एक महत्वपूर्ण मुद्दा : रोजगार पैदा करने का कौशल

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं

Update: 2022-02-19 09:24 GMT

पत्रलेखा चटर्जी

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, जहां लगभग ब्राजील की ही तरह बीस करोड़ लोग रहते हैं। दांव असाधारण रूप से ऊंचा है। कहने की जरूरत नहीं कि इस विधानसभा चुनाव का नतीजा 2024 के लोकसभा चुनाव को प्रभावित करेगा। लेकिन चुनावों से अलग एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो उत्तर प्रदेश के भविष्य को आकार देगा, चाहे कोई भी निर्वाचित हो। वह है-उत्तर प्रदेश के बच्चों और युवाओं की स्थिति।
हालांकि इस संबंध में हाल के वर्षों में सुधार और पहल हुई है, लेकिन स्थिति चुनौतीपूर्ण है। कोरोना वायरस महामारी ने भारत के बच्चों और युवाओं के प्रारंभिक वर्षों को बुरी तरह प्रभावित किया है, साथ ही पहले से मौजूद उनकी समस्याओं को और बदतर बनाया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाले प्रत्येक 1,000 बच्चों में से लगभग 60 बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन नहीं देख पाते हैं, हालांकि यह स्थिति 2015-2016 से बेहतर है, जब प्रति 1,000 बच्चों के जन्म पर मृत्यु दर 78.1 थी, लेकिन यह अब भी अस्वीकार्य रूप से उच्च है।
उत्तर प्रदेश में लाखों बच्चे जो जीवित बच जाते हैं, वे अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाते। सितंबर, 2021 की एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में 35 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों ने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। राज्य सरकार की ओर से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेजी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति सिद्धार्थनगर जिले में देखने को मिली, जहां आधे से ज्यादा (53.5 फीसदी) बच्चों ने आठवीं पास करने के बाद नौवीं कक्षा में दाखिला नहीं लिया।
शिक्षाविदों का कहना है कि बड़ी संख्या में गरीब लोगों वाले राज्य में, शिक्षित युवाओं की शैक्षिक योग्यता के आधार पर नौकरी पाने में कठिनाई और अक्षमता माता-पिता द्वारा बच्चों को माध्यमिक या उच्च शिक्षा पाने की अनुमति देने के प्रति अनिच्छुक होने के एक प्रमुख कारक के रूप में काम करती है। जो बात इसे और जटिल बनाती है, वह है परिवार के लोगों में असुरक्षा की भावना कि एक शिक्षित युवा को न तो नौकरी मिल पाएगी और न ही वह खेती के पारिवारिक पेशे में शामिल हो पाएगा।
इसलिए स्पष्ट रूप से यह आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों की काउंसिलिंग के साथ एक प्रमुख घटक और व्यावसायिक कौशल के साथ-साथ मेधावी और योग्य बच्चों को वित्तीय सहायता पाने के अवसरों के रूप में जिला विशिष्ट हस्तक्षेप किया जाए। राज्य में युवाओं के लिए प्रमुख मुद्दा और उत्तर प्रदेश की सबसे प्रमुख चुनौती युवाओं के लिए रोजगार सृजन के आर्थिक अवसरों का विस्तार करना है। हाल के वर्षों में केंद्र और राज्य सरकार ने कौशल विकास के क्षेत्र में कई पहल की हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश एक विशाल राज्य है और विभिन्न क्षेत्रों और जिलों के बीच भारी असमानताएं हैं
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'एक और सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शिक्षा व कौशल की मांग और आपूर्ति में कोई तालमेल नहीं है, जो राज्य और देश के बाकी हिस्सों में भी युवाओं की समग्र रोजगार क्षमता को प्रभावित करती है।' रिपोर्ट बताती है कि 'एक तरफ नियोक्ता कुशल जनशक्ति की कमी की शिकायत करते हैं, तो दूसरी तरफ शिक्षित युवाओं में, विशेष रूप से महिलाओं में बेरोजगारी की दर बहुत उच्च है।
शिक्षा के व्यावहारिक पहलुओं की अपर्याप्त जानकारी के कारण नियोक्ता बहुत से रोजगार खोजने वाले युवाओं को नौकरी देने लायक नहीं समझते हैं (फिक्की, 2010)।' यह बताता है कि श्रम शक्ति के बीच अपेक्षाकृत खराब शैक्षिक और कौशल स्तर आधुनिक आर्थिक क्षेत्र में उनकी रोजगार क्षमता को कम कर रहा है। लेकिन यह समस्या पूरे राज्य में तीव्र नहीं है। उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की एक बड़ी बात इसके विकास में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय असमानताएं हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकसित है, जहां बुंदेलखंड और पूर्वी क्षेत्र की तुलना में रोजगार योग्य युवाओं की संख्या कहीं अधिक है।
लखनऊ स्थित गिरी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर के.श्रीनिवास राव द्वारा 2020 के एक शोधपत्र में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में हर साल लगभग 9,361 संस्थान सीधे कौशल प्रदान कर रहे हैं। इनमें उच्च कौशल का योगदान 18.22 प्रतिशत, अर्ध-कौशल का 77.42 प्रतिशत और शेष 4.36 प्रतिशत संस्थान उत्तर प्रदेश में न्यूनतम कौशल का योगदान करते हैं। राज्य में इन कौशलों का वितरण चौंकाने वाला है-राव के शोध में सैंपल जिलों के आंकड़ों से पता चलता है कि कम विकसित जिलों की तुलना में दोनों क्षेत्रों के विकसित जिलों में कौशल प्रदान करने वाले संस्थान अधिक हैं।
राव बताते हैं कि चुने हुए जिलों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर और बुंदेलखंड के झांसी जिलों में बांदा और एटा जिलों की तुलना में अधिक संख्या में डिग्री और पॉलिटेक्निक छात्रों के दाखिले किए गए हैं।
एक अन्य प्रमुख मुद्दा, जिसे उत्तर प्रदेश में ठीक करने की जरूरत है, वह है भारत की श्रम शक्ति में युवा महिलाओं की कम भागीदारी। यह एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, लेकिन उत्तर प्रदेश में बहुत स्पष्ट है। केंद्र सरकार की पहल, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अनुरूप कौशल विकास के लिए आवंटित धन के कारण रोजगार के लिए शीर्ष राज्यों की रैंकिंग में उत्तर प्रदेश से बेहतर प्रतिक्रिया मिली है।
अगली चुनौती पूरे राज्य में समान प्रभाव की है। जो कोई भी लखनऊ की गद्दी के लिए चुना जाता है, उसे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि समावेशी विकास की क्षमता को उजागर करने के लिए हर जिले में इन योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पहल करनी होगी और सरकार के हस्तक्षेप का प्रभाव, चाहे वह शिक्षा के लिए हो, या रोजगार या कौशल के लिए हो, भी अधिक समान रूप से दिखना चाहिए।
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