ब्लॉग: शिक्षा में संस्कृत की अनिवार्यता की मांग केवल गुजरात में क्यों, हर नागरिक को करनी चाहिए ये मांग

गुजरात के शिक्षा मंत्री से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओं ने अनुरोध किया है

Update: 2022-06-28 17:52 GMT

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

गुजरात के शिक्षा मंत्री से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओं ने अनुरोध किया है `कि वे अपने प्रदेश में संस्कृत की अनिवार्य पढ़ाई शुरू करवाएं. यह मांग सिर्फ संघ के स्वयंसेवक ही क्यों कर रहे हैं और सिर्फ गुजरात के लिए ही क्यों कर रहे हैं?
भारत के हर तर्कशील नागरिक को सारे भारत के लिए यह मांग करनी चाहिए क्योंकि दुनिया में संस्कृत जैसी वैज्ञानिक, व्याकरणसम्मत और समृद्ध भाषा कोई और नहीं है. यह दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तो है ही, शब्द भंडार इतना बड़ा है कि उसके मुकाबले दुनिया की समस्त भाषाओं का संपूर्ण शब्द-भंडार भी छोटा है.
संस्कृत में चाहे तो 102 अरब से भी ज्यादा शब्दों का शब्दकोश जारी कर सकती है क्योंकि उसकी धातुओं, लकार, कृदंत और पर्यायवाची शब्दों से लाखों नए शब्दों का निर्माण हो सकता है.
संस्कृत की बड़ी खूबी यह भी है कि उसकी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक और गणित के सूत्रों की तरह है. जैसा बोलना, वैसा लिखना और जैसा लिखना, वैसा बोलना. संस्कृत सचमुच में विश्व भाषा है.
इसने दर्जनों एशियाई और यूरोपीय भाषाओं को समृद्ध किया है. संस्कृत को किसी धर्म-विशेष से जोड़ना भी गलत है. क्या उपनिषदों का गाड़ीवान रैक्व ब्राह्मण था? संस्कृत को पढ़ने का अधिकार हर मनुष्य को है. औरंगजेब के भाई दाराशिकोह ने उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया था. अब्दुल रहीम खानखाना ने 'खटकौतुकम' नामक ग्रंथ संस्कृत में लिखा था.
लगभग 40 साल पहले पाकिस्तान में मुझे एक पुणे के मुसलमान विद्वान मिले. मैं उनके घर गया. वे मुझसे लगातार संस्कृत में ही बात करते रहे. अभी भी मेरे कई परिचित मुसलमान मित्र विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत के आचार्य हैं. इसीलिए संस्कृत को किसी मजहब या जाति से न जोड़ें.
जरूरी यह है कि भारत के बच्चों को संस्कृत, उनकी उनकी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी 11 वीं कक्षा तक अवश्य पढ़ाई जाए और फिर अगले तीन साल बी.ए. में उन्हें छूट हो कि वे अंग्रेजी या अन्य कोई विदेशी भाषा पढ़ें. कोई भी विदेशी भाषा सीखने के लिए तीन साल बहुत होते हैं. उसके कारण हमारे बच्चों को संस्कृत के महान वरदान से वंचित क्यों किया जाए?

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