Brazil Protest: ब्राजील में भड़की 'आग' की वजह क्या है? क्या राष्ट्रपति बोलसोनारो को तख्तापलट का डर सता रहा है?

ब्राजील में एक बार फिर जनता विरोध प्रदर्शन पर उतर आई है

Update: 2021-06-02 15:15 GMT

ओम तिवारी। ब्राजील में एक बार फिर जनता विरोध प्रदर्शन पर उतर आई है. हाथों में तख्ते लिए लोग महाभियोग लगाकर राष्ट्रपति को हटाने की मांग कर रहे हैं. तस्वीरें 2013 और 2015 के उन प्रदर्शनों की याद दिला रही हैं, जब आंदोलन के बाद राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ को महाभियोग लगाकर हटा दिया गया. इस बार आक्रोश राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो के खिलाफ है. आरोप है कि उनकी सरकार कोविड संकट पर काबू पाने में नाकाम रही है. अब तक देश में चार लाख साठ हजार से ज्यादा लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हो चुकी है. अकेले मार्च महीने में साठ हजार से ज्यादा लोगों ने दम तोड़ दिया. अमेरिका के बाद कोरोना से सबसे ज्यादा लोग ब्राजील में ही मारे गए. लेकिन सरकार न तो पर्याप्त वैक्सीन के इंतजाम कर रही है, न ही महामारी की भयावहता को लेकर गंभीर नजर आ रही है.

यह एक हकीकत है कि राष्ट्रपति बोलसोनारो महामारी को लेकर लापरवाह रहे हैं. अपने गैर-जिम्मेदार रवैये और बेतुके बयानों को लेकर दुनिया भर की आलोचना झेलते रहे हैं. 'ट्रंप ऑफ द ट्रॉपिक्स' कहे जाने वाले बोलसोनारो लंबे समय तक कोरोना को 'मामूली फ्लू' बताकर इसे नजरअंदाज करते रहे. फिर मास्क और लॉकडाउन का खुलकर विरोध करते रहे. मार्च में कोरोना से मौत के आंकड़े तेजी से बढ़े तो ब्राजील के कुछ राज्यों और शहरों में लोगों की आवाजाही और घर से बाहर निकलने पर पाबंदियां लगा दी गई. बोलसोनारो इसके विरोध में उतर आए. कहा, 'रोना धोना बंद करो. कब तक ऐसे ही रोते रहोगे? कब तक घरों में बैठे रहोगे? कब तक सब कुछ बंद रखोगे?'
संसदीय कमेटी की जांच के बाद जनता का आक्रोश सातवें आसमान पर
जब महामारी की मार से देश के 27 राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह ठप हो गई हों, रोज सैंकड़ों लोगों की मौत हो रही हो, तो राष्ट्रपति पद पर बैठा इंसान संवेदनहीन बयानबाजी कैसे कर सकता है? सरकार की लापरवाही की जांच के लिए एक संसदीय कमेटी बिठाई गई. फिर जैसे-जैसे कमेटी की सुनवाई आगे बढ़ी और सुनवाई के दौरान पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों (महामारी के बाद चार हेल्थ मिनिस्टर बदले गए) और फार्मा कंपनियों के अधिकारियों के खुलासे सामने आए, सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता चला गया.
ब्राजील की जनता के सब्र ने तब जवाब दे दिया जब फार्मा कंपनी फाइजर के एक अधिकारी ने कमेटी को बताया कि वैक्सीन के एडवांस ऑर्डर के लिए उन्होंने पिछले साल ही सरकार के सामने प्रस्ताव रखा था. लेकिन कई महीनों तक जवाब नहीं आया. ब्राजील के ब्यूटानतन इंस्टीट्यूट के प्रमुख ने कमेटी को बताया कि पिछले साल अगस्त में उन्होंने चीनी कंपनी के साथ मिलकर कोरोनावैक वैक्सीन मुहैया कराने की पेशकश की थी. लेकिन राष्ट्रपति बोलसोनारो ने यह कहते हुए ऑफर ठुकरा दिया कि उनकी सरकार कभी चीन की वैक्सीन कभी नहीं खरीदेगी.
