खतरों के बीच
कोरोना के दैनिक आंकड़े कम होने के बाद दिल्ली में अब पाबंदियां लगभग हटा ली गई हैं। रोजाना संक्रमण के मामले सौ से भी नीचे आ गए हैं। उपचाराधीन संक्रमितों की संख्या पांच सौ के आसपास है।
कोरोना के दैनिक आंकड़े कम होने के बाद दिल्ली में अब पाबंदियां लगभग हटा ली गई हैं। रोजाना संक्रमण के मामले सौ से भी नीचे आ गए हैं। उपचाराधीन संक्रमितों की संख्या पांच सौ के आसपास है। यानी दिल्ली अब एक तरह से संक्रमण मुक्त होने को है। चौथे सीरो सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद तो दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने मेट्रो और बसों को भी पूरी क्षमता के साथ लोगों को बैठाने के लिए हरी झंडी दे दी। शादियों और अंतिम संस्कार में भी सौ लोगों के शामिल होने का रास्ता साफ हो गया। मॉल, व्यावसायिक परिसर पहले ही खोल दिए गए थे। अब बंद और पाबंदियों जैसा कुछ नहीं है। सारा जोर सतर्कता, बचाव के उपायों और टीकाकरण पर है। लेकिन पाबंदियां खत्म होने का यह मतलब बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए कि अब कोई खतरा नहीं रह गया है। बल्कि तीसरी लहर कब दस्तक दे दे, कोई नहीं जानता। वैसे इसका अनुमान अगस्त से अक्तूबर के बीच का है। इसे देखते हुए खतरा अब ज्यादा बड़ा है। अगर लोगों की भीड़ अचानक बढ़ने लगी तो फिर से कहीं नया जोखिम न खड़ा हो जाए।
दरअसल आशंकाओं के पीछे कई कारण हैं। दुनिया के कई शहरों में देखा जा चुका है कि पाबंदियां हटाने के बाद लोग एकदम से निकल पड़े और फिर अगली लहर ने हमला बोल दिया। ब्रिटेन सबसे बड़ा उदाहरण है। कई महीनों की पूर्णबंदी के बाद ब्रिटेन में लगने लगा था कि संक्रमण की लहर कमजोर पड़ चुकी है। इसलिए पाबंदियां पूरी तरह से हटा ली गई थीं। मेट्रो, बसें पहले की तरह ही शुरू कर दी गईं। इससे भीड़ बढ़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना का नया रूप सामने आ गया और तेजी से फैल गया। न सिर्फ ब्रिटेन में बल्कि वहां से दुनिया के कई देशों में पहुंच गया। ब्रिटेन के इस सबक को हमें भूलना नहीं चाहिए। भारत में चौथा सीरो सर्वे एक बात और बता रहा है। वह यह कि हमारे यहां अभी भी चालीस करोड़ लोगों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित नहीं हुई है। इन लोगों को संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा है। चालीस करोड़ की आबादी कम नहीं होती। फिर विषाणु के नए-नए रूप जिस तेजी से मिल रहे हैं, वह और बड़ा खतरा है। इसलिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती कैसे भी करके लोगों को संक्रमण से बचाने की है।
कामधंधों के मद्देनजर बेशक पाबंदियां हटाना जरूरी है। लोग महामारी की मानसिक पीड़ा भी भुगत चुके हैं। पर साथ ही जो बात सबसे ज्यादा चिंता पैदा करती है, वह लोगों के लापरवाह बर्ताव को लेकर है। बाहर निकलते समय मास्क नहीं लगाना गंभीर समस्या बनता जा रहा है। कहने को पुलिस मास्क नहीं पहनने वालों पर जुमार्ना भी लगाती है। फिर भी लोग बेपरवाह हैं। जहां तक टीकाकरण का सवाल है तो भारत की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। टीकाकरण का आंकड़ा भले चवालीस करोड़ पहुंच रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि देश में दस फीसद वयस्कों को भी टीके की दोनों खुराकें नहीं लगी हैं। एक खुराक लेने वाले वयस्कों का आंकड़ा अभी भी कुल आबादी का सिर्फ एक तिहाई ही है। ज्यादातर राज्यों में टीकाकरण सुस्त पड़ा है। राजधानी दिल्ली में ही इन दिनों कोविशील्ड टीके की पहली खुराक देने का काम बंद है। ऐसे में रास्ता एक ही है और वह यह कि हम खुद ही अपना बचाव करें। बेवजह बाहर न निकलें और कोविड व्यवहार के नियमों का सख्ती से पालन करने की आदत डाल लें। यही संक्रमण की लहरों से बचाएगा।