पुस्तक समीक्षा : अंग्रेजी कविताओं में ढलते एहसास
सृजन… एक ऐसा माध्यम, जो हमारे आज और आने वाले कल को पिछले कल से और बेहतर बनाने की दिशा में एक कदम होता है
दिव्याहिमाचल। सृजन… एक ऐसा माध्यम, जो हमारे आज और आने वाले कल को पिछले कल से और बेहतर बनाने की दिशा में एक कदम होता है। सृजन किसी भी विधा या दिशा में हो, इसका योगदान एक ऐसी ईंट के रूप में रहता है, जो इमारत की बुलंदी की कडि़यां बुनती है। बात साहित्य सृजन की करें, तो हिमाचली लेखकों का योगदान कुछ कम नहीं, पर भाषा की बात हो, तो सोचना जरूर पड़ता है। खासकर अंग्रेजी भाषा में हिमाचली साहित्य सृजन की धारा कुछ मंद कही जा सकती है। हालांकि अंग्रेजी साहित्य सृजन में अचानक कुछ मर्तबा ऐसे प्रयास होते हैं, जो निरंतरता के अभाव से पैदा हुए सोच के बादलों को पिघलाकर अमृत वर्षा सरीखा एहसास करवाते हैं।
अंग्रेजी साहित्य सृजन में कुछ ऐसा ही महसूस करवाती है ललित मोहन शर्मा की कृति 'आइज़ ऑव साइलेंस'। अपने नाम के अनुरूप अंग्रेजी कविताओं यानी 'पोएम्स' का यह अप्रतिम पुष्पगुच्छ आपको ऐसी दृष्टि उपलब्ध करवाता है, जो आपके सामने से गुजरते समय की यूं परेड करवाती है, मानिए माला में एक-एक कर पिरोए जाते मनके। धौलाधार की खूबसूरत तलहटी में बसे सलोने से नगर धर्मशाला और यूरोप की नयनाभिराम छवि के दो कोणों के बीच पेंडुलम की तरह जिंदगी के गीत गातीं ललित मोहन शर्मा की ये 61 रचनाएं वर्तमान समय पर एक रोचक दृष्टिपात करती हैं। कुछ ऐसी दृष्टि, जो या महायोगी हासिल कर सकता है या वह, जिसे मां सरस्वती ने स्वयं आशीवार्द देकर साहित्य सेवा के लिए धरा पर भेजा हो। 138 पन्नों के माध्यम से जीवन और समाज के हर रंग को नुमाया करती ललित मोहन शर्मा की इस संग्रहणीय पुस्तक का दाम 390 रुपए है। मोबाइल के मकड़जाल में उलझकर दिशाहीन होती युवा पीढ़ी को अगर कोई बेहतर उपहार देकर जीवन की दिशा दिखानी हो, तो यह अनमोल भेंट हो सकती है। भाषा उत्तम है और अभिव्यक्ति अप्रतिम। उम्मीद है, हिमाचली साहित्य के इतिहास में 'आइज़ ऑव साइलेंस' का स्थान हमेशा ऊंचाई पर रहेगा। इस पुस्तक के प्रकाशक दि पोएट्री सोसायटी ऑव इंडिया, गुरुग्राम हैं।