यह सच है कि राष्ट्रपति बोलसोनारो ने अगर लापरवाही नहीं की होती तो सबसे पहले टीकाकरण शुरू करने वाले देशों में ब्राजील भी शामिल हो सकता था. हजारों लोगों की जान बच सकती थी. यही वजह है कि सड़क पर उतरे लोग राष्ट्रपति पर 'जीनोसाइड' का आरोप लगा रहे हैं. उन्हें हत्यारा बता रहे हैं.
ओपिनियन पोल के आंकड़ों ने बढ़ाई राष्ट्रपति बोलसोनारो की चिंता
राष्ट्रपति बोलसोनारो के लिए चिंता की बात यह है कि ब्राजील में उनकी लोकप्रियता काफी कम हो गई है. Datafolha के ताजा पब्लिक सर्वे में बोलसोनारो के समर्थन में सिर्फ 24 फीसदी वोट आए, जबकि मार्च में यह आंकड़ा 30 फीसदी था. हालांकि उस वक्त भी 54 फीसदी लोगों की राय थी कि कोविड संकट से निपटने में बोलसोनारो सरकार के इंतजाम 'बेहद खराब' रहे हैं. वहीं जनवरी में किए गए सर्वे में ब्राजील के 48 फीसदी लोग इस बदइंतजामी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते थे.
तेजी से गिरती लोकप्रियता और बढ़ता जनाक्रोश दक्षिणपंथी नेता बोलसोनारो के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है. चिंता इसलिए ज्यादा है कि अगले साल ही ब्राजील में चुनाव होने वाले हैं. जबकि राष्ट्रपति के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंदी और पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनेसिओ लुला डि सिल्वा लोकप्रियता में उनसे कहीं आगे चल रहे हैं. खास बात यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी होने के बाद लुला डि सिल्वा के लिए राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो गया है.
विरोधी नेता लुला डि सिल्वा की बढ़ती लोकप्रियता बनी बोलसोनारो की मुसीबत
2002 से 2010 तक ब्राजील के राष्ट्रपति रहे लुला डि सिल्वा ने भले ही अभी चुनाव लड़ने का ऐलान नहीं किया है. लेकिन बोलसोनारो पर उनके जुबानी हमले लगातार जारी हैं. हाल में उन्होंने एक ट्वीट के जरिए राष्ट्रपति को सीधी चुनौती दे दी. लुला डि सिल्वा ने लिखा, 'बोलसोनारो यह ना सोचें कि मैं उनसे डर गया हूं. क्योंकि मेरा ना सिर्फ सड़क पर जन्म हुआ है बल्कि पूरी राजनीतिक जिंदगी भी सड़क पर ही बीती है.'
गौर करने वाली बात यह है कि ब्राजील के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनकारियों की भीड़ बिना किसी राजनीतिक समर्थन के उमड़ी है. मामले को राजनीतिक रंग देने से बचने के लिए वर्कर्स पार्टी के नेता लुला डि सिल्वा भी प्रदर्शन पर खुलकर बयान नहीं दे रहे हैं. लेकिन अब तक सिर्फ बर्तन पीट कर सरकार के खिलाफ नाराजगी जताने वाली जनता जब सड़कों पर उतरकर महाभियोग की मांग करने लगी है तो राष्ट्रपति बोलसोनारो के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक कोरोना महामारी के एक साल के अंदर ब्राजील में 81 लाख लोगों की नौकरी चली गई. 2012 के बाद पहली बार बेरोजगारी की दर 14.7% तक पहुंच गई. बोलसोनारो सरकार ने महामारी से प्रभावित हुए छोटे कारोबारियों को आर्थिक मदद देने का ऐलान तो किया लेकिन बड़ी तादाद में लोग इससे वंचित रह गए. लिहाजा 2020 में लाखों दुकानें बंद हो गईं. कोरोना प्रभावित परिवारों की सहायता के लिए सरकारी भत्तों की घोषणा भी की गई. करीब 7 करोड़ लोगों को इसका फायदा भी मिला. लेकिन 2021 में सहायता राशि कम कर दी गई तो लोगों की मुश्किलें बढ़ गईं.
