घरेलू बाजार में खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. खाद्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने का उद्देश्य भी इस निर्णय का एक आधार है. उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में 40 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है. भारत में पिछले एक साल में यह वृद्धि 20 प्रतिशत के आसपास है.
सरकार ने यह भी कहा है कि जिन देशों के साथ गेहूं भेजने का करार पहले से है, उनके लिए भारत भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. इस आदेश के निर्गत होने के दिन या उससे पहले के करार के अनुसार गेहूं भेजा जायेगा. इस वित्त वर्ष में अभी तक 4.5 मिलियन टन गेहूं निर्यात करने के कारोबारी समझौते हुए हैं, जिनमें से अप्रैल में 1.46 मिलियन टन गेहूं निर्यात हो चुका है. यदि कोई देश खाद्यान्न की कमी की स्थिति में भारत सरकार से आपूर्ति का निवेदन करेगा, तो उस पर विचार किया जा सकता है.
युद्ध से पहले गेहूं व जौ के वैश्विक निर्यात में रूस और यूक्रेन की एक-तिहाई हिस्सेदारी थी. इस युद्ध ने अन्य कुछ कारकों के साथ दुनियाभर में मुद्रास्फीति बढ़ाने में भारी योगदान किया है. भारत भी इस प्रभाव से अछूता नहीं है. हमारे देश में अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति 7.79 फीसदी हो गयी, जो आठ वर्षों में सर्वाधिक है. पिछले माह खाद्य पदार्थों में खुदरा मुद्रास्फीति 8.38 फीसदी हो गयी. बीते सप्ताह गेहूं का खुदरा भाव 29.49 रुपये प्रति किलोग्राम पहुंच गया.
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए जानकारों ने आशंका जतायी है कि महंगाई से जल्दी राहत मिलने की संभावना नहीं है. गेहूं उत्पादन में कमी का अंदेशा भी है. अनुमान है कि 2022-23 के फसल वर्ष (जुलाई से जून) में गेहूं का उत्पादन 105-106 मिलियन टन होगा. पहले उम्मीद जतायी गयी थी कि यह आंकड़ा 111 मिलियन टन हो सकता है. लेकिन देश के उत्तर-पश्चिम में भीषण गर्मी के कारण गेहूं की उपज पर असर पड़ सकता है.
ऐसे में भारत के पास गेहूं के निर्यात को रोकने के अलावा विकल्प नहीं था. आशा है कि आगामी दिनों में घरेलू बाजार में दाम कम होंगे. वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ने तथा विभिन्न देशों द्वारा निर्यात पर पाबंदी लगाने से भी कीमतें बढ़ रही हैं. चीन में लॉकडाउन ने भी आपूर्ति शृंखला को बाधित किया है. रूस-यूक्रेन युद्ध के थमने के आसार भी नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसी स्थिति में घरेलू बाजार को संतुलित रखना एक बड़ी चुनौती है और आशा है कि अन्य देश इसे समझने की कोशिश करेंगे.
गेहूं निर्यात पर रोक से किसानों को कुछ नुकसान हो सकता है, लेकिन अगर इससे मुद्रास्फीति कम होती है, तो किसानों के साथ-साथ देश के हर वर्ग को कुछ राहत मिलेगी. यदि मानसून सामान्य रहता है और कृषि उत्पादन संतोषजनक होता है, तो यह पाबंदी हटायी भी जा सकती है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय