जन्म दिवस विशेष: नरेंद्र मोदी के 'नए भारत' के क्या हैं निहितार्थ?
नरेंद्र मोदी ने जब से प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली है
नरेंद्र मोदी ने जब से प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली है, एक शब्द बेहद चर्चित रहा है- 'न्यू इंडिया' यानी 'नया भारत'. इस शब्द के मायने क्या हैं? इसके पीछे मोदी सरकार की क्या सोच है? इस 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का 71वां जन्म दिवस है, ऐसे में इस 'न्यू इंडिया' शब्द को समझना जरूरी है क्योंकि यह आजादी का 75वां वर्ष है जहां से भारत ने अमृत यात्रा यानी अगले 25 साल के संकल्प को सिद्धि की ओर ले जाने का मार्ग चुना है…
नया भारत. आम तौर पर नए का मतलब जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए कुछ नई चीजों को खरीदना- जैसे नए कपड़े, नया समान, नई गाड़ी, नया मकान, नए साजो-समान, नया कंप्यूटर, नया मोबाइल आदि-आदि. तो क्या ऐसा ही कुछ नए भारत का भी मतलब है? तो इसका जवाब है- नहीं. भारत तो सदियों से विद्यमान है, एक बड़े कालखंड में विश्व गुरू की भूमिका में भारत भी रहा है. यही वजह है कि विदेशी आक्रांताओं ने सदैव सोने की चिड़िया कही जाने वाले भारत की संपदा को अपना निशाना बनाया. लेकिन भारत की मजबूत सभ्यता-संस्कृति पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाए.
ऐसे में, सवाल स्वाभाविक है कि फिर किस नए भारत की बात बार-बार की जाती है? दरअसल 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद तो हुआ, लेकिन आजादी का अहसास अंतिम छोर तक नहीं पहुंच सका था. आजादी के 67 साल तक 50 फीसदी से अधिक लोगों की बैंकिंग व्यवस्था तक पहुंच भी नहीं थी. मकान हो या स्वच्छ ईंधन, इलाज तक सहज पहुंच नहीं थी. विकास की परियोजनाएं शुरू तो होती थी, लेकिन खत्म नहीं होती थी. सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता जाता था, नौकरशाही भी बेपरवाह फाइलों में चीजों को उलझाए रखती थी. गरीबी यानी ऐसी स्थिति जब किसी व्यक्ति के पास सामान्य तौर से या सामाजिक रूप से मान्य मात्रा में मुद्रा या भौतिक वस्तुओं का स्वामित्व नही हो. किसी भी राष्ट्र की प्रगति की कसौटी इसमें नहीं है कि उन लोगों को समृद्ध बनाया जाए जो पहले से ही समृद्ध हैं, बल्कि इसमें है कि जिनके पास अत्यल्प (कम) साधन हैं उन्हें शासन की ओर से पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध कराया जाए. लेकिन विडंबना ही है कि भारत में गरीबी हटाओ की बात तो खूब हुई लेकिन लंबे समय तक गरीबी उन्मूलन की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हुए. नतीजा हुआ कि आधी से अधिक आबादी औपचारिक तंत्र का हिस्सा ही नहीं बन पाई.
किसी भी देश के आर्थिक विकास का मुख्य आधार उसका बुनियादी ढांचा होता है. अगर बुनियाद ही कमजोर हो तो व्यवस्था को मजबूत नहीं बनाया जा सकता है. कोई भी देश व्यवस्था से चलता है, संस्थानों से आगे बढ़ता है और यह काम दो-चार महीने या दो-चार साल में नहीं बनता, बल्कि वर्षों के सतत विकास का परिणाम होता है. लेकिन आजादी के बाद लंबे समय तक देश की बड़ी आबादी अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा का हिस्सा तक नहीं बन पाई थी. दशकों तक भारत को मानो नियति के भरोसे छोड़ दिया गया हो.
