चीन को जवाब
बेजिंग में शुरू हुए चौबीसवें शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर भारत ने उचित ही कदम उठाया। भारत इसके समापन समारोह में भी हिस्सा नहीं लेगा।
Written by जनसत्ता: बेजिंग में शुरू हुए चौबीसवें शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर भारत ने उचित ही कदम उठाया। भारत इसके समापन समारोह में भी हिस्सा नहीं लेगा। खेलों के आयोजन में भी चीन ने जिस तरह का कुटिलता भरा दांव चलते हुए भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की, यह उसी का करारा जवाब है। वरना क्या खेलों के आयोजन में भी कोई देश ऐसी क्षुद्र हरकत करता है?
यह ताजा विवाद तब खड़ा हुआ जब चीन ने ओलंपिक मशाल उस सैनिक को सौंपी जिसने गलवान में भारतीय सैनिकों पर हमला किया था। गौरतलब है कि जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया था, जिसमें चौबीस भारतीय जवान शहीद हो गए थे। उस टकराव में चीनी सेना का कमांडर क्वी फाबाओ गंभीर रूप से जख्मी हो गया था। अब उसी जवान को चीन ने ओलंपिक की मशाल सौंप कर इस आयोजन को राजनीतिक रंग दे डाला। निश्चित ही यह चीन की ऐसी हरकत है जिसका मकसद भारत को चिढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। जाहिर है, भारत के लिए यह जरूरी हो गया था कि चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए।
अगर दो देशों के बीच किसी मुद्दे या कुछ मुद्दों को लेकर कोई विवाद या तनातनी हो भी, तो उसका असर खेल जैसे आयोजनों पर तो जरा भी नहीं दिखना चाहिए। पर चीन ने इसे समझा कहां, बल्कि उसने भारत को उकसाने वाली चाल चल कर अपनी दुर्भावना वाली प्रवृत्ति का ही फिर से परिचय दिया। उसने यह भी नहीं सोचा कि भारत ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव को दरकिनार करते हुए शीतकालीन ओलंपिक चीन में करवाने का समर्थन किया था।
गौरतलब है कि पिछले साल 26 नवंबर को रूस और चीन के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक में भारत ने चीन में शीतकालीन ओलंपिक खेल करवाने पर सहमति देकर अपनी ओर से सहृदयता का परिचय किया था। भारत का साफ मानना था कि सीमा विवाद व अन्य विवाद अपनी जगह हैं और खेल अपनी जगह।
इसलिए शीतकालीन ओलंपिक चीन में हो जाएं तो क्या हर्ज! अगर तब भारत चाहता तो चीन की तरह ही शत्रुता का भाव दिखाते हुए इस आयोजन का विरोध कर सकता था। लेकिन भारत ने तब भी ऐसा कुछ नहीं किया जिससे यह संदेश जाए कि हम चीन के खिलाफ हैं। पर चीन ने गलवान घाटी संघर्ष में शामिल जवान को ओलंपिक मशाल सौंप कर एक तरह से भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की। उसने यह भी नहीं सोचा कि भारत उसका बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है!
चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर अमेरिका और यूरोप के कई देश पहले ही से उसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, डेनमार्क, बेल्जियम, एस्तोनिया और लिथुआनिया जैसे कई देश हैं जो नहीं चाहते थे कि शीतकालीन ओलंपिक चीन में हों। इन देशों का चीन विरोध इसलिए नहीं है कि चीन से उनका कोई निजी विवाद है, या अमेरिका जैसे देश के दबाव में चीन का विरोध करना कोई मजबूरी है, बल्कि आज दुनिया के ज्यादातर देश देख रहे हैं कि चीन कैसे अपने पड़ोसियों खासतौर से भारत को डराने-धमकाने वाली गतिविधियों को अंजाम दे रहा है।
बेहतर होता कि चीन मशाल वाहक के लिए किसी खिलाड़ी या अन्य को चुनता। एक सैनिक ऐसे सैनिक को मशाल सौंप कर जो भारतीय जवानों पर हमले को अंजाम देने की साजिश में शामिल रहा हो, चीन ने रिश्ते बिगाड़ने की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है।