कर्नाटक में कट्टरता: कारोबार को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिशों के खिलाफ बोलने का वक्त आ गया है

कर्नाटक में कट्टरता

Update: 2022-04-02 06:25 GMT
के वी रमेश।
एक मशहूर मुहावरा है, वक्त की दरकार हो तो कोई ऐसा व्यक्ति सामने आ ही जाता है जो परिस्थितियों को बदल देता है. इस बार एक फर्क है, इस बार एक महिला सामने आई है. किरण मजूमदार-शॉ (Kiran Mazumdar-Shaw) ने धार्मिक बंटवारे के खतरे को लेकर कर्नाटक (Karnataka) के मुख्यमंत्री को चेताया है. इस समय यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि ये सिर्फ ध्रुवीकरण के खतरे को ही रेखांकित नहीं करता है बल्कि अपने साथी उद्योगपतियों की बुज़दिली को भी उजागर करता है. वाकई इस मुहिम में मजूमदार-शॉ अकेली नहीं हैं. कैप्टेन जीआर गोपीनाथ (G. R. Gopinath) ने भी इस ट्रेंड के खिलाफ सरकार को चेताया है.
कैप्टेन गोपीनाथ ने भारत में सबसे पहले कम लागत वाली एयरलाइन की शुरूआत की थी और आम आदमी के हवा में उड़ने के सपने को पंख दिया था. थर्मैक्स की अनु आग़ा ने 1992 में गुजरात सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया था. अनु आग़ा का मानना था कि राज्य में हत्याओं को रोकने के लिए सरकार पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है. किरण एम-एस को जब मौका मिला तब उन्होंने अपना विरोध दर्ज किया है. साल 2019 में "कॉफी डे" के संस्थापक वी जी सिद्धार्थ की आत्महत्या के बाद उन्होंने 'टैक्स टेररिज्म' का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.
कर्नाटक में बढ़ती सांप्रदायिक खाई परेशान कर ही रही है
जाहिर है सरकार नाराज हुई लेकिन वो एक अखबार को ऐसा कहने से कभी नहीं हिचकिचाती थीं. और गोपीनाथ ने तो हिजाब समर्थकों और विरोधियों दोनों पर ही हमला किया और कहा कि ये एक निरर्थक विवाद है. और फिर उन्होंने एयर इंडिया के सीईओ के रूप में तुर्की एयरलाइन के इलकर आयसी की नियुक्ति को महज अंधराष्ट्रवाद के तहत खारिज कर दिए जाने के फैसले की भी तीखी आलोचना की थी. बेशक कर्नाटक में बढ़ती सांप्रदायिक खाई तो परेशान कर ही रही है लेकिन उससे भी ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि सांप्रदायिक अराजकता की तरफ भारत की फिसलन को लेकर कॉरपोरेट लीडर अभी तक खामोश हैं.
वायरल हो चुके कुछ मजेदार वीडियो को ट्वीट करने वाले कुछ अद्योगपति अपनी बचकानी चिंता का इजहार भले ही करते हैं लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि ये उद्योगपति पूरी तरह से दूसरी दुनिया में रह रहे होते हैं. ऑक्सफैम रिपोर्ट 2020 के मुताबिक बहुत सारे पुरुष और महिलाएं ऐसी हैं जो काफी ताकतवर हैं. उनमें से केवल एक प्रतिशत के पास भारत की 40 प्रतिशत संपत्ति है और अपने फायदे के लिए भारत की कॉर्पोरेट नीतियों को वो प्रभावित भी कर सकते हैं.
लेकिन ऐसा हमेशा ही नहीं होता था. स्वतंत्रता–संग्राम के दौर में बहुत सारे उद्योगपति ऐसे थे जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे या फिर तटस्थ रहते थे. लेकिन कुछ जमनालाल बजाज की तरह भी थे जो सत्याग्रहियों का समर्थन करते थे, अंग्रेज–विरोधी आंदोलन को आर्थिक मदद देते थे, सत्याग्रह में शामिल होते थे और यहां तक कि जेलों में भी कुछ वर्ष गुजारे थे. गांधी जी उन्हें "मर्चेंट प्रिंस" के नाम से बुलाते थे. जीडी बिड़ला, अम्बालाल साराभाई और वालचंद हीराचंद का स्वतंत्रता संग्राम में कम योगदान नहीं था. जमनालाल के पोते राहुल बजाज तो उन्हीं के जैसे थे. वो भी अपने दादा की तरह देशभक्ति के गौरव से ओतप्रोत थे. और उन्होंने दो पहिया वाहन बनाकर सबसे पहले भारत को "दिल की धड़कन" दी थी.
आज कर्नाटक में आराजकता की स्थिति है
बहरहाल अब वापस मौजूदा हालात की ओर लौटते हैं. आज कर्नाटक में आराजकता की स्थिति है. इस सूबे के ताज का रत्न बंगलुरू है जिसे भारत के तकनीकी और उद्यमशीलता कौशल का बतौर शोपीस जाना जाता है. भारत के दो सबसे मूल्यवान आईटी संस्थान, इंफोसिस और विप्रो टेक्नोलॉजीज, की स्थापना यहीं हुई थी. यहां स्व-निर्मित अरबपतियों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या मौजूद है. इसमें 35 तो ऐसे हैं जिनके बिजनेस इंटरप्राइज की कीमत एक बिलियन डॉलर से ज्यादा है. इनमें से 18 तो साल 2021 में इस रैंक में शामिल हुए हैं.
