क्या भारत में हिजाब और तीन तलाक के बाद 'कजिन मैरिज' भी मुद्दा बन सकता है?
भारत में भी मुस्लिम समाज से इतर दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र के हिन्दू समाज में भी कजिन मैरिज काफी प्रचलन में है
प्रवीण कुमार.
कजिन मैरिज (Cousin marriage) (चचेरी, ममेरी, मौसेरी या फुफेरी बहन से शादी) से पाकिस्तान (Pakistan) में बढ़ते जेनेटिक डिसऑर्डर को लेकर किए गए एक ट्वीट से एक्ट्रेस उशना शाह (Usna Shah) निशाने पर आ गई हैं. प्रतिक्रिया में कुछ लोग उशना को शाबासी तो दे रहे हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लोग विरोध भी कर रहे हैं और लिख रहे हैं, "उशना तुम जाहिल हो. अगर कजिन मैरिज गलत है तो फिर हमें दीन ने इससे क्यों नहीं रोका." चूंकि पाकिस्तान में कजिन मैरिज की प्रथा को लोग धर्म से जोड़कर देखते हैं, लिहाजा विरोध के स्वर स्वाभाविक तौर पर उभरेंगे, लेकिन ये समस्या सिर्फ पाकिस्तान की नहीं है.
भारत में भी मुस्लिम समाज से इतर दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र के हिन्दू समाज में भी कजिन मैरिज काफी प्रचलन में है. ऐसे में क्या ये कहना उचित होगा कि तीन तलाक और हिजाब के बाद आने वाले वक्त में कजिन मैरिज पर रोक बड़ा सामाजिक या राजनीतिक मुद्दा बन सकता है? कहना मुश्किल है, लेकिन धर्म और राजनीति का घालमेल जिस तरीके से भारत के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर रहा है उसमें कजिन मैरिज को भी घसीट लिया जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
कजिन मैरिज की परंपरा आखिर कब तक?
एक ही गोत्र और परिवार में शादी का चलन सनातन धर्म में नहीं है और इसका मुख्य कारण अनुवांशिक बीमारियों के खतरे से खुद को बचाना है. बावजूद इसके भारत के कुछ राज्यों खासतौर से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना यहां तक कि महाराष्ट्र के कुछ इलाकों के हिन्दुओं में भी कजिन मैरिज खूब प्रचलन में है. मुस्लिम समाज में तो इस तरह की शादी को धार्मिक और कानूनी तौर पर भी मान्यता प्राप्त है. लेकिन क्या ब्लड रिलेशंस में शादी से होने वाली संतानें वाकई बीमारियों को साथ लेकर आती हैं जैसा कि हमारा मेडिकल साइंस कहता है और जिस बात को पाकिस्तानी एक्ट्रेस उशना शाह ने उठाया है?
पूरी दुनिया में इस मुद्दे पर चर्चाएं की जा रही हैं, रिसर्च किए जा रहे हैं. लेकिन कजिन मैरिज के पक्षधर समाज के अपने तर्क हैं जिसे खारिज करना एक बड़ी चुनौती है. और खास बात यह है कि ये पक्षधर समाज न सिर्फ मुस्लिम समाज में है बल्कि हिन्दू समाज में भी है. ऐसे में सिर्फ अनुवांशिक बीमारियों का डर दिखाकर शादी की इस परंपरा को मिटाया नहीं जा सकता है. लिहाजा कुछ वजहों को गहराई से समझना होगा और उसका निदान तलाशना होगा. दुनिया भर में ऐसी शादियां होने की अलग-अलग कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन भारत या पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की बात करें तो इसके पीछे सांस्कृतिक मूल्य, भौगोलिक निकटता, सामाजिक सुरक्षा और पारिवारिक धन-संपत्ति को परिवार में ही बनाए रखने की कोशिश प्रमुख वजहें हैं. अक्सर किसी पारिवारिक कार्यक्रमों में जब किसी लड़के की शादी की बात चलती है तो कोई न कोई कह ही देता है कि अरे दूर क्यों जाना, अपने मौसा जी की, मामा जी की या फूफा जी की बेटी है न. पढी-लिखी है, सुन्दर व सुशील भी है और फिर पुराना रिश्ता नया हो जाएगा. नए रिश्तेदार ना जाने कैसे हों?
ये तो हो गया सामाजिक और पारिवारिक सुरक्षा का मसला. दूसरा, खासतौर से दक्षिणी राज्यों मसलन तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना या आंध्रप्रदेश के किसी शख्स से इस मुद्दे पर बात करेंगे तो वो छूटते ही कहते हैं कि परिवार की धन-संपत्ति परिवार में रहे इससे बढ़िया और क्या बात हो सकती है. कहने का मतलब यह कि कजिन मैरिज में जो भी लेन-देन की बात होती है वह किसी नए रिश्तेदार या तीसरे पक्ष को नहीं जाकर फूफा, मामा, मौसा आदि ब्लड रिलेशंस में जो नजदीकी परिवार होता है उसी में जाता है. तो सामाजिक और पारिवारिक सुरक्षा तथा धन-संपत्ति घर-परिवार में रखने की जो दोहरी सोच है, वह अचानक से मिट जाएगा यह सोचना गलत होगा.
