राष्ट्रविरोधी राजनीति: झूठ का सहारा लेकर युवाओं को बरगला रहे राजनीतिक दल
राष्ट्रविरोधी राजनीति
यह अच्छा हुआ कि सेना में भर्ती के लिए घोषित की गई अग्निपथ योजना के बारे में लेफ्टीनेंट जनरल अनिल पुरी ने एक प्रेस कान्फ्रेंस कर दृढ़ता के साथ यह कहा कि इसे वापस नहीं लिया जाएगा। ऐसी कोई दो टूक घोषणा इसलिए आवश्यक हो गई थी, क्योंकि एक ओर जहां देश के विभिन्न हिस्सों में तमाम युवा आगजनी और तोडफ़ोड़ करके सरकार को झुकाने की कोशिश कर रहे हैैं वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल इन युवाओं को उकसाने में लगे हुए हैैं। इन स्थितियों में यह संदेश दिया जाना अनिवार्य हो गया था कि हिंसा और अराजकता के जरिये सरकार को झुकाया नहीं जा सकता।
अब इसमें कोई संशय नहीं कि अग्निपथ योजना का जो उग्र विरोध हो रहा है उसके पीछे कुछ राजनीतिक दलों का हाथ है। ये राजनीतिक दल न केवल अग्निपथ योजना की वापसी की मांग कर रहे हैैं, बल्कि झूठ का सहारा लेकर युवाओं को उसी तरह बरगला रहे हैैं जिस तरह उन्होंने पहले नागरिकता संशोधन कानून और फिर कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों को भड़काया था। सेना में भर्ती होने के कथित आकांक्षी युवाओं को गुमराह करने में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की भूमिका अब कोई दबी-छिपी बात नहीं।
कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल इस योजना के विरोध में जिस तरह खुलकर खड़े हो गए हैैं उससे इस संदेह को बल मिलता है कि किसी षड्यंत्र के तहत युवाओं को सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतारा गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में अग्निपथ योजना के विरोध में जैसी घोर अराजकता देखने को मिली है उसे स्वत: स्फूर्त नहीं कहा जा सकता। एक क्षण के लिए यह तो समझ में आता है कि राजनीतिक दल अग्निपथ योजना में कुछ संशोधन-परिवर्तन की मांग करें, लेकिन उसे सिरे से खारिज करना और सरकार को युवाओं के खिलाफ बताना राजनीतिक शरारत के अलावा और कुछ नहीं। विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि सेना के ढांचे में सुधार की कितनी गहन आवश्यकता है।
आखिर जब दुनिया के सभी प्रमुख देश अपने सैन्य ढांचे में व्यापक परिवर्तन करने में लगे हुए हैैं तब फिर भारत को ऐसा ही क्यों नहीं करना चाहिए? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया लक्ष्य से पीछे ही चल रही है। इससे राजनीतिक दल भी भली तरह अवगत हैैं, लेकिन वे अपने संकीर्ण स्वार्थों को पूरा करने के फेर में न केवल अंध विरोध वाली राजनीति पर चल रहे हैैं, बल्कि ऐसा करते हुए राष्ट्रीय हितों को गंभीर चोट भी पहुंचा रहे हैैं। इन राजनीतिक दलों को अपने ऐसे क्षुद्र आचरण पर शर्मिंदा होने के साथ-साथ इसका भी भान होना चाहिए कि वे सरकार को नीचा दिखाने के चक्कर में राष्ट्रहित की बलि ले रहे हैैं।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय