लेकिन पाकिस्तानी अवाम जानती है कि इमरान खान क्यों अब भी मजबूत हैं?
इमरान की सिफारिश के बाद अब पाक संसद भंग कर दी गई है और इमरान चुनाव कराने में भी कामयाब हो सकते हैं
अतुल सिन्हा।
कई दिनों से सुर्खियों में बने रहे पाकिस्तान के सियासी कप्तान और हरफनमौला इमरान खान ने आखिरकार अपनी गुगली से विपक्ष के मंसूबों पर फिलहाल पानी फेर दिया। लगातार अपने लाखों समर्थकों को वह चीख-चीखकर कहते रहे कि ये तीन चूहे भला उनका क्या बिगाड़ लेंगे और उनके खिलाफ विदेशी ताकतें साजिश रच रही हैं। विपक्षी गठबंधन को अमेरिका की मदद मिल रही है और चाहे कुछ भी हो जाए, वह पहले से भी मजबूत बनकर उभरेंगे। पाकिस्तानी मीडिया अपने गणित लगाता रहा, उनके सहयोगी भी इस चक्रव्यूह में फंसकर उनका साथ छोड़ते रहे, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव की मियाद खत्म होने के आखिरी दिन पाकिस्तान के डिप्टी स्पीकर ने उसे खारिज करके और संसद को 25 अप्रैल तक स्थगित कर साफ संदेश दे दिया कि अब मुल्क में चुनाव हो सकते हैं। इमरान खान सरकार के तकरीबन चार साल पूरे हो चुके हैं और बाकी बचे वक्त के लिए विपक्ष ने गोलबंद होकर उन्हें सत्ता से हटाने की पूरी कोशिश कर ली, लेकिन इमरान एक बार फिर अपने खेल में कामयाब रहे।
दरअसल कोरोना काल के दो साल में एकदम ध्वस्त हो चुकी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आम लोगों पर महंगाई की मार ने विपक्ष को मुद्दा दे दिया और इसे 'आपदा में अवसर' मानकर विपक्षी गठबंधन ने इमरान सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। कोरोना राहत फंड को लेकर उन पर घोटाले के आरोप लगे और देश को गर्त में ले जाने के साथ-साथ सेना के साथ टकराव की खबरें भी सामने आईं। भारत की ही तरह पाकिस्तानी मीडिया के लिए भी ऐसे सियासी हालात सबसे 'बिकाऊ और मसालेदार' साबित हुए हैं। मीडिया मैनेजमेंट में बेशक इमरान खान कामयाब न हो पाए हों, लेकिन जिस तरह हाल के दिनों में उन्होंने बड़ी-बड़ी रैलियां कीं, लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी बात लोगों के बीच मजबूती से रखने की कोशिश की, उसका फायदा उन्हें आने वाले वक्त में मिल सकता है।
पिछले कुछ दिनों से इमरान खान को इस बात का एहसास हो चुका था कि इस बार उन्हें अंकों के खेल में कामयाबी मिल पाना मुश्किल है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, पीएमएल (नवाज) और पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने मिलकर जो गठबंधन बनाया, उसमें अब इमरान खान की पार्टी पीटीआई की सहयोगी पार्टियां भी जाने लगीं और नंबर गेम में वह पीछे नजर आने लगे। इमरान ने अपना आखिरी दांव खेला और अविश्वास प्रस्ताव को असंवैधानिक बताते हुए उसे खारिज करा दिया। मुल्क के नाम तत्काल संदेश दिया कि विदेश से बोरी भर पैसे लेकर विपक्ष ने उनके खिलाफ साजिश रची, लेकिन जनता उन्हें चुनाव में सबक सिखा देगी।
