एक बबूले का फूटना

भारत में पिछला साल स्टार्टअप कंपनियों में भारी-भरकम निवेश का साल रहा

Update: 2022-05-25 05:21 GMT
By NI Editorial
भारत में पिछला साल स्टार्टअप कंपनियों में भारी-भरकम निवेश का साल रहा। इन कंपनियों ने रिकॉर्ड 35 अरब डॉलर का निवेश जुटाया था। लेकिन सफलता की लहर जिस तेजी से आई थी, उसी तेजी से लौटने भी लगी है।
कोरोना काल में जब भारत की आम अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही थी, तब सरकार की उदार मौद्रिक नीति ने शेयर मार्केट की चमकार और बढ़ा दी। इसका बड़ा फायदा स्टार्टअप्स को मिला। उनमें से कई स्टार्टअप देखते-देखते यूनिकॉर्न बन गए। यानी ऐसे स्टार्टअप जिनका बाजार मूल्य एक अरब डॉलर या उससे ज्यादा हो। जाहिर है, सत्ताधारी नेताओं ने जोर-शोर से यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स का प्रचार दुनियाभर में किया। लेकिन ये यूनिकॉर्न अब हांफते दिखाई दे रहे हैं। वहां नौकरियां जा रही हैं और कंपनियां लड़खड़ा रही हैं। ताजा रिपोर्टों के मुताबिक दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखी गई भारतीय स्टार्टअप कंपनी मीशो में पिछले साल सॉफ्टबैंक और फिडेलिटी जैसे बड़े निवेशकों ने करोड़ों का निवेश किया था। उससे कंपनी की बाजार कीमत दोगुनी से ज्यादा बढ़कर पांच अरब डॉलर तक पहुंच गई। मीशो इतना ज्यादा निवेश पाने वाली अकेली भारतीय कंपनी नहीं थी। भारत में पिछला साल स्टार्टअप कंपनियों में भारी-भरकम निवेश का साल रहा। इन कंपनियों ने रिकॉर्ड 35 अरब डॉलर का निवेश जुटाया था। लेकिन सफलता की यह लहर जिस तेजी से आई थी, उसी तेजी से लौटने भी लगी है।
बाजार विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि लहर का ऐसा लौटना तो पहले कभी नहीं देखा गया था। यह अनुभव बेहद पीड़ादायक होने वाला है। हकीकत यह है कि ऐसी कंपनियां जो यूनिकॉर्न बन गईं, लेकिन उनके पास कोई बिजनेस मॉडल नहीं है। तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं अगर जल्दी ही वे अप्रासंगिक हो जाएं। ये कंपनियां अब वह खर्चा कम करने और कर्ज पाने की कोशिश में लगी हैं। गौरतलब है कि भारत में टेक कंपनियों के शेयरों की कीमतें लगातार गिर रही हैं। इसके अलावा कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर भी चिंता बढ़ी है। निवेशकों को चिंता इस बात की भी है कि इन कंपनियों के बाजार-भाव पहले से ही बहुत ज्यादा हैं, जबकि रेवन्यू की संभावनाएं कम हैं। उधर ब्याज दरें बढ़ने से अब ईजी मनी की उपलब्धता घटनेवाली है। तो कुल मिलाकर यूनिकॉर्न्स की मुसीबत बढ़ रही है। वैसे बबूलों के फूटने की यह कोई पहली मिसाल नहीं है।
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