चौतरफा बदहाली के बीच

केंद्र सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम को शायद यही काम सौंपा गया है

Update: 2021-06-08 03:13 GMT

केंद्र सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम को शायद यही काम सौंपा गया है कि वे सरकार को सलाह देने के बजाय जो हालत है, उसकी सकारात्मक तस्वीर जनता के बीच पेश करने की भूमिका निभाएं। तो उन्होंने कहा दिया है कि जुलाई से अर्थव्यवस्था बिल्कुल अपनी पटरी पर लौट आएगी। पिछले साल उन्होंने कहा था कि लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था की वी शेप रिकवरी होगी। यानी जितनी तेजी से आर्थिक विकास दर गिरी है, उतनी ही तेजी से चढ़ेगी। अब चूंकि वे अपनी कही बातों की कोई जवाबदेही नहीं मानते, इसलिए फिर से एक वैसा ही जुमला उन्होंने उछाल दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था 7.3 फीसदी सिकुड़ गई है। इसका विश्लेषण करते हुए भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने ध्यान दिलाया कि 2020-21 के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े के साथ भारत 194 देशों की रैंकिंग में 142वें नंबर पर आ गया है। जबकि भारत कभी दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते देशों में एक था। ये तो एक पहलू है

दूसरा पहलू कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुआ हाल है, जब चौतरफा गिरावट की खबरें आ रही हैं। 2021 में सिर्फ कृषि और बिजली को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर कोरोना महामारी और लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। व्यापार, निर्माण, खनन और विनिर्माण सेक्टर में भारी गिरावट दर्ज की गई। भारत में असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ कामगारों में से ज्यादातर इन्हीं सेक्टर में काम करते है। सीएमईआई के आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर फिलहाल 11 प्रतिशत से ज्यादा है। ये तो आंकड़ों की बात हुई। असल हाल यह है कि कोविड की दूसरी लहर से करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। ज्यादातर की जमा पूंजी का बड़ा हिस्सा खर्च हो गया है। कई परिवार कर्ज में डूब गए हैं। सरकार को इनकी कोई चिंता है, इसका कोई संकेत नहीं है। बल्कि इस आलोचना में दम है कि भाजपा सरकार के हर फैसले में राजनीति ही शामिल रहती है। उज्ज्वला, पीएम आवास, पीएम किसान जैसी योजनाओं का मकसद चुनावी फायदा उठाना भर रहा है। लेकिन सरकार आम जन की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मूलभूत ढांचे पर खर्च करने में कोई रुचि नहीं रखती। गांवों में फैली कोरोना की दूसरी लहर ने यह सच्चाई उजागर कर दी। ज्यादा अफसोसनाक यह है कि इससे भी सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा। वह बदहाली को पॉजिटिव स्पिन देने में जुटी हुई है।


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