भले ही देर से ही सही, प्रधानमंत्री ने सकारात्मक पहल की है कि किसानों और सरकार के बीच कृषि सुधारों के मुद्दे पर एक फोन कॉल की दूरी शेष है। वार्ता के दरवाजे खुले हैं और कृषि मंत्री द्वारा किसानों को बातचीत के लिये दिया गया न्योता अब भी बरकरार है। निस्संदेह लगातार विस्तार पाता किसान आंदोलन जहां सामाजिक आक्रोश का वाहक है, वहीं कानून व्यवस्था को भी बड़ी चुनौती मिल रही है। राजधानी को जोड़ने वाले मुख्य राजमार्गों पर किसान आंदोलन के चलते जहां नागरिक परेशान हैं, वहीं सरकार को भी रोज करोड़ों रुपये का नुकसान टोल टैक्स व अन्य कारोबार ठप होने से हो रहा है। सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशील पहल करने की जरूरत है। किसानों की भी जिम्मेदारी है कि वे समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करें, लेकिन सरकार की जिम्मेदारी उससे अधिक है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर दो माह से अधिक समय से जारी धरने का समाधान न निकल पाने से किसानों में आक्रोश है। वहीं यही आक्रोश धरना स्थल के आसपास के गांवों में दिखायी दे रहा है, जिनकी सामान्य गतिविधियां इस आंदोलन से बाधित हैं। निस्संदेह यह गतिरोध और टकराव देश के हित में कदापि नहीं कहा जा सकता। हम यह नहीं भूले कि अभी कोरोना संकट पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इससे जुड़ी तमाम सावधानियां-सतर्कता आंदोलन के दौरान ध्वस्त हुई हैं। आशंका है कि जब किसान गांव लौटें तो संक्रमण का विस्तार दिखे।