चीन का बड़बोलापन
लद्दाख मुद्दे पर चीन की दोहरी नीति गाहे-बगाहे उजागर होती रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लद्दाख मुद्दे पर चीन की दोहरी नीति गाहे-बगाहे उजागर होती रही है। चीनी सरकारी मीडिया द्वारा गाहे-बगाहे दी जाने वाली गीदड़ भभकी उसकी हताशा को ही उजागर करती है। ऐसे वक्त में जब बीते सोमवार को सैन्य कमांडर स्तर की सातवें दौर की बातचीत हुई और वार्ता के जरिये चीन ने गतिरोध दूर करने की इच्छा भी जतायी, लेकिन कोई ठोस कदम उठाने की ईमानदार कोशिश होती नजर नहीं आई। वहीं मंगलवार को चीनी राष्ट्रपति अपनी सेना को युद्ध के लिये तैयार रहने के लिये कहते नजर आये। निस्संदेह जिस अविश्वसनीय व्यवहार के लिये चीन जाना जाता है, उसकी बानगी लद्दाख मुद्दे पर फिर नजर आ रही है। कभी वह लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में मान्यता देने से इनकार करता है तो कभी अरुणाचल को लेकर तल्ख प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। वह अक्सर आक्रामक व्यवहार के जरिये भारत पर दबाव बनाने की कोशिश में रहता है। कभी चीनी विदेश मंत्रालय दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में सीमा पर तनाव कम करने के लिये हुए पांच सूत्रीय समझौते के क्रियान्वयन की बात करता है लेकिन व्यवहार में उसका पालन नहीं करता। चीन की रणनीति हमेशा से पड़ोसियों को युद्ध की आशंकाओं में उलझाये रखने की रही है। वहीं दूसरी ओर एल.ए.सी. पर अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिये भारत द्वारा बुनियादी ढांचे के विस्तार और सैन्य तैनाती को लेकर वह सवाल खड़े करता रहता है। ऐसे ही अरुणाचल को लेकर नये-नये विवाद खड़े करने में लगा रहता है और भारतीय नेताओं की यात्रा को लेकर तल्ख प्रतिक्रिया व्यक्त करता रहता है। दरअसल, एक ओर चीन वार्ता का ढोंग रचाकर दुनिया को दिखाना चाहता है कि वह बातचीत के जरिये समस्या का समाधान करना चाहता है पर भारत इस दिशा में गंभीर नहीं है। दरअसल चीन गतिरोध का ठीकरा भारत के सिर फोड़ना चाहता है। वास्तव में भारतीय सेना की सतर्कता और जवाबी कार्रवाई से इन इलाकों में चीन बैकफुट पर नजर आता है। दरअसल, आने वाले महीनों में बर्फीले मौसम की चुनौती भी चीन के मंसूबों पर पानी फेर रही है। इसी कुंठा में वह लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने के भारत के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप कर रहा है। कहीं न कहीं वह पाकिस्तान को समर्थन देने वाली भाषा बोल रहा है, जिसके जरिये वह अंतर्राष्ट्रीय जनमत को भ्रमित करने का प्रयास भी कर रहा है। इस साल अगस्त में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के एक साल पूरा होने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने यह मुद्दा उठाया था। उसने भारत के फैसले को 'अवैध' व 'अमान्य' बताया, लेकिन वहां उसके मंसूबों पर पानी फिर गया। आगे भी इस मुहिम में उसे निराशा ही हाथ लगेगी। भारत आरंभ से ही पूर्वी लद्दाख में अप्रैल से पूर्व की स्थिति को बहाल करने पर ही सैनिकों की वापसी की बात करता रहा है, जिसको लेकर चीन का रवैया शुरू से ही ढुलमुल रहा है। वहीं वह सातवें दौर की सैन्य वार्ता को सकारात्मक व रचनात्मक बताता रहा है, जबकि वस्तुस्थिति में कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आता। अविश्वास की स्थिति में मंत्री स्तरीय समझौते के हकीकत बनने की संभावना कम ही नजर आती है। हालांकि, इस मामले में राजनीतिक स्तर पर बातचीत की संभावनाओं को बनाये रखने की जरूरत भी महसूस की जाती रही है। दरअसल, जब भारतीय सैनिकों ने पीएलए की घुसपैठ की कोशिशों को प्रभावी ढंग से विफल बनाया तो चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर पानी ही फिरा है। ऐसे में आशंका बनी हुई है कि भारी बर्फबारी होने पर विषम परिस्थितियों का लाभ उठाकर चीन नये सिरे से अतिक्रमण की कोशिश कर सकता है। एलएसी पर तनातनी के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अपनी सेना को युद्ध के लिये तैयार रहने का आह्वान हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। मंगलवार को गुआंगडोंग के दक्षिण प्रांत में एक सैन्य अड्डे के दौरे पर दिये इस बयान के निहितार्थों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।