भारत के ऐसे माहौल में जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि 'चलता है, चलने दो, कुछ नहीं हो सकता, एडजस्ट कर लो..' जैसी सोच में नई ऊर्जा का संचार किस तरह हो. जबकि देश की 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की है तो 50 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र की. जिनमें स्वाभाविक आकांक्षाएं भी हैं और राष्ट्र को प्रगति की नई ऊंचाईयों पर ले जाने का जज्बा भी. मोदी ने इस युवा भारत की युवा आकांक्षाओं को करीब से देखा-समझा और उनमें नई ऊर्जा का संचार पैदा करने के लिए 'न्यू इंडिया यानी नया भारत' की आवाज बुलंद की, ताकि जिस तरह जीवन में कुछ नया मिलने पर परिवार में हर व्यक्ति का उत्साह दिखता है, ठीक उसी तरह, एक सुरक्षित, समृद्ध और प्रगतिशील भारत के निर्माण के लिए कुछ नया करने का संकल्प व उत्साह पैदा हो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह माना जाता है कि वे विचारधारा के उस स्कूल से आते हैं जो समस्याओं से टकराने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने डिजिटल टेक्नोलॉजी को जिस तरह से ग्रहण किया है, अपनाया है वैसा किसी और नेता ने नहीं किया है. राजनीति और नीति में उन्होंने जिस तरह से इसका उपयोग किया है उसके कई सबूत मिल चुके हैं. अपनी राष्ट्रनीति में उन्होंने टेक्नोलॉजी और डिजिटल को ही आधार बनाया. प्रधानमंत्री ने तकनीक का बखूबी इस्तेमाल किया क्योंकि नई सदी में तकनीक की अहमियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि देश में पहली बार हुआ कि समाज की कतार में आखिरी में खड़ा व्यक्ति सरकारी योजनाओं का सीधा लाभार्थी बना. विज्ञान और तकनीक भारत के विकास का ऐसा उपकरण बना कि प्रशासनिक सुधार, बिजली, रेल सुधार, भ्रष्टाचार पर अंकुश, टैक्स पारदर्शिता, जीएसटी से एक देश-एक टैक्स, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, किसानों-महिलाओं के हित में कदम, शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव से लेकर रक्षा आधुनिकीकरण और दशकों से लंबित ऐसी परियोजनाएं साकार हो रही हैं, जो पहले असंभव लगती थी. नए भारत की अवधारणा को कुछ उदाहरणों से भी समझा जा सकता है
• क्या कभी कोई सोच सकता था कि माइनस 30 डिग्री तापमान वाले क्षेत्र लद्दाख में नल से जल मिल सकता है?
• असम का अभिशाप कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगीबिल ब्रिज का निर्माण इतनी तेजी से हो सकता है?
• क्या कभी कोई सोच सकता था कि रोहतांग में मनाली-लेह राजमार्ग पर अटल टनल के निर्माण का 26 साल बाद पूरा होने वाला सपना महज 6 साल में पूरा हो सकता है?
• देश के गांव-गांव मे रसोई गैस, बिजली, सड़क की सुविधा का विस्तार कुछ वर्षों में हो सकता है?
• 11 करोड़ शौचालय बनाकर देश को खुले में शौच से मुक्त कराया जा सकता है?
• 40 करोड़ गरीबों को जन-धन से बैंक खाते खोलकर उन्हें बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा जा सकता है?
• आयुष्मान भारत जैसी योजना से 50 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त 5 लाख रु. तक इलाज देकर देश यूनीवर्सल हेल्थकेयर की सुविधा दे सकता है?• क्या स्कूल के बच्चे खेल-खेल में अनोखे इनोवेशन करेंगे और 34 साल बाद देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सपना साकार हो सकता है?
• देश का युवा स्टार्टअप से रोजगार देने वाला बन सकता है?
• बोडो-ब्रू-रियांग जैसे समझौतों से दशकों की समस्या का समाधान हो सकता है?
• सिक्किम पहली बार भारत के एविएशन मैप पर उभर सकता है?
• क्या अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को ठीक कर जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में बराबरी के साथ खड़ा किया सकता है?
• क्या कोरोना जैसी आपदा के वक्त कोई नेतृत्व आत्मनिर्भर भारत की अलख जगाकर देश के अपार जनसमूह को उससे जोड़ सकता है?
