चीन को दो टूक
पूर्वी लद्दाख में विवादित क्षेत्रों से चीनी सैनिकों को हटाने को लेकर भारत ने इस बार भी कड़ा रुख दिखाया। यही होना भी चाहिए। सोलहवें दौर की कमांडर स्तर की वार्ता में भारत ने एक बार फिर चीन से साफ-साफ कह दिया कि पहले वह पूर्वी लद्दाख में विवादित स्थलों से अपने सैनिकों को हटाए और अप्रैल 2020 वाली स्थिति को बहाल करे।
Written by जनसत्ता: पूर्वी लद्दाख में विवादित क्षेत्रों से चीनी सैनिकों को हटाने को लेकर भारत ने इस बार भी कड़ा रुख दिखाया। यही होना भी चाहिए। सोलहवें दौर की कमांडर स्तर की वार्ता में भारत ने एक बार फिर चीन से साफ-साफ कह दिया कि पहले वह पूर्वी लद्दाख में विवादित स्थलों से अपने सैनिकों को हटाए और अप्रैल 2020 वाली स्थिति को बहाल करे। इस मसले को लेकर दोनों देशों के बीच छब्बीस महीने से गतिरोध बना हुआ है।
भारत पहले भी कहता रहा है कि यह गतिरोध तभी दूर होगा जब चीन एतराज वाले बिंदुओं से अपने सैनिकों को हटा लेगा। लेकिन अभी तक चीन ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे लगे कि वह समस्या हल करने की दिशा में बढ़ना चाहता है। बल्कि अब तक पंद्रह दौर की वार्ताओं के दौरान उसका जो रवैया देखने को मिलता रहा, उससे लगता नहीं कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े ताजा विवाद जल्द निपटेंगे। चीन जिस रणनीति पर चल रहा है, वह दो पड़ोसियों के बीच अच्छे रिश्ते बनाने वाली तो नहीं कही जा सकती। इसलिए जब भी चीन के साथ वार्ता का मौका आया है, यह आशंका भी साथ ही पैदा होने लगती है कि कहीं इस दौर की वार्ता का हश्र भी पहले जैसी वार्ताओं जैसा न हो।
गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच यह गतिरोध पैंगोंग झील इलाके में अप्रैल 2020 में शुरू हुआ था। तब चीनी सैनिकों की हलचल अचानक बढ़ गई थी। उसी साल जून में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। इस हमले में चौबीस भारतीय जवान शहीद हो गए थे। हालांकि भारतीय जवानों ने भी इस हमले का कड़ा जवाब दिया था। पर इसके बाद उस इलाके में जो तनाव पैदा हुआ, वह स्थायी समस्या बन चुका है। अब तो इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि चीन की मंशा भी यही थी।
इसी दौरान चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास कई जगहों पर सैनिक जमा कर लिए। हालांकि भारतीय सेना ने भी मजबूत मोर्चा बना लिया है, पर अब विवाद के जो नए ठिकाने बन गए हैं, उनसे चीन को हटा पाना आसान नहीं लग रहा। इसलिए सोलहवें दौर की वार्ता में भी भारत का जोर इसी पर रहा कि चीन पहले देमचोक और देपसांग से अपने सैनिक हटाए। सवाल है कि चीन क्यों नहीं इन जगहों से अपने सैनिकों की वापसी के लिए तैयार हो रहा?
इस महीने के आखिर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली है। इसके बाद एससीओ के राष्ट्र प्रमुखों की बैठक भी प्रस्तावित है। इसी महीने की सात तारीख को इंडोनेशिया के बाली द्वीप में भी भारत और चीन के विदेश मंत्री मिले थे और सीमा विवाद पर चर्चा की थी। इस लिहाज से सोलहवें की दौर वार्ता और उसमें भारत का रुख चीन के लिए एक संदेश है। हालांकि चीन से ऐसी उम्मीदें अक्सर निराश करने वाली ही रही हैं। वास्तविक नियंत्रण पर रेखा पर उसकी उकसाने वाली गतिविधियां चल ही रही हैं।
यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि पैंगोंग इलाके से भी उसने अगर सैनिक हटाए तो इसके पीछे भावना विवाद खत्म करने की नहीं रही, बल्कि ऐसा उसने वैश्विक दबाव खासतौर से अमेरिका के सख्त रुख को देखते हुए किया था। अगर चीन वाकई भारत को अपना अच्छा पड़ोसी मानता है और सीमा विवादों को हल करना चाहता है तो उसे पहले विवादित जगहों से अपने सैनिक हटा कर सकारात्मक रुख का परिचय देना होगा।