मतलब नाम वेल्थ क्रिएटर्स का और न केवल दो टूक बचाव अंबानी-अडानी का, बल्कि यह भी ऐलान की इन्हीं से भारत का भविष्य है। ये अंबानी-अडानी जब खरबपति से शंखपति बनेंगे तभी भारत की आर्थिकी में ट्रिलियन डॉलरों में विकास का आंकड़ा बढ़ता जाएगा। इसी थीसिस में फिर नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में दो टूक शब्दों में सरकारी कारखानों-सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और उन्हें चलाने वाले बाबुओं (आईएएस- नौकरशाही जमात) पर निशाना साधते हुए कहा कि- सबकुछ बाबू ही करेंगे। आईएएस बन गया मतलब वह फर्टिलाइजर का कारखाना भी चलाएगा, केमिकल का कारखाना भी चलाएगा, आईएएस हो गया तो वह हवाई जहाज भी चलाएगा। यह कौन सी ब़ड़ी ताकत बना कर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश दे करके हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं तो देश का नौजवान भी तो देश का है।
यह है छप्पन इंची छाती वाले प्रधानमंत्री की डंके की चोट पर बात। मगर क्या यह उनका संकल्प भी है? यदि देश और देश के बाबू, देश के नौजवानों की संपदा, तनख्वाह, रोजगार सब वेल्थ क्रिएटर्स से ही आना है, खरबपतियों के शंखपति बनने से ही समाज के गरीब लोगों को सस्ता फोन, अनाज, सुविधाएं मिलेगी तो जाहिर है कि अंबानी-अडानी जैसे खरबपतिवेल्थ क्रिएटर्स को देश की खेती, मार्केटिंग, प्रोसेसिंग, बिक्री सबका मां-बाप बनाने का उद्देश्य क्यों नहीं सार्वजनिक घोषित होना चाहिए? प्रधानमंत्री को लगे हाथ लोकसभा में ही कह देना था कि किसान नासमझ, झूठ-भ्रम में हैं। मेरी गारंटी है कि अंबानी-अडानी से दस सालों में किसानों की आमद तीन गुना बढ़ जाएगी। सरकार और सरकार के बाबुओं के बस में किसानी की आमद का दो गुना बढ़ना संभव नहीं है। उलटे ठगाई होती है। बाबू सरकार को भी चूसते हैं और किसान को भी!
जो हो मैं कायल हो गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा में अंबानी-अडानी याकि खरबपति वेल्थ क्रिएटरों से देश के 138 करोड़ लोगों के कल्याण होने की दो टूक घोषणा से। संभव है यह आरएसएस और भाजपा के स्वदेशी, गांधीवादी-समाजवाद की जगह पूंजीवाद का नया वैचारिक अवतार है। आजाद भारत के 73 साला इतिहास में किसी प्रधानमंत्री, सरकार ने संसद में यह नहीं कहा कि जनता की कल्याणकारी व्यवस्था निजी क्षेत्र के वेल्थ क्रिएटरों से ही संभव है। उस नाते संघ-भाजपा को अब संविधान संशोधन कर 'सेकुलर' के अलावा 'समाजवादी' शब्द भी मिटाना होगा। जाहिर है अब 'हिंदू पूंजीवादी राष्ट्र' का विचार दर्शन संघ-भाजपा का उद्घोष, संकल्प है।
हां, संघ-भाजपा को प्रधानमंत्री के कथन पर लीपापोती की जरूरत नहीं है। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी कांग्रेस के पंडित नेहरू के समाजवादी राज मेंवेल्थ क्रिएटरों को निकम्मा, शोषक माने जाने की सोच के समर्थक नहीं थे। अटलबिहारी वाजपेयी का गांधीवादी-समाजवाद का जुमला फरेब था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस विरासत से भाजपा-संघ को मुक्त करा दिया है। तभी उन्होंने संसद में अंबानी के जियो मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं पर भी लोकसभा में किसानों को आड़े हाथों लिया। तो इतना जब साहस दिखाया है तो पश्चिम बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु में अगला चुनाव इस नारे पर क्यों न हो कि उनका वादा वेल्थ क्रिएटरअंबानी-अडानीसे पांच साल में इतने कारखाने, इतने रोजगार और फलां-फलां संपदा निर्माण का है!