इमरान की सिफारिश के बाद अब पाक संसद भंग कर दी गई है और इमरान चुनाव कराने में भी कामयाब हो सकते हैं। बेशक विपक्ष अब जोड़-तोड़ करके सुप्रीम कोर्ट जाए या फिर इमरान खान सरकार के इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए लोगों के बीच जाए, लेकिन अंतिम गेंद तक हार न मानने वाले इमरान खान ने यह साबित कर दिया कि उनके पास गुगली भी है, यॉर्कर भी है और बाउंसर भी है। और सबसे बड़ी बात, जो पाकिस्तानी अवाम को जल्दी समझ में आती है कि इमरान ने इस्लाम और अल्लाह की मर्जी के भरोसे पर स्थितियों को ला खड़ा किया। इमरान ने लगातार पब्लिक मीटिंग कीं, जगह-जगह रैलियां कीं और वहां उमड़ी भीड़ ने उन्हें हौसला दिया कि उनकी सरकार अवाम के वोट से बनी है तो यह तय भी अवाम ही करेगी कि वह फिर से उन्हें सत्ता की कुर्सी देगी या बेदखल कर देगी। जाहिर है कि इमरान ने विपक्षी गठबंधन के नेताओं को तीन चूहे की उपाधि देकर खुले मैदान में लड़ने की चुनौती दी है, न कि संसद के भीतर अंकों के जोड़-तोड़ के बाद कुर्सी पर कब्जा करने की।
इस बीच मीडिया ने इमरान के खिलाफ जमकर माहौल बनाया। उन्हें पाकिस्तान को डुबोने वाला बताया, लेकिन इमरान खान ने भी भारतीय प्रधानमंत्री की तरह खुद को इन झंझावातों से मजबूती से बचाते हुए यह भी बताने की कोशिश की कि भारत की विदेश नीति काफी अच्छी है। उन्होंने बार-बार यह बताने की भी कोशिश की कि उनके मुल्क को भी अमेरिका या किसी भी मुल्क की सरपरस्ती में नहीं जीता चाहिए, बल्कि सबसे बेहतर रिश्ते बनाकर चलना चाहिए। एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश की तरह खुद को खड़ा करना चाहिए। लेकिन यह सब जानते हैं कि चीन को लेकर इमरान खान की सरकार किस हद तक नरम है और चीन की दखलअंदाजी पाकिस्तान में किस तरह बढ़ी है। बावजूद इसके इमरान खान बार-बार यह कहते रहे हैं कि वह उन सभी मुल्कों के साथ बेहतर रिश्ते रखने के हिमायती हैं, जो पाकिस्तान के विकास में योगदान दें।
मीडिया में ये खबरें भी आती रही हैं कि लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद पाकिस्तान में हमेशा से सेना सुप्रीम रही है और वहां की सेना जिसे चाहे सरकार में बैठा सकती है और वहां की सरकार पर सेना का नियंत्रण रहता है। बावजूद इसके इमरान खान ने लगातार यह कोशिश की कि सेना प्रमुख जनरल बाजवा के साथ रिश्ते बेहतर रखते हुए उन्हें अपनी नीतियों को लेकर भरोसे में लें। कुछ मुद्दों पर असहमतियां जरूर होती रहीं, लेकिन पाकिस्तानी मीडिया और विपक्ष ने इसे कुछ इस तरह उछाला कि इमरान और बाजवा के बीच रिश्ते तल्ख हैं और रावलपिंडी और इस्लामाबाद के बीच टकराव के हालात हैं। पाकिस्तान में सेना कभी भी इमरान सरकार को गिरा सकती है और इमरान के लोकतांत्रिक तौर तरीकों को वह पसंद नहीं करती आदि। अब हकीकत तो बाजवा और इमरान ही बताएंगे, लेकिन बाजवा ने अभी तक इमरान के खिलाफ सीधे तौर पर कोई भड़काऊ आरोप नहीं लगाए हैं।
फिलहाल पाकिस्तान की सियासत एक दिलचस्प मोड़ पर है। विपक्ष को लगता है कि उनका गठबंधन इस बार कामयाब हो जाएगा, लेकिन उनका इतिहास पाकिस्तानी अवाम को भी पता है और भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे उनके नेताओं पर वह अब कितना भरोसा करेगी, यह कहना मुश्किल है। जाहिर है कि विपक्ष अब कानूनी लड़ाई लड़ेगा। साथ ही, इमरान और अवाम के बीच तेजी से अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करेगा। यह जोड़-तोड़ जारी रहेगी, लेकिन आखिरकार पाकिस्तानी अवाम एक बार फिर चुनाव के जरिए किसे सत्ता सौंपेगी, देखने वाली बात होगी।