बेइमान इमरान और पाकिस्तान '
'पाकिस्तान के पिछले 74 सालों के इतिहास में यहां के सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह मुल्क में संविधान की व्यवस्था कायम करने के लिए पहली बार सत्ता में बैठी सरकार के ‘गैर संवैधानिक’ फैसलों को निरस्त करने का फैसला दिया है
आदित्य चोपड़ा: 'पाकिस्तान के पिछले 74 सालों के इतिहास में यहां के सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह मुल्क में संविधान की व्यवस्था कायम करने के लिए पहली बार सत्ता में बैठी सरकार के 'गैर संवैधानिक' फैसलों को निरस्त करने का फैसला दिया है उससे यही साबित हुआ है कि इस देश में संसदीय लोकतन्त्र का भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए यहां की 'संवैधानिक' संस्थाएं ऐसे जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं जिनमें उनकी स्वतन्त्रता व निष्पक्षता के साथ किसी प्रकार का समझौता न किया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला देकर विगत 3 अप्रैल को पाकिस्तान की संसद में इसके उपाध्यक्ष कासिम खां सूरी द्वारा दिये गये उस निर्णय को गैर संवैधानिक करार दे दिया है जिसमें उन्होंने संयुक्त विपक्ष द्वारा इमरान सरकार के खिलाफ रखे गये 'अविश्वास प्रस्ताव' पर मतदान कराने की जगह संसद का सत्र ही यह कह कर स्थगित कर दिया था कि यह प्रस्ताव कुछ विदेशी ताकतों के साथ साजिश करके विपक्ष लाया है अतः पूरा मामला पाकिस्तान के संविधान के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्र विरोध का बनता है । जब 3 अप्रैल को कासिम सूरी ने संसद के अध्यक्ष पर विराजमान होकर यह फैसला दिया था तो पूरी दुनिया के सभी लोकतान्त्रिक देशों में यह सन्देश चला गया था कि पाकिस्तान कभी भी संविधान से चलने वाला सभ्य देश नहीं हो सकता क्योंकि इसकी संसद में ही सरेआम संविधान और लोकतन्त्र का कत्ल किया जा रहा है। हैरतंगेज यह था कि संसद की बैठक केवल अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने के लिए ही बुलाई गई थी और उसी को पीठासीन अधिकारी ने बर तरफ कर दिया था। इतना ही नहीं इसके 15 मिनट के भीतर ही प्रधानमन्त्री इमरान खान ने राष्ट्रपति आरिफ अल्वी से सिफारिश कर दी कि वह संसद भंग कर दे और नये चुनाव करायें जिसके आधार पर राष्ट्रपति ने भी इसी आशय की अधिसूचना जारी कर दी और मुल्क के चुनाव आयोग से 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने को कहा। 3 अप्रैल को ऐसा लगा कि पाकिस्तान में संविधान ऐसी किताब है जिसे कोई भी वजीरेआजम अपने हिसाब से लिख सकता है और उसके मनचाहे प्रावधान को लागू करके लोगों द्वारा चुनी हुई संसद के सदस्यों को भेड़-बकरी समझ कर हांक सकता है। इसकी सिर्फ एक ही वजह थी कि पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान पाकिस्तान की संसद को एेसे खेल के मैदान में तब्दील कर देना चाहते थे जिसमें 'अम्पायर' ही खुद किसी टीम के साथ खेलने लगे।मगर इस बार जो बदलाव आया है वह पाकिस्तान की जनता की 'हक पसन्दी' का इजहार करता है और इस तरह करता है कि इस मुल्क के लोगों को भी लोकतन्त्र में जीने का अधिकार है। हालांकि पाकिस्तान में कई बार संविधान बना और टूटा मगर 1973 में इस मुल्क में जो संविधान बना था उसमें संसदीय परंपराओं और कानून के शासन को वरीयता दी गई थी । यह बात दीगर है कि इसी संविधान में अहमदिया मुसलमानों को गैर मुस्लिम करार दिया था और प्रधानमन्त्री व राष्ट्रपति के पद पर केवल मुस्लिम नागरिक को ही मुल्तखिब करने की शर्त लागू कर दी गई थी जबकि इससे पहले केवल राष्ट्रपति पद पर ही गैर मुस्लिम नहीं बैठ सकता था। इसके बावजूद ऐसी व्यवस्था लागू की गई थी कि संसद की सर्वोच्चता को प्राथमिकता मिले और स्वतन्त्र न्यायपालिका भी काम करे। हम सभी जानते हैं कि इसके बाद पाकिस्तान में दो बार फौजी शासन( जनरल जियाउल हक व जनरल परवेज मुशर्रफ) लागू हुआ और संविधान को स्थगित करके ही हुआ और जनरल जिया के शासनकाल में ही 'ईश निन्दा' जैसा इस्लामी बर्बर कानून भी बनाया गया। मगर इमरान खान तो 2018 के चुनावों में पाकिस्तान को 'रियासते मदीना' बनाने और 'बल्ला घुमाओ-भारत हराओ' जैसे बयानिया (विमर्श) को हवा में लहराते हुए गद्दी नशीं हुए थे और साढ़े तीन साल में ही पाकिस्तान को दुनिया का सबसे बड़ा भिखारी मुल्क बना डाला है और यहां के लोगों के जीवन को दोजख में इस कदर तब्दील किया है कि यहां लौकी डेढ सौ रुपए किलो बिक रही है और सेब पांच सौ रुपए किलो बिक रहे हैं। संपादकीय :शांति का पक्षधर भारतकोरोना की चौथी लहरअल-कायदा और 'हिजाब-विवाद'भारत का मानवीय पक्षभावनात्मक मुद्दों पर निकल आई सियासी तलवारेंवरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की हैदराबाद शाखा का हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन संपन्नपाकिस्तानी रुपये की कीमत डालर के मुकाबले 190 रुपए से ऊंची पहुंच चुकी है। पाकिस्तान पर पचास हजार अरब रुपए का कर्जा चढ़ चुका है । दुनिया का कोई भी मुल्क इस पर एतबार करने को तैयार नहीं है। मगर क्या कयामत है कि जब पाकिस्तान के ही लोगों के चुने हुए नुमाइन्दों ने इमरान खान की बेइमानियों का पर्दाफाश करना शुरू किया तो उन्होंने अपने मुल्क की संसद को ही बेइमान बनाने के लिए 'क्रिकेट बैटिंग' ( जुआखाना) की चाल चल दी। मगर इस देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इमरान खान को रंगे हाथों पकड़ कर पूरे मुल्क में कानूनी राज कायम करने का जो ऐलान जारी किया है उससे कहीं कोई ऐसी रोशनी की किरण दिखाई पड़ रही है कि यह मुल्क भी सभ्य बन सके और यहां के सांसदों को भी समझ में आ सके कि संविधान में कितनी ताकत होती है।