देश में ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जो न सिर्फ संभव हुआ है बल्कि बेड़ियों को तोड़ नए भारत की दशा-दिशा निर्धारित कर रही हैं. दरअसल यही नया भारत है, जिसका मतलब है युवा शक्ति के सपने का निर्माण करना, एक ऐसा भारत जो नारी शक्ति की आकांक्षाओं को पूरा करता हो, जहां गरीबों के लिए आगे बढ़ने का पर्याप्त अवसर हो, गरीबों और मध्यम वर्ग की आकांक्षाएं भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाएं. अर्थव्यवस्था को गति देने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो और इन सभी के लिए सुशासन का ऐसा मंत्र हो जो बहुमत की बजाए सर्वसम्मति की सोच को बढ़ावा देता हो और "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास" जिसका ध्येय वाक्य हो. एक ऐसे भारत का निर्माण, जहां भारत को गरीबी, गंदगी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्त कराने का संकल्प हो. राष्ट्रवाद की प्रेरणा, अंत्योदय को दर्शन और सुशासन को मंत्र बनाकर देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की सोच के साथ समयबद्ध तरीके से अंतिम छोर तक विकास की पहुंच सुनिश्चित कर सही मायने में आजादी का अहसास कराने की पहल ही 'नया भारत' है. जिसका मकसद लोगों को आश्रित बनाना नहीं अब अधिकार देना लक्ष्य है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दृढ़ संकल्प के साथ पहल की तो उसका परिणाम भी दिख रहा है. भारत में आजादी के वक्त करीब 35 करोड़ आबादी थी और 70 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, उसी भारत में जब आबादी 130 करोड़ से अधिक हो चुकी है, लेकिन वित्तीय समावेशन की योजनाएं गरीबी रेखा से लोगों को बाहर निकालने में सहायक साबित हो रही है. विभिन्न मीडिया रिपोर्टस भी बताते हैं कि 22 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. यह दर्शाता है कि समावेशन की योजना ने सही मायने में सबको विकास की मुख्यधारा में समाहित कर सशक्तीकरण की राह पकड़ ली है. भारत में अब तेजी से नए मध्यम वर्ग का दायरा बढ़ रहा है. भारत में मध्यम वर्ग उपभोक्ताओं की संख्या अब 30 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जो अगले 10 वर्षों में दोगुनी होने की संभावना है. ऐसे में यह आवश्यकता बन गई है कि देश को नई दिशा दी जाए ताकि जन-जन की प्रगति से राष्ट्र समृद्ध हो.
देश के मौजूदा तेजी से विकासकार्यों के पीछे नरेंद्र मोदी की बदलाव की सोच महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसी का परिणाम है कि देश की जीएसटी गेमचेंजर ही नहीं, अर्थ क्रांति बन गई. अटल इनोवेशन मिशन और अटल टिकंरिग लैब से इनोवेटर्स के तौर पर 10 लाख बच्चों को आगे बढ़ाने का महत्वकांक्षी लक्ष्य नई सोच का उम्दा उदाहरण है. तकनीक और डिजिटल के बढ़ते महत्व और प्रभाव का नतीजा है कि नकद में वेतन देने की बजाए बैंक खाते, इलेक्ट्रॉनिक ओर मोबाइल से वेतन देना रोजगार सृजन की औपचारिक संस्कृति को जन्म दे रही है. सरकार के डिजिटल प्रयासों ने देश में नियोक्ताओं को रोजगार की सेवा शर्तों पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर किया है. श्रम सुधार एक बड़ी क्रांति के तौर पर देश को आगे ले जाने वाली है.
वैश्विक स्तर पर भारत की छवि मजबूत हो रही है तो सरकार की सोच में सबसे महत्वपूर्ण बनी जनभागीदारी नवनिर्माण का मार्ग प्रशस्त कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में ही, "मेरी 'भारत की अवधारणा' न केवल सहिष्णुता पर आधारित है बल्कि यह विचारों की विविधता का प्रसन्नता पूर्वक समावेश करती है. जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की संवेदना का सम्मान किया जाता है. 'भारत की अवधारणा' के केन्द्रीय सिद्धान्त का सृजन सत्य, शांति और अहिंसा से होता है. हमारे शास्त्र 'सत्यमेव जयते' की शिक्षा देते हैं, जिसका अर्थ है कि विजय सत्य की ही होती है. मैं एक ऐसे भारत के लिए प्रतिबद्ध हूं जहां न्याय का चक्र वर्ग, जाति या पंथ से प्रभावित हुए बिना भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए तेजी से और समान रूप से घूमता हो. एक ऐसा भारत जहां अन्याय के लिए किसी भी तरह की कानूनी या नैतिक वैधता न हो."
नि:संदेह भारत के पास अकल्पनीय प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा है. सदियों से पूर्वजों द्वारा विकसित की गई गौरवशाली परंपरा और संस्कृति की महान विरासत है. भारतीय सभ्यता इकलौती ऐसी है जो हमेशा समय की कसौटी पर खरी उतरी है, जबकि अन्य सभ्यताएं आईं और गईं, समाज-समुदाय पनपे और बिखर गए. इतिहास साक्षी है कि भारत ने हर चुनौती को पार किया और हर बार पहले से भी मजबूत हो कर उभरा है. 'न्यू इंडिया यानी नया भारत' भी भारत के अभिमान से जुड़ गया है जो संकल्प से लैस भारत को सशक्त बनाने की ओर अग्रसर है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
संतोष कुमार वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामनाथ गोयनका, प्रेस काउंसिल समेत आधा दर्जन से ज़्यादा पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। भाजपा-संघ और सरकार को कवर करते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव पर भाजपा की जीत की इनसाइड स्टोरी पर आधारित पुस्तक "कैसे मोदीमय हुआ भारत" बेहद चर्चित रही है।