हां, ये बात सही है कि इस शादी से सेहत को लेकर जिस तरह के खतरे की बात की जा रही है उससे चीजें बदल रही हैं और शादियों का दायरा लोकल से ग्लोबल सोसाइटी की तरफ बढ़ा है. लेकिन सरकारों के लिए ये बात समझने की है कि जो तबका पढ़ा-लिखा है वह तो इस बात को समझने लगा है लेकिन जहां अशिक्षा ज्यादा है, जीवन में धर्म ज्यादा हावी है वहां अभी भी लोग समझने को तैयार नहीं हैं. कहने का मतलब यह कि अगर यह जीवन के लिए जहर है तो सरकार को समाज के हर वर्ग को मुकम्मल शिक्षा देनी होगी विशेषतौर पर मुस्लिम समाज को.
राजनीतिकरण मुश्किल, पर इसे खत्म होना चाहिए
तीन तलाक, हिजाब, सीएए के बाद जहां तक कजिन मैरिज को राजनीतिक मुद्दा बनाने की बात है तो यह फिलहाल इसलिए संभव नहीं है क्योंकि यह प्रथा सिर्फ मुस्लिम समाज में ही नहीं है. भारत के दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में हिन्दू समाज में भी इस तरह की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिहाजा जब तक हिन्दू समाज से शादी की इस परंपरा को खत्म नहीं कर दिया जाता, इसे राष्ट्रवाद से जोड़कर हिन्दुत्व का मुद्दा बनाना संभव नहीं है. लेकिन इससे इतर मेरा मानना है कि शादी की इस परंपरा पर विराम लग जाना चाहिए.
मेडिकल साइंस की रिसर्च स्टडी अगर सही है तो कोई भी परिवार, समाज या देश नहीं चाहेगा कि शादी से पैदा होने वाली संतानें शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार हो. बच्चे देश के भविष्य होते हैं और कोई भी देश नहीं चाहेगा कि उसका भविष्य बीमार हो, कोई भी माता पिता नहीं चाहेंगे कि उनके घर का चश्मो-चिराग बीमार हो. शारीरिक बीमारी जीवन का एक ऐसा नासूर है जो घर-परिवार से लेकर देश और दुनिया तक की जीडीपी को तबाह कर देता है. चीन 1981 में मैरिज एक्ट लाकर कजिन मैरिज पर प्रतिबंध लगा चुका है. इस एक्ट के आर्टिकल-7 के मुताबिक कोई चीनी शख्स अपने किसी थर्ड कजिन तक से शादी नहीं कर सकता है. आखिर इसके पीछे चीन ने भी तो तर्क गढ़े होंगे.
क्या होता है ब्लड रिलेशंस और कजिन रिलेशंस
ब्लड रिलेशंस यानि रक्त-संबंध दो तरह के होते हैं. पहला मैटर्नल यानि मां के पक्ष से और दूसरा पैटर्नल यानि पिता के पक्ष से. जब हम हिन्दी में बात करते हैं तो चचेरा, ममेरा, फुफेरा और मौसेरा भाई-बहन बोलते हैं, लेकिन अंग्रेज़ी में इन सारे संबोधन के लिए एक ही शब्द है कजिन. इस लिहाज से कजिन मैरिज का मतलब ऐसे लोगों के बीच विवाह जो मां या पिता के पक्ष से भाई-बहन लगते हों.
जेनेटिक्स की भाषा में बात करें तो कजिन मैरिज का मतलब होता है, ऐसे दो लोगों के बीच संयोग, जो आपस में सेकेंड कजिन या उससे भी नजदीकी हों. हमारे पिता के भाई का लड़का फर्स्ट कजिन कहा जाएगा क्योंकि इसमें ग्रैंड पेरेंट्स एक होते हैं. लेकिन पिता के चचेरे भाई का लड़का सेकेंड कजिन कहा जाएगा क्योंकि इसमें ग्रैंडपेरेंट्स एक नहीं होते हैं. यही तरीका मां पक्ष के रिश्तों में भी लागू होता है. बहरहाल, अगर हम बात करें चीनी दार्शनिक और कवि कन्फ्यूशियस की तो वो भी इस बात में विश्वास करते थे कि शादी दो सरनेम्स का गठबंधन है जिनमें दोस्ती हो और प्रेम हो. लेकिन भारत का फैमिली लॉ सभी धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को ध्यान में रखता है.
मुस्लिमों के अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक, फर्स्ट कजिन से शादी की स्वीकार्यता है और यह कानूनी रूप से भी मान्य है. हिन्दुओं में फर्स्ट कजिन से शादी करना 1955 के हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत गैर-कानूनी है लेकिन अगर किसी क्षेत्रीय रीति के अनुसार ऐसा विवाह होता है तो उसे गैर कानूनी नहीं ठहराया जा सकता है. लिहाजा कानूनी तौर पर अगर हम समान नागरिक संहिता की भी बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर इस शादी के खिलाफ मुहिम चलाना आसान नहीं है. ऐसे में अनुवांशिक विकृतियों के मद्देनजर लोगों को भरोसे में लेकर ही इसे खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)