शिक्षक पूजन एवं सम्मान का वार्षिक दिवस

Update: 2022-09-02 18:50 GMT
 
भारत की शिक्षण परंपरा गौरवमयी, उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठतम रही है। प्राचीन काल से ही यह देश ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, साधु-संतों, मनीषियों तथा गुरुओं के सानिध्य, आशीर्वाद तथा ज्ञान कृपा से पोषित होता रहा है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपमा दी जाती रही है। महान शिक्षाविदों, दार्शनिकों, विद्वानों, विचारकों की परंपरा का यह देश अपनी शिक्षण परंपराओं पर गौरवान्वित महसूस करता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, नारद तथा मां सरस्वती, ऋषियों, मुनियों, गंधर्वों और किन्नरों से निकली यह शिक्षण परंपरा आज सभी को ज्ञान से पोषित कर रही है। नि:संदेह हम भारत वंशजों को अपनी इस अमूल्य धरोहर पर गौरवान्वित होना चाहिए। प्राचीन काल में महर्षि वेदव्यास, ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, महर्षि भरत, वाल्मीकि, भगवान परशुराम, गुरु द्रोणाचार्य, महर्षि संदीपनी, देवगुरु वृहस्पति, दैत्यगुरू शुक्राचार्य, चाणक्य, महात्मा विदुर, आदिशंकराचार्य, तत्पश्चात शंकराचार्य, रामानुज, महात्मा कबीरदास, गुरु नानक देव, भक्ति काल में तुलसीदास, रविदास, बल्लभाचार्य, सूरदास, मीराबाई, हरिदास, नामदेव, ज्ञानेश्वर, एकनाथ, तुकाराम तथा रामदास एवं आधुनिक काल में स्वामी रामकृष्ण परमहंस, महाऋषि अरविंद, परमहंस योगानंद, दयानंद सरस्वती, दादा भाई नौरोजी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, रविन्द्र नाथ टैगोर, डा. राजेन्द्र प्रसाद, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, डा. भीमराव अम्बेडकर, मदर टेरेसा, डा. एपीजे अब्दुल कलाम तथा अनगिनत महान संतों, महात्माओं, गुरुओं, दार्शनिकों, विचारकों तथा राजनेताओं की समृद्ध परम्परा भारतवासियों को गौरवान्वित करती है।
प्राचीन से ही गुरुओं, महात्माओं, साधु-संतों, विद्वानों एवं विचारकों का सम्मान करना हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान परम्परा का एक अभिन्न अंग रहा है। सदियों की परम्परागत गुरुकुल पद्धति की इस शिक्षा यात्रा ने अब संस्थागत शिक्षण व्यवस्था का रूप लिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् देश ने विद्वान शिक्षाविद्, विचारक तथा राजनेता भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय कर वर्ष में एक दिन निश्चित कर लिया। वर्षों से ज्ञान-विज्ञान, आदर्श तथा संस्कारों से पोषित करने वाला तथा मानवीय निर्माण की प्रक्रिया में समर्पित यह शिक्षक रूपी चरित्र वर्तमान में महज एक वेतनभोगी तथा सामान्य कर्मचारी बन चुका है। परिवर्तित सामाजिक, प्रशासनिक, शैक्षिक तथा राजनीतिक व्यवस्था से गुजरता हुआ यह महिमामण्डित गुरु वर्तमान में शिक्षक, अध्यापक तथा अब मास्टर भी बन चुका है। शिक्षक को जानने, समझने की सामाजिक दृष्टि बदल चुकी है। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत विस्तार हो चुका है। शिक्षा एवं ज्ञान-विज्ञान का यह वृक्ष अब विशालकाय बरगद बन चुका है। अध्यापकों तथा शिक्षण संस्थानों की संख्या में आशातीत वृद्धि हो चुकी है। शिक्षण अब मात्र सेवा भी नहीं, व्यवसाय तथा व्यापार बन चुका है। वर्तमान में शिक्षक का कार्य केवल कक्षा तक सीमित नहीं है। शिक्षक अब प्रबन्धक, प्रशासक तथा मार्गदर्शक बन चुका है। कक्षा कक्ष में विषय शिक्षण के साथ-साथ उसकी सामाजिक, प्रशासनिक, शैक्षिक तथा व्यावहारिक जि़म्मेदारियां बढ़ चुकी हैं। पुरानी फिल्मों में कुर्ता, जाकेट, ऐनक, चप्पल पहने तथा सोठी हाथ में लिए यह किरदार अब वर्तमान में स्मार्ट कक्षा-कक्ष का स्मार्ट टीचर बन चुका है। ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, शिक्षण व्यवहार, शिक्षक-शिष्य व्यवहार, विषय वस्तु, संसाधन, शैक्षिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा राजनीतिक दृष्टि पूर्णत: परिवर्तित हो चुकी है। अत्यधिक भौतिकवाद की आंधी में अब मानवीय मूल्यों में भी अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में अध्यापक पर नियमित शिक्षण के साथ अनेकों विभागीय आदेशों, शैक्षिक कार्यक्रमों, सरकारी नीतियों तथा नियमों को पाठशालाओं में आयोजित तथा सुनिश्चित करने की जि़म्मेदारी है। खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, शैक्षिक कार्य, लिखित एवं क्रियात्मक परीक्षाओं की अंतहीन श्रंखला, सामाजिक गतिविधियों के साथ ट्रेनिंग कार्यक्रमों, मिड डे मील, स्वास्थ्य, नशा निवारण, योग, पर्यावरण, राष्ट्रीय सेवा योजना, एनसीसी, स्काउटिंग, ट्रैफिक नियमों, मानवीय मूल्यों, सामान्य चुनाव प्रक्रिया, पर्यटन, प्रदेश एवं केन्द्र सरकार द्वारा निश्चित, निर्देशित तथा प्रायोजित अनेकों कार्यक्रमों एवं सरकारी नीतियों को जनजागरण अभियानों से सामाजिक धरातल पर लाने की जि़म्मेदारी अध्यापक को दी जाती है।
विभिन्न गतिविधियों को आयोजित करने के पश्चात् सम्बन्धित अधिकारियों को उसकी रिपोर्ट प्रेषित करना अध्यापक की जि़म्मेदारी रहती है। शिक्षक अब केवल शिक्षण तक ही सीमित नहीं बल्कि एक प्रबन्धक, समन्वयक, आयोजक तथा रिपोर्टर भी बन चुका है। वर्तमान में अध्यापक की भूमिकाएं तथा जि़म्मेदारियां बहुआयामी एवं पूर्णत: परिवर्तित हो चुकी हैं। देश में द्वितीय राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पांच सितम्बर को वार्षिक शिक्षक दिवस मनाया जाता है। केन्द्रीय शिक्षा विभाग द्वारा राष्ट्रीय कार्यक्रम दिल्ली में आयोजित किया जाता है जिसकी अध्यक्षता भारत के महामहिम राष्ट्रपति करते हैं। इसी तरह राज्यों में महामहिम राज्यपाल राज्यस्तरीय शिक्षक सम्मान समारोहों के मुख्य अतिथि होते हैं। देश भर में पुरस्कारों के लिए आवेदक अध्यापकों को चुना जाता है। पुरस्कार वितरित किए जाते हैं। पुष्प मालायें पहनाई जाती हैं। प्रशस्ति पत्र बांटे जाते हैं। भाषणों से गुरु का महिमा मंडन होता है। देश की आज़ादी के पचहत्तर वर्ष के बाद भी सरकारों तथा विभागों की श्रेष्ठ अध्यापकों को चुनने की कोई प्रक्रिया या तन्त्र विकसित नहीं हो पाया है। अध्यापकों को स्वयं ही आवेदन करना पड़ता है। उसके बाद पूरा वर्ष प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं, शिक्षा तंत्र, समाज, अभिभावकों, डिजिटल एवं प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया द्वारा शिक्षकों की गरिमा के विरुद्ध चरित्र हनन होता रहता है। शिक्षकों को फब्तियां, गालियां और व्यंग्य वाणों से छलनी किया जाता रहता है। आवश्यक है कि शिक्षक अपने मान-सम्मान, गरिमा, पद और प्रतिष्ठा के लिए सचेत रहें। ईश्वर को साक्षी मानकर मानवीय एवं निर्माण की प्रक्रिया में समर्पित भाव से कार्य करें। उन्हें अपने चरित्र की रक्षा करनी चाहिए। राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, सामाजिक संगठनों, अभिभावकों तथा विद्यार्थियों को मात्र एक दिन नहीं, परंतु पूरा वर्ष भर शिक्षक के स्थान, सम्मान तथा गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। यह सभी को याद रहना चाहिए कि किसी भी सफल व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य में किसी गुरु या अध्यापक की कृपा अवश्य होती है। वास्तव में यही गुरु कृपा ही ईश्वर कृपा होती है।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं

By: Divyahimachal

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