चुनौतियों के बीच
देश के पहले रक्षा प्रमुख यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत के एक हेलिकाप्टर हादसे में असमय निधन के बाद इस पद पर नई नियुक्ति में करीब दस महीने लग गए। इससे इस पद की अहमियत, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। अब सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को इस पद का दायित्व सौंपा गया है
Written by जनसत्ता: देश के पहले रक्षा प्रमुख यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत के एक हेलिकाप्टर हादसे में असमय निधन के बाद इस पद पर नई नियुक्ति में करीब दस महीने लग गए। इससे इस पद की अहमियत, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। अब सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को इस पद का दायित्व सौंपा गया है तो जाहिर है उनके सामने इस मोर्चे की पहले से मौजूद चुनौतियों के साथ-साथ नई परिस्थितियां भी हैं।
यों सैन्य मोर्चे पर अब तक का उनका जो अनुभव और प्रदर्शन रहा है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सरकार ने काफी सोच-समझ कर उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी है। फिलहाल वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के सैन्य सलाहकार के तौर पर काम कर रहे थे। अब सीडीएस की नई जिम्मेदारी के साथ वे रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के विभाग के सचिव का भी काम देखेंगे और इस पद से जुड़ी कुछ अन्य जरूरी भूमिकाएं भी निभाएंगे।
गौरतलब है कि अपने चालीस साल के अनुभवों के दौरान उन्हें चीन से संबंधित मामलों की विशेषज्ञता के अलावा खासतौर पर बालाकोट हवाई हमले के दौरान कामयाब अभियान के लिए भी जाना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी और अलगाववादी आंदोलनों के खिलाफ सैन्य अभियानों का भी नेतृत्व किया। स्वाभाविक ही अपने लंबे अनुभवों का लाभ उन्हें अपनी नई भूमिका को मजबूत तरीके से निभाने में मिलेगा। मौजूदा विश्व जिस दिशा में बढ़ रहा है, इसमें अनायास ही अलग-अलग तरह के तनाव और टकराव सामने खड़े हो रहे हैं।
इसके मद्देनजर सैन्य मोर्चे पर पूरी मजबूती भारत के लिए भी सर्वोच्च प्राथमिकता का मामला बन गया है। यों हमारे देश के पास पहले से ही सेना के तीनों अंगों का एक व्यापक मोर्चा है और वह हर स्तर पर अभेद्य ताकत रखता है। लेकिन युद्ध के मोर्चों पर खड़ी हो रही नित नई परिस्थितियों में नए सीडीएस के रूप में अनिल चौहान के सामने सबसे जरूरी काम थल सेना, जल सेना और वायुसेना के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए भारत की सैन्य क्षमता को कई गुना बढ़ाने का होगा, ताकि एकीकृत नियंत्रण के जरिए संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल हो सके। यह काम देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने शुरू किया था, मगर अचानक हुए हादसे में उनके निधन के बाद यह बाकी रह गया था।
सही है कि नए सीडीएस के सामने एक मुश्किल सीमित बजट में सेना का आधुनिकीकरण करने की होगी। मगर उम्मीद है कि इसका हल वे अपने अनुभव और प्रबंध कौशल के दम पर आसानी से निकाल लेंगे। अनिल चौहान की इस पद पर नियुक्ति इसलिए भी अहम है कि उन्हें चीन से जुड़े मामलों का विशेषज्ञ माना जाता रहा है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि पिछले कुछ सालों से चीन की ओर से भारत सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी की जा रही हैं।
चीन भारत को उकसाने से लेकर घुसपैठ तक करता रहा है, उसके मद्देनजर उस पर भरोसा करना एक जोखिम का ही काम है। दूसरी ओर, सीमा पर आतंकियों को शह देने से लेकर अन्य शक्लों में पाकिस्तान की हरकतें जगजाहिर रही हैं और इसके पीछे भी चीन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे में अगर सीमा पर गतिविधियों के साथ-साथ खासतौर पर चीन के चक्रव्यूह की अच्छी समझ रखने वाली शख्सियत के तौर पर अनिल चौहान अब सीडीएस के रूप में सामने आए हैं तो इसकी अपनी अहमियत है।