एंजेला मर्केल की विदाई
जर्मनी की चांसलर और शक्तिशाली महिला नेता एंजेला मर्केल को 16 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद बड़ा झटका लगा है।
आदित्य चोपड़ा : जर्मनी की चांसलर और शक्तिशाली महिला नेता एंजेला मर्केल को 16 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद बड़ा झटका लगा है। मर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव हार गई है, जबकि विपक्षी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने बढ़त बनाई हुई है। एसपीडी एक वामपंथी दल है। जर्मनी में हो रहे चुनाव बेहद खास हैं क्योंकि लगातार जर्मनी की सत्ता में रही चांसलर एंजेला मर्केल ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह इस बार चांसलर की दौड़ से बाहर हैं। भारत की तरह जर्मनी भी एक लोकतांत्रिक देश है। यानी जर्मनी में निर्वाचित सरकार की हकूमत होती है। भारत की तरह वहां भी संसदीय व्यवस्था है, हालांकि वहां की संसदीय व्यवस्था भारत से अलग है। ऐसे में चुनाव की प्रक्रिया भी भारत से अलग है। भारत में जिस तरह सत्ता का केन्द्र बिन्दू प्रधानमंत्री पद होता है, उसी तरह जर्मनी की सत्ता की चाबी चांसलर के पास होती है। हालांकि नया चांसलर चुनने में कुछ वक्त लग सकता है। पूरे नतीजे आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट है कि मर्केल की विदाई हो रही है। आमतौर पर जर्मनी में गठबंधन सरकारों का इतिहास और वर्चस्व रहा है, लिहाजा किसी पार्टी का दबदबा नहीं रहता। मर्केल भी गठबंधन सरकार की ही चांसलर रहीं। जर्मनी में भी चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद हमेशा देश की तर्ज पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनते हैं, इसके बाद सरकार का गठन होता है। इस बार भी चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार बनने की सम्भावना है, क्योकि एसपीडी की बढ़त कोई फायदा नहीं है। एसपीडी नेता आलोफ शल्ट्स ने दावा किया है कि जर्मनी के मतदाताओं ने उन्हें अच्छी और व्यावहारिक सरकार बनाने का काम दिया है। इन चुनावों में ग्रीन्स और लिबरल्स पार्टियां किंग मेकर बन सकती हैं। इस तरह कई सम्भावित गठबंधन हो सकते हैं। अब सबसे अहम सवाल है कि लम्बे समय तक सत्ता में रही एंजेला मर्केल को लोग किस रूप में याद रखेंगे। एंजेला मर्केल से पहले जर्मन की राजनीति पुरुषों का क्लब हुआ करती थी लेकिन मर्केल ने जर्मनी की राजनीति को नीति चर्चा में बदल दिया। एंजेला मर्केल खुद एक भौतिक विज्ञानी हैं, इस लिए उनके जैसे इंसान के पास तथ्यों पर आधारित नजरिया होता है। उन्होंने मुद्दों का गैर राजनीतिकरण किया और सत्ता को किसी ध्रुवीकरण से दूर रखने की कोशिश की।एंजेला मर्केल को फोर्ब्स पत्रिका ने दस वर्ष तक दुनिया की सबसे ताकतवर महिला घोषित किया। महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिहाज से इस पद पर रहना काफी अहम है। उन्होंने जर्मनी की पहली महिला रक्षामंत्री और अब यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वान डेर लेयन को काफी आगे बढ़ाया। यूरो को बचाना और 2008 के वित्तीय संकट से निपटना उनकी विरासत रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति रहे ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भी वह उदार अन्तर्राष्ट्रीयवाद को लेकर सतर्क और किसी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने वाली राजनेता रहीं। एंजेला मर्केल ने संकट के समय देश के जहाज को डूबने से बचाए रखा। उन्होंने अपना कर्त्तव्य निभाया। उन्होंने रूढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रेट पार्टी के एजैंडे को उदार तो बनाया और अपनी पार्टी को बीच वाली विचारधारा के करीब ला खड़ा किया लेकिन कुछ मुद्दों पर वह मौन रहीं। प्रवासियों और शरणार्थियों के प्रति मर्केल की नरम नीतियों के चलते उनकी काफी आलोचना होती रही है। उनके पद छोड़ते समय देश का राजनीतिक परिदृश्य बहुत अस्थिर है। डिजिटलीकरण जलवायु नीति और जनसांख्यिकी परिवर्तन जैसे मुद्दों पर जर्मनी लगभग पिछड़ रहा है। संपादकीय :एक अक्टूबर को हम 18वें साल में प्रवेश कर रहे हैंकन्हैया, मेवानी और सिद्धूपंजाब के नए मंत्रीकिसानों के भारत बन्द का सबबशेयर बाजार की उड़ानमोदी की सफल राष्ट्रसंघ यात्राउन्होंने चांसलर के तौर पर अपनी अलग छवि पेश की और अब चालंसर पद के उम्मीदवारों के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि वे इतनी बड़ी राजनीतिक शख्सियत की छवि से अलग कैसे दिखे। नए चांसलर के सामने जर्मनी को कर्ज से छुटकारा दिलाना होगा जिससे सार्वजनिक कर्ज बढ़ने से रोका जा सके। उन्हें जर्मनी को कोरोना महामारी के झटके से उबरना होगा, साथ ही यूरोपीय यूनिन के साथ बेहतर तालमेल के जरिये सुखद भविष्य की राह तलाशनी होगी। मिडिया के संघर्ष के बाद शरणार्थी संकट खड़ा हो गया और दस लाख से ज्यादा प्रवासी जर्मनी में दाखिल हो गए। मर्केल प्रवासी संकट से जूझते यूरोपीय संकट के साथ खड़ी हो गईं। जर्मनी के लोग नाराज हुए और मर्केल की लोकप्रियता भी कम हुई। ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था मजबूत नजर आती है लेकिन जर्मनी के लोग यह सोचकर चिंतित हैं कि मर्केल की अनुपस्थिति में संकट की स्थितियों में देश का कौशल प्रबंधन उनकी तरह कोई कर पाएगा। देखना होगा कि कौन सा गठबंधन सामने आता है।