार्य युद्ध स्तर पर होना चाहिए। बाघों के लिए विचरण क्षेत्र को भी बढ़ाना होगा। उनके लिए शिकार की भी पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी। राज्यों में जंगली जानवरों के संरक्षण में राजनीति आड़े न आए, इसके लिए व्यवस्था करनी होगी। बाघ जंगल में ही रहें, वे मानव बस्तियों की ओर आगे न बढ़ें, इसके लिए जंगल में ही उनके लिए पर्याप्त प्रबंध करने होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाघों के संरक्षण में भी रुचि लेनी चाहिए तथा नागरिक समाज को इसके लिए शिक्षित किया जाना भी जरूरी है। यह आज की एक बड़ी मांग है।
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal