लोकसभा की तरह हो रही है विधानसभा चुनावों की तैयारी, हर दिन नया बखेड़ा खड़ा करता विपक्ष

देश के मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है मानो आगामी तीन महीने में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि

Update: 2021-02-01 12:57 GMT

देश के मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है मानो आगामी तीन महीने में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही हो. देश कोरोना महामारी और उसके कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार से अभी उबरा भी नहीं है कि हर दिन विपक्ष एक नया मुद्दा ले कर आता है और उस पर बखेड़ा खड़ा करने की कोशिश करता दिखता है. कृषि कानूनों के विरोध में पिछले दो महीनों से ज्यादा दिन से चल रहा किसान आंदोलन अभी भी जारी है, जिसका देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर दिख सकता है.


सड़कों पर किसान धरने पर बैठे हैं और यातायात प्रभावित है. अनाज, सब्जी, फल और तेल की कीमतों के उछाल का कारण और कुछ नहीं बल्कि किसान आंदोलन है, जिसके कारण गरीब और मध्यमवर्ग को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के लिए सरसों का तेल जो कुछ दिन पहले तक 125 से 135 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था, अब 200 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा पर बिक रहा है. छोटे किसान अपना फसल उचित मूल्य पर बेचने में असमर्थ हैं.

"नौकरी दो या डिग्री वापस लो"
अभी 20 महीने का समय भी नहीं बीता है जबकि कांग्रेस पार्टी को आम चुनाव में लगातार दूसरी बार शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. जनता ने जिसे रिजेक्ट कर दिया वह अब उतावलापन दिखा कर जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश करने में लगी है. किसान आंदलोन को विपक्ष का, खासकर कांग्रेस पार्टी का खुलेआम तन, मन और धन से समर्थन जारी है. किसानो के बाद अब कांग्रेस पार्टी की तैयारी युवा वर्ग को सरकार के खिलाफ भड़काने की है.

शनिवार को NSUI, जो कांग्रेस पार्टी की छात्र यूनिट है, ने एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की घोषणा की जिसका नाम दिया गया है – नौकरी दो या डिग्री वापस लो. अभी कुछ दिन पहले तक सरकार विरोधी बुद्धिजीवी वर्ग देश द्वारा दिए सम्मान को लौटा रहे थे, अब युवा डिग्री लौटाते दिखेंगे! माना कि मोदी सरकार रोजगार के उतने नए अवसर नहीं ला पाई, जितना कि 2014 लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी ने घोषणा की थी. यह भी सत्य है कि देश में बेरोजगारी बढ़ी है, जिसका बहुत बड़ा कारण कोरोना महामारी और उसके कारण हुई आर्थिक मंदी है.

कांग्रेस का फॉर्मूला हमेशा से विवादित
ऐसे में जबकि देश हित में सभी को सामूहिक रूप से एकजुट हो कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की है, ठीक उसके विपरीत कोशिश की जा रही है कि देश में आंदोलन और अराजकता की स्थिति पैदा कर दी जाए, जिससे सरकार और देश की मुसीबतें बढ़ जाएं. ऐसा तो नहीं हो सकता कि देश में बेरोजगारी का एकमात्र कारण यही है कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार है. देश की आजादी के बाद 73 वर्षों में 50 वर्ष कांग्रेस पार्टी ने देश चलाया है.

इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओं का नारा दिया और चुनाव जीतीं पर गरीबी ज्यो की त्यों ही रही. चुनावी घोषणा एक लक्ष्य होता है जिसे प्राप्त करने की किसी भी पार्टी की सरकार कोशिश ही कर सकती है. 2014 या 2019 के चुनाव के समय क्या किसी को पता था कि करोना के कारण एक ऐसी स्थिति पैदा होगी, जिसका असर ना सिर्फ भारत पर बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा?

पूरे विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां बेरोजगारी अपने आप में एक समस्या ना हो. अमेरिका और अन्य पश्चमी देशों में भी बेरोजगारी एक समस्या रही है और अभी और भी बढ़ी है. भारत से यह उम्मीद करना की वह बेरोजगारी की समस्या से अछूता रह जाएगा कदापि सही नहीं हो सकता. कांग्रेस पार्टी का किसी समस्या के निदान का फॉर्मूला हमेशा से विवादित रहा है. वह किसी समस्या को जड़ से खत्म करने की जगह सिर्फ मरहमपट्टी करने में ही विश्वास रखती है, ताकि चुनावों में उसे इसका फायदा मिले.

युवाओं को आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा
किसानो की आमदनी बढ़ाने की बजाय पार्टी किसानों का कर्ज माफ करने में विश्वास रखती है. ठीक इसी तरह, कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में अक्सर बेरोजगारों को अधिक बेरोजगारी भत्ता देने की बात की जाती है. इस नीति से तो किसान हों या युवा, उनकी समस्या खत्म नहीं होगी. अगर कांग्रेस पार्टी के पास रोजगार पैदा करने का कोई फॉर्मूला होता तो कांग्रेस शासित प्रदेशों में बेरोजगारी नहीं होती, पर पंजाब जैसे राज्यों में बेरोजगारी देश के कई अन्य हिस्सों से कहीं ज्यादा है.

युवा द्वारा डिग्री वापस करने से उनका रोष बढ़ेगा और वह सड़क पर आंदोलन करते दिखेंगे और कुछ ज्यादा नहीं होने वाला है. जरूरत है कि देश की अर्थव्यवस्था को जितनी जल्दी हो सके वापस पटरी पर लाया जाए. आंदोलन और अराजकता फैलाने की जगह शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित किया जाए ताकि विदेशी पूंजी का निवेश बढ़ सके, जिससे देश में रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकें.

कोई भी विदेशी कम्पनी मौजूदा हालात में जब किसान सड़कों पर यातायात बाधित करके प्रदर्शन कर रहे हों और युवा वर्ग को कुछ ऐसा ही आंदोलन करने के लिए उकसाया जा रहा हो, भारत में पूंजी निवेश करने से कतराएगी. पर देश की चिंता कांग्रेस पार्टी की प्रायोरिटी लिस्ट में दूसरे स्थान पर है. पहली प्रायोरिटी है सोनिया गांधी के सपनों को साकार करना और उनके पुत्र को, जिसे जनता ने चुनाव में दो बार रिजेक्ट कर दिया, जैसे भी हो जल्दी से जल्दी देश का प्रधानमंत्री बनाना.


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