और भारत में पारिवारिक व्यवसायों के विपरीत इन अरबपतियों ने अपना मुकद्दर खुद बनाया. ये लोग सेल्फ-मेड हैं. फ्लिपकार्ट की स्थापना करने वाले सचिन बंसल और बिन्नी बंसल हो या फिर BYJU's, Zerodha, Swiggy, CRED, Ola, Unacademy, Udaan, Acko General, Inmobi, Liv Space, Licious को लेकर सभी ने सपने देखे, कल्पना की, हकीकत में बदला और फिर उसकी परवरिश की. औऱ इसी शहर की भारत की पहली सेल्फ-मेड महिला अरबपति किरण हैं. और अगर वो बाहरी लोगों की मेहमानबाजी के लिए मशहूर राज्य में हो रहे घटनाक्रमों को लेकर चिंतित हैं, तो अन्य अरबपतियों को भी फिक्रमंद होना चाहिए.
आखिर ऐसी क्या बात है जो उन्हें अपनी चिंताओं को व्यक्त करने से रोक रहा है, क्या उनका आक्रोश नेक नहीं है? निश्चित रूप से फिलानथ्रोपिस्ट अजीम प्रेमजी इन घटनाओं को लेकर चिंतित हैं. और एनआर नारायण मूर्ति भी ऐसे ही चिंचित होंगे. आखिर इन्हीं दोनों ने मिलकर तो ब्रांड बेंगलुरु का निर्माण किया है? ये ऐसे आइकॉन हैं जिन्होंने आधे मिलियन युवा भारतीयों को उच्च आय वाला रोजगार प्रदान किया. ये एक ऐसी उपलब्धि है जिसको लेकर कई राज्य सरकारें गर्व से ढिंढोरा पीट रही होती. फिर वे क्यूं खामोश हैं?
भारत आज एक चौराहे पर खड़ा है
भारत आज एक चौराहे पर खड़ा है. एक रास्ते पर निकल कर वो दुनिया की एक महाशक्ति बन सकता है तो दूसरे खतरनाक रास्ते पर चलकर सांप्रदायिक संघर्षों में डूब सकता है. ऐसे नाजुक दौर में इन ताकतवर लोगों की खामोशी निस्संदेह ही एक अपशकुन है. आज पूरी दुनिया एक दूसरे से जुड़ी हुई है. संचार क्रांति की वजह से हम किसी से कुछ भी छिपा नहीं सकते हैं. नतीजतन, इस तरह के ध्रुवीकरण से दुनिया में भारत की बदनामी ही हो रही होगी. अगर हालात इसी तरह बढ़ती रहीं तो वो दिन दूर नहीं जब भारत के उद्योगपतियों को भी रूसी कुलीन वर्ग के रूप में माना जाएगा जो सिर्फ सही और गलत की बात ही करते रहते थे. सरकार के साथ सहयोग करने वाली रूसी फर्मों के खिलाफ कठोर पश्चिमी प्रतिबंध आंखें खोलने वाले हैं.
नाजी जर्मनी में अल्पसंख्यक यहूदियों के खिलाफ अपराधों के मद्देनज़र IG Farben, ThyssenKrupp, Bayer, BASF जैसी जर्मन फर्में अभी तक उस खामोशी के सलीब को ढो रहीं हैं. ये अलग बात है कि वो इस अपराध में शामिल नहीं थे. आज भी, वे कानसेन्ट्रेशन कैम्पों में यहूदियों की हत्या और जर्मनी के युद्ध – अपराधों में अपनी संलिप्तता के आरोप से मुक्त नहीं हो पाए हैं. पश्चिमी दुनिया की राइट्स लॉबी काफी मजबूत है. वे अपने स्वयं के स्वार्थी कारणों से दूसरों को पवित्र लेक्चर तो सुना सकती है लेकिन साथ ही वे व्यापार और व्यापार संबंधों को भी प्रभावित कर सकती हैं.
भारत का कालीन उद्योग जिस पर बच्चों से मजदूरी कराने का आरोप है और बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग जहां मजदूरों का काफी शोषण होता है, दोनों को ही दंडात्मक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा है. यूएनएचसीआर और अमेरिकी निर्वाचित प्रतिनिधि बाजों की तरह इस तरह के मामलों को देखते हैं. यूक्रेन संघर्ष पर भारत ने स्वतंत्र रुख अपनाया हुआ है. बहरहाल, रूस के साथ व्यापार करने वाली संस्थाएं पश्चिमी दंडात्मक प्रक्रियाओं के निशाने पर रह सकती हैं. इसके अलावे, चार्जशीट में अतिरिक्त आरोप ये होगा कि जब भारत बहुसंख्यकवाद में फिसल रहा था तब वे चुप थे. सही कहा गया है कि जो सचेत होता है वही सबल होता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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