यह भी एक छोटी समस्या है, बड़ी समस्या है आपके ईमेल और इंटरनेट से जुड़ी अन्य सुविधाओं, खासकर बैंकिंग सुविधाओं के पासवर्ड की चोरी। नोटबंदी के बाद से भारतवर्ष में ऑनलाइन खरीददारी करने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। बस, रेल और हवाई टिकटें बुक करवाने के लिए ही नहीं, सब्ज़ी, राशन, दवाइयां तथा हर तरह की अन्य ऑनलाइन खरीददारियों के लिए आप क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड का प्रयोग करते हैं। ऐसे में आपका पासवर्ड ही आपकी खरीददारी का साधन है। किसी ज़माने में पासवर्ड शब्द बड़े अपराधियों और स्मगलरों के बीच हुआ करता था, लेकिन अब यह एक घरेलू शब्द है। तकनीकी तरक्की ने हर घर और हर व्यक्ति को कोई न कोई पासवर्ड थमा दिया है। अक्सर लोग अपने बैंक एटीएम, ईमेल और अन्य वेबसाइट्स के लिए एक ही पासवर्ड रखते हैं और उसे वर्षों तक बदलते नहीं हैं। मोबाइल से इंटरनेट और नेट बैंकिंग सुविधा का प्रयोग करते हैं, नेटबैंकिंग के लिए आसान पासवर्ड रखते हैं और मोबाइल फोन में एंटीवायरस नहीं रखते। यह सुरक्षित व्यवहार नहीं है और ऐसे सभी लोग हैकरों के आसान शिकार हो सकते हैं। समस्या यह है कि भारतवर्ष में पासवर्ड चुराने वाले किसी भी दोषी को आज तक कोई सजा नहीं हुई है। हमारा कानून ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए एकदम अपर्याप्त है। पुलिस पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं है। पासवर्ड चोरी करने वाले अपराधी पर सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 लागू होता है जिसमें अब तक कई संशोधनों के बाद अब अधिकांश साइबर क्राइम को जमानती अपराध घोषित कर दिया गया है। अपराधी इसका लाभ उठाकर बच निकलते हैं। तकनीक ने इतनी प्रगति कर ली है कि हम पासवर्ड के मामले में बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं।
पासवर्ड चुराने के लिए ब्रूटफोर्स पासवर्ड क्रैकर तथा की-लॉगर जैसे विशिष्ट सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं, जो अपराधियों का काम और भी आसान कर देते हैं। इसके अलावा भी पासवर्ड चुराने की कई उन्नत तकनीकें विकसित हो चुकी हैं। पासवर्ड चुराने के बाद बैंक खाते से पैसे निकालना, अकाउंट का ब्योरा लेना, व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक गोपनीय जानकारियां लेना आदि संभव हो जाता है। किसी जमाने में आठ अक्षरों वाले पासवर्ड को सुरक्षित माना जाता था, फिर कहा जाने लगा कि अल्फा-न्यूमेरिक, यानी अक्षरों और अंकों के संयोजन से बनने वाले पासवर्ड सुरक्षित हैं, फिर कहा जाने लगा कि असामान्य किस्म का (अनयूजुअल) अथवा जटिल पासवर्ड ही ज्य़ादा सुरक्षित है। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि अल्फान्यूमेरिक पासवर्ड भी तोड़े जा सकते हैं। आज बड़े पैमाने पर सूचनाएं चुराई जा रही हैं। अतः पासवर्ड की सुरक्षा के प्रति लापरवाही खतरनाक है। विशेषज्ञों की सलाह है कि पासवर्ड में 12 से ज्यादा अक्षरों-अंकों-चिन्हों का संयोजन हो, अपनी सामान्य पहचान, व्यवहार और स्वाभाव के विपरीत जाकर पासवर्ड चुनें, बैंकिंग पासवर्ड हमेशा अलग बनाएं तथा अन्य पासवर्ड भी अलग-अलग बनाएं, नेट सुविधा वाले मोबाइल का सुरक्षित पासवर्ड बनाएं, ब्लू टूथ ऑन न रखें और मोबाइल फोन सेट में भी एंटीवायरस ऐप्स रखें। अब बायोमीट्रिक पासवर्ड की बातें की जा रही हैं जिसमें फिंगर प्रिंट, रेटिना स्कैन, फेस आइडेंटिफिकेशन आदि तरीके भी शामिल हैं, हालांकि इनको भी हैक करने के प्रयत्न आरंभ हो चुके हैं। फिलहाल विशेषज्ञों की राय है कि आपके पासवर्ड में सिंबल, कैरेक्टर, कैपिटल लैटर और नंबर का इस्तेमाल होना चाहिए। इससे पासवर्ड के बिट्स बढ़ते चले जाएंगे और पासवर्ड को तोड़ना आसान नहीं होगा।
हमें एक और महत्त्वपूर्ण अंतर जानने की आवश्यकता है। पासवर्ड क्रैक होना और चोरी होना, दो अलग बातें हैं। हमारे यहां पासवर्ड चोरी ज्य़ादा होते हैं। अतः हमें मित्रों, रिश्तेदारों और परिचितों से भी सावधान रहना चाहिए। हम की-लॉगर नामक सॉफ्टवेयर का जिक्र कर ही चुके हैं। यदि किसी कंप्यूटर में यह सॉफ्टवेयर डाल दिया जाए तो यह हिडन मोड में आ जाता है और उस कंप्यूटर में जो कुछ भी टाइप किया जाएगा, वह पूरा का पूरा रिकार्ड हो जाएगा। इस तरह उस कंप्यूटर का पूरा डाटा चुराया जा सकता है। वर्ष 2004 में बिल गेट्स ने पासवर्ड के खात्मे की भविष्यवाणी की थी और अब यह सच साबित होने लगी है। अब वॉयस पासवर्ड, रेटिना, पुतली और स्कल स्कैन जैसी बायोमीट्रिक तकनीकें विकसित हो रही हैं। ब्रेन वेव्स और हार्ट बीट को भी पासवर्ड बनाने पर काम चल रहा है। कई संस्थानों में नसों से कर्मचारियों को पहचानने पर काम चल रहा है। गूगल भी साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए दोहरे पासवर्ड की व्यवस्था लागू करने पर काम कर रहा है। इस सबके बावजूद सबसे सुरक्षित यही है कि हम खुद अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। आवश्यकता इस बात की है कि हम सजग हों, अपने डाटा की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें, पासवर्ड आसान न रखें, शहरों, मोहल्लों, परिवारजनों, मित्रों आदि के नाम से संबंधित पासवर्ड न बनाएं। अपनी सुरक्षा खुद करें। इसी में हमारी भलाई है।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
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