सरकार को अपील की सलाह

वोडाफोन से बीती हुई तारीख से टैक्स वसूलने का केस पिछले दिनों भारत सरकार हार गई थी।

Update: 2020-11-03 10:54 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वोडाफोन से बीती हुई तारीख से टैक्स वसूलने का केस पिछले दिनों भारत सरकार हार गई थी। एक अंतरराष्ट्रीय पंचाट ने कहा था कि पिछली तारीख से टैक्स वसूलना अवैध है। अब ताजा खबर है कि भारत सरकार पंचाट के फैसले को चुनौती देने की तैयारी में है। हालांकि ये मामला काफी खिंच चुका है और इसकी बहुत भारी कीमत भारतीय अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ी है, फिर भी भारत का फिर से अपना पक्ष रखने का इरादा गलत नहीं है। जब एक बार भारत सरकार ने अपने कदम को सही ठहराया था, तो उसके पक्ष में मौजूद सभी दलीलें और सबूत पेश करना उचित ही रहेगा। मामला यह है कि 2007 में टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन ने टेलीकॉम कंपनी हचीसन के भारत में व्यापार और संपत्ति को खरीदा था। उसी साल सितंबर में भारत सरकार ने वोडाफोन को आदेश दिया था कि वो इस खरीद पर पूंजी लाभ टैक्स के रूप में 7,990 करोड़ रुपए जमा कराए।

भारत सरकार ने 2016 में एक बार फिर वोडाफोन को टैक्स नोटिस भेज दिया। इस बार मूल मांग पर ब्याज मिला कर कुल रकम को बढ़ा कर लगभग 22,000 करोड़ रुपए की मांग की गई। वोडाफोन ने इस फैसले को चुनौती दी। पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय पंचाट ने वोडाफोन के हक में फैसला देते हुए टैक्स की मांग को गैर वाजिब बताया। उसने भारत सरकार को इस पर आगे ना बढ़ने का आदेश दिया। तब से यह अटकलें लग रही थीं कि भारत सरकार अब मामले को आगे बढ़ाएगी या नहीं। अब मीडिया में आई खबरों के अनुसार भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार को सलाह दी है कि इस फैसले के खिलाफ अपील की जानी चाहिए, क्योंकि कोई भी अंतरराष्ट्रीय अदालत किसी देश की संसद से पारित कानून के खिलाफ फैसला नहीं दे सकती। वोडाफोन का शुरू से कहना रहा है इस डील पर उसे भारत सरकार को कोई भी टैक्स नहीं देना था। कंपनी ने टैक्स नोटिस को पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी कंपनी के पक्ष में फैसला दिया। 2012 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नाकाम करने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आय कर कानून में संशोधन कर के उसे पीछे की तारीख से लागू करने का प्रस्ताव रखा। संसद ने संशोधन पारित कर दिया। भारत और विदेश के कई निवेशकों ने तब कहा था कि पीछे की तिथि से टैक्स लगाने से टैक्स नियमों की स्थिरता पर भरोसा टूटता है।

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