आदिवासी दुनिया के सभ्यागत मूल्य की रक्षा के संदेशवाहक थे बिरसा मुंडा

मुंडा लोकगीतों में बिरसा मुंडा क्रांतिकारी सामाजिक सांस्कृतिक नैतिकता के प्रेरक नायक के बतौर याद किए जाते रहे हैं

Update: 2022-06-10 09:23 GMT

Faisal अनुराग

by Lagatar News

मुंडा लोकगीतों में बिरसा मुंडा क्रांतिकारी सामाजिक सांस्कृतिक नैतिकता के प्रेरक नायक के बतौर याद किए जाते रहे हैं. स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष के अवसर पर उन तमाम राजनैतिक प्रवृतियों की नए सिरे से खोज हो रही है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम की वैचारिक नींव तैयार की. बिरसा मुंडा की विरासत रस्मी स्मृतियों से सावधान करती है और आदिवासी समाज की आंतरिक शक्ति के स्रोतों को समझने की चुनौती देती है. सदियों से आदिवासी स्वायत्ता और स्वतंत्रता के लिए लड़ते आए हैं. संघर्ष की अटूट प्रेरणा अंतत: वे कहां से हासिल करते रहे हैं. इस सवाल की छानबीन करने वाले इतिहासकारों ने दुनियाभर के आदिवासियों के स्वतंत्र और स्वायत्त सामाजिक चेतना के कॉमन तत्व पर बहुत कुछ लिखा है.
भारत में भी आदिवासियों ने किसी भी कालखंड में किसी की भी अधीनता को स्वीकार नहीं किया. बिरसा उलगुलान का वैश्विक महत्व यह है कि उसने एक नए राजनैतिक दर्शन को जमीन पर उतारने का प्रयत्न किया. एक ऐसा राजनैतिक विचार जिसने साम्रज्यवाद की पहचान करते हुए समानता, स्वतंत्रता, सहकार को रेखांकित किया. ये वही तत्व हैं, जिसे बाद में भारत के संविधान की प्रस्तावना का भारी हिस्सा बनाया गया. हालांकि दुनिया की क्रांतियों की मूल चेतना का बुनियादी आधार ये मूल्य ही रहे हैं. फ्रांस की राज्यक्रांति के बाद इन मूल्यों का सारी दुनिया ने लोकतंत्र के बुनियादी आधार के बतौर स्वीकार किया. आदिवासी व्रिदेाहों और क्रांतियों में पहले से ही ये तत्व मौजूद थे, इसका एक बड़ा कारण यह है कि आदिवासी जीवन शैली,प्रक्रिया और प्रवृति में लोकतंत्र,स्वतंत्रता,समानता और सहकार अंतरनिहित हैं. संविधान सभा में बोलते हुए मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था, जिस लोकतंत्र को भारत अपनाने जा रहा है, वह आदिवासी जीवन के बुनियादी आधार के बतौर जीवंत है.
हिंदी कविता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान बना चुके आदिवासी कवि और विचारक अनुज लुगुन ने शहादत दिवस को याद करते हुए कहते हैं: दुनिया ने बिरसा के इतिहास को भुला दिया था,लेकिन आदिवासी समाज ने उसे अपनी स्मृतियों में सहेज कर रखा, अपनी मौखिक-पुरखा परंपराओं में जीवित रखा. आदिवासी मौखिक-पुरखा परंपरा के दस्तावेज बाहर आये और दुनिया एक ऐसे क्रांतिकारी से परिचित हुई, जिन्होंने एक ऐसी सत्ता के विरूद्ध तीर-धनुष और मशाल लेकर उलगुलान किया. जिसके बारे में कहा जाता था कि 'उसके राज का सूरज कभी अस्त नहीं होता था.
अनुज लुगुन के ही शब्दों में आदिवासी पुरखा अभिव्यक्तियों ने बिरसा को जीवित रखा. ऐसी कई पुरखा अभिव्यक्तियां हैं, जिनमें आदिवासी समाज का इतिहास और दर्शन मौजूद हैं. लेकिन वो अब भी गुमनाम हैं. बिरसा मुण्डा और उसके साथी अंग्रेजी औपनिवेशिक-दिकू वर्चस्ववादी शक्तियों के विरुद्ध लड़ रहे थे और एक नयी धारा सृजित कर रहे थे, यह आदिवासी दुनिया का सभ्यागत मूल्य है. यानी 'सहजीविता-स्वायत्तता' एक ओर, दूसरी ओर 'वर्चस्व और सत्ता'. आज की दुनिया में भी यही हो रहा है. एक तरफ आदिवासी दुनिया की 'सहजीविता-स्वायत्तता' है और दूसरी तरफ औपनिवेशिक-दिकू दुनिया का 'वर्चस्व और सत्ता'. आज भी सहजीविता और स्वायत्तता की लड़ाई बड़ी लड़ाई है. बिरसा आबा हमें इसकी वैचारिक शिक्षा देते हैं. बिरसा आबा न केवल जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के दार्शनिक-वैचारिक स्तंभ हैं, बल्कि आज की नव-साम्राज्यवादी, पूंजीवादी दुनिया के प्रतिपक्ष भी हैं.

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