चुनाव से पहले

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही मतदाता सूची में संशोधन को लेकर विवाद खड़ा हो गया। इससे वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को लेकर आशंकाएं पैदा होना लाजिमी हैं।

Update: 2022-08-20 05:20 GMT

Written by जनसत्ता: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही मतदाता सूची में संशोधन को लेकर विवाद खड़ा हो गया। इससे वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को लेकर आशंकाएं पैदा होना लाजिमी हैं। मतदाता सूची संशोधन को लेकर राजनीतिक दलों की ओर से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, उससे भी सवाल तो उठ ही रहे हैं।

गौरतलब है कि राज्य में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी चल रही है। हालांकि अभी इसका औपचारिक एलान नहीं हुआ है। अभी राज्य चुनाव आयोग ने सिर्फ मतदाता सूची में नए मतदाताओं को शामिल करने का एलान किया है। ऐसे में चुनावों को लेकर यदि अभी से ही लोगों के भीतर संशय पैदा होने लगें तो इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जाएगा।

ताजा विवाद पच्चीस लाख नए मतदाताओं के नाम जोड़ने की चुनाव आयोग की घोषणा से उठा है। आयोग ने कहा है कि संशोधित मतदाता सूची में उन प्रवासी लोगों के भी नाम जोड़े जाएंगे जो रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरे प्रदेशों से यहां आए हैं और अस्थायी रूप से रह रहे हैं।

चुनाव से पहले मतदाता सूची में नए नाम जोड़ने का काम एक सामान्य प्रक्रिया है। चुनावों से पूर्व हर राज्य का चुनाव आयोग यह काम करता है। यही जम्मू-कश्मीर में हो रहा है। देश के दूसरे प्रदेशों से जो लोग वहां गए हैं और रह रहे हैं, उन्हें अगर वोट डालने का अधिकार दिया जाता है तो इसमें अनुचित क्या है?

हालांकि अगस्त 2019 के पहले यह इसलिए संभव नहीं था कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था। लेकिन अब तो अनुच्छेद-370 को समाप्त किया जा चुका है। अब भारत के हर नागरिक के लिए जम्मू-कश्मीर भी वैसा ही राज्य है जैसे दूसरे राज्य। वैसे भी वर्षों से वहां बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार खेतिहर मजदूर से लेकर दूसरी तरह के छोटे-बड़े कामों में लगे हैं और अपनी आजीविका चला रहे हैं।

ये लोग भी जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में वैसा ही योगदान दे रहे हैं जैसे कि वहां के मूल निवासी। इसलिए जब इन्हें रोजगार से लेकर सारे दूसरे अधिकार हासिल हैं तो मतदान का अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए? मतदाता सूची में संशोधन का विरोध कर रहे राजनीतिक दलों को इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

जैसा कि निर्वाचन आयोग के आंकड़े बता रहे हैं कि मतदाता सूची में 76.4 लाख मतदाता हैं। इनमें पच्चीस लाख लोग और जुड़ जाने पर यह आंकड़ा एक करोड़ के ऊपर निकल जाएगा। जाहिर है, ऐसे में राजनीतिक दलों के जीत-हार के समीकरण भी बदलेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि यही डर प्रदेश के राजनीतिक दलों को सता रहा है।

जम्मू-कश्मीर में प्रवासी कामगारों की संख्या साढ़े सात लाख के आसपास है। इसके अलावा बड़ी संख्या में सुरक्षाबल भी वहां तैनात हैं। अगर इन सभी को मताधिकार मिल गया तो नतीजे बड़े उलटफेर वाले हो सकते हैं। अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के पहले सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी ही वोट डाल सकते थे। लेकिन अब स्थिति बदल गई है।

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक अगर कोई मतदाता दूसरी जगह अस्थायी रूप से रह रहा है तो वह वहां वोट डाल सकता है, बशर्ते उसे अपने मूल निवास स्थान की मतदाता सूची से नाम हटवाना होगा। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर उनकी सभी आशंकाओं को दूर करे।

मतदाता सूचियों के संशोधन में किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो और उन्हीं लोगों को इसमें शामिल किया जाए जो अपने मूल राज्य की मतदाता सूची से नाम हटवाने का प्रमाण दें, चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना ही होगा।


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