जाहिर सी बात है कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले पश्चिम बंगाल में बीजेपी को उतनी सफलता नहीं मिली जितने की उसकी चाह थी. तो क्या यह मान लिया जाए कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी बिकुल फ्लॉप हो गयी? आकड़ों से खेलना भी एक कला है और किसी हद तक यह मानसिकता का भी प्रतीक होता है, ठीक उसी तरह जैसे ग्लास में पानी आधा भरा है या आधा खाली है, यह देखने वाले की मानसिकता पर निर्भर करता है.
क्या बीजेपी को सच में नुकसान हुआ है?
2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से बीजेपी 42 में से 18 सीटों पर सफल रही थी, और तृणमूल कांग्रेस 22 सीटों पर. लोकसभा चुनाव परिणाम को अगर विधानसभा क्षेत्रों के नज़रिये से देखें तो बीजेपी 121 विधानसभा क्षेत्रों में जीती थी और तृणमूल कांग्रेस 163 सीटों पर. बीजेपी वर्तमान विधानसभा चुनव में मात्र 77 सीटों पर ही कामयाब रही और इस हिसाब से उसे 44 सीटों का नुकसान हुआ. पर अगर अब इसकी तुलना 2016 के विधानसभा चुनाव से की जाये तो बीजेपी 3 सीटों से लम्बी छलांग लगा कर 77 सीटों पर पहुंच गयी और उसे 74 सीटों का फायदा हुआ.
असम में बीजेपी को 2016 में भी 60 सीटें मिली थी और इस बार भी बीजेपी का आंकड़ा 60 पर ही रुक गया. यानि ना फायदा ना नुकसान. पुडुचेरी में बीजेपी शून्य से 6 सीटों पर पहुंच गयी, तमिलनाडु में शून्य से 4 पर और केरल में 1 से शून्य पर. यानी बीजेपी को 2016 के मुकाबले कुल 84 सीटों का फायदा हुआ.
लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में अंतर होता है
जिन पांच प्रदेशों में चुनाव हुआ उनमे से बीजेपी सिर्फ असम में सत्ता में थी, जहां बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ 126 सीटों में से 75 सीटों के साथ चुनाव जीती जो 2016 के मुकाबले 1 सीट ज्यादा है. एक बात और समझने की जरूरत है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में दल तो वही होते हैं पर मुद्दों का बड़ा फर्क होता है. लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को जबरदस्त सफलता इसलिए मिली क्योंकि वहां की जनता को प्रधानमंत्री के रूप में मोदी पसंद था और वह चाहते थे कि मोदी ही प्रधानमंत्री बने रहें.
वर्तमान विधानसभा चुनाव में चाहे भले ही एक बार फिर से मोदी के नाम पर वोट मांगे जा रहे थे लेकिन पश्चिम बंगाल की जनता जानती थी कि मोदी खुद तो मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे और वहां उन्होंने ममता बनर्जी को ही मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया.
जनता अब पार्टी नहीं नेता चुनती है
हिंदी भाषी क्षेत्रों में अब एक नया जुमला चल चुका है, बड़े वोट और छोटे वोट का. बड़ा वोट लोकसभा के लिए और छोटा वोट विधानसभा के लिए. बड़े वोट और छोटे वोट में उन राज्यों के भी फर्क देखने को मिलता है जहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होता है या उसके आस-पास ही होता है. भारत के मतदाता अब इतने जागरुक हो गए हैं कि वह यह फैसला नहीं करते कि किस पार्टी को वोट देना है, बल्कि इस बात का फैसला करते हैं कि उनका प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कौन होगा?
कांग्रेस का हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
किसी दल का अगर नुकसान हुआ है तो वह है कांग्रेस पार्टी. जहां कांग्रेस पार्टी 2016 में इन्हीं राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में 115 सीटों पर सफल रही थी और पुडुचेरी में उनकी सरकार भी थी, पांच साल बाद कांग्रेस पार्टी सिर्फ 70 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई जो कांग्रेस पार्टी के लिए चिंता का विषय जरूर है.
बीजेपी को ना सिर्फ कुल सीटों का फायदा हुआ, बल्कि जहां पहले सिर्फ असम में उसकी सरकार थी, अब पुडुचेरी की सरकार में भी उसकी भागीदारी होगी. तृणमूल कांग्रेस को 2016 के मुकाबले मात्र चार सीटों का फायदा हुआ और ममता बनर्जी को खुद चुनाव हार जाने की शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी. तो क्या वाकई में बीजेपी की हार हुई और गैर बीजेपी दलों की जीत? बात वहीं आ कर रुक जाती है कि ग्लास आधा खाली है या आधा भरा?