ब्राजील की बिगड़ी अर्थव्यवस्था बोलसोनारो का सबसे बड़ा सिरदर्द
1980 के दशक में जब दुनिया में तेल की किल्लत खत्म (Oil Glut) हो गई तो असर ब्राजील की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा. विदेशी कर्ज बढ़ने लगे, करेंसी की कीमत घटने लगी और महंगाई में भयानक उछाल आ गया. अगले एक दशक तक ब्राजील इसकी मार झेलता रहा. आर्थिक सुधारों के बाद हालात थोड़े ठीक हुए. लेकिन फिर 2014 से 2016 के बीच – राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ के कार्यकाल में – देश में विकराल मंदी छा गई. जनता के दबाव में राष्ट्रपति ने गद्दी तो छोड़ दी, लेकिन ब्राजील अभी मंदी से पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि कोरोना ने अर्थव्यवस्था की हालत खराब कर दी.
बोलसोनारो के समर्थकों का तर्क है कि देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होने की वजह से ही राष्ट्रपति महामारी के दौरान लॉकडाउन जैसी पाबंदियों का विरोध कर रहे थे. लेकिन जानकारों की राय में यही रणनीति बोलसोनारो को और भारी पड़ गई. क्योंकि कोरोना पर काबू पाने की कोशिश की गई होती तो शायद हालात जल्दी ठीक होते और ब्राजील की अर्थव्यवस्था को कम नुकसान होता. लिहाजा महामारी में बेतहाशा मौत ने मंदी से परेशान जनता का रोष और बढ़ा दिया और वो आंदोलन पर उतर आई.
बोलासोनारो के पास अपनी छवि सुधारने का वक्त तो है लेकिन मौजूदा हालात में इसके मौके बहुत कम नजर आ रहे हैं. क्योंकि अब चुनौती न सिर्फ कोरोना से निपटने की बल्कि अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाने की भी है. ऐसे में अगर उनकी लोकप्रियता और गिरी और अगले साल वो चुनाव हार गए तो ब्राजील के आधुनिक इतिहास में (1995 में जब से राष्ट्रपति का कार्यकाल घटाकर 4 साल कर दिया गया) बोलसोनारो एक ही शासनकाल में सत्ता से बाहर होने वाले पहले राष्ट्रपति होंगे.
क्या ब्राजील पर बोलसोनारो की तानाशाही का खतरा मंडरा रहा है?
देश में सरकार से नाराजगी के बावजूद बोलसोनारो ने कुर्सी पर पकड़ बनाए रखने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है. ब्राजील में एक तरफ राष्ट्रपति के खिलाफ रैलियां निकलीं तो दूसरी तरफ उनके समर्थक बड़ी मोटरसाइकिल रैलियां निकालकर पहले से ही उनके पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं. डर इस बात का जरूर है कि आगे समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच कहीं झड़प या हिंसा की नौबत न आ जाए.
बताया जा रहा है राजनीतिक भविष्य पर मंडराते खतरे और तख्तापलट के डर से ही बोलसोनारो ने हाल में देश के रक्षा मंत्री जनरल फर्नान्डो अजेवेडो ई सिल्वा को हटा दिया. फैसले के विरोध में तुरंत तीनों सेना प्रमुखों ने भी इस्तीफा दे दिया. कयास लगा जा रहे हैं कि रक्षा मंत्री से दोस्ती के बावजूद उन्हें इसलिए हटाया गया क्योंकि सेना प्रमुखों के काफी करीब थे. गौर करने की बात यह है कि ब्राजील में 1964 से लेकर 1985 तक सत्ता सेना के हाथों में थी. खुद बोलसोनारो राजनीति में आने से पहले 15 वर्षों तक ब्राजील की सेना में अपनी सेवा दे चुके हैं. इसलिए देश में सियासी हालात बिगड़ने से पहले ही राष्ट्रपति बोलसोनारो रक्षा मंत्रालय समेत तीनों सेना पर अपनी बागडोर मजबूत कर लेना चाहते हैं.
ऐसे में हो सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप की तरह जायर बोलसोनारो भी चुनाव में हार के बाद सत्ता में बने रहने की कोशिश करें. क्योंकि बोलसोनारो के बेटे एडुआर्डो बोलसोनारो 6 जनवरी 2021 को अमेरिका के कैपटल हिल पर हुए हमले का खुलकर समर्थन कर चुके हैं. आशंका जताई जा रही है कि राष्ट्रपति बोलसोनारो चुनाव के साथ-साथ उसके परिणाम के बाद की भी रणनीति बना रहे हैं, ताकि हार के हालात में ताकत के बल पर सत्ता में बने रहने की तैयारी पूरी रहे.
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