अलवर रेप केस और केरल की खबर: कहीं आक्रोश और कहीं एक गहरी चुप्पी, यह भी एक राजनीति है जनाब..!
अलवर रेप केस और केरल की खबर
इस हफ़्ते कुछ और लिखने का प्लान था। कुछ ऐसा जो फ़ील गुड कराता, हर तरफ से आ रही बुरी ख़बरों के बीच थोड़ी-सी, एकदम थोड़ी-सी ही सही लेकिन ख़ुशी देता। उम्मीद जगाता लेकिन ऐसा कुछ नहीं लिख पा रही। इस हफ़्ते मेरा मन था कि यूपी चुनाव में कांग्रेस ख़ासकर प्रियंका गांधी के 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' कैंपेन को लेकर बातें हों। पार्टी के एजेंडे की। और बड़ी संख्या में महिलाओं को चुनाव में टिकट देने पर बात हो, लेकिन…
ये प्लान, प्लान ही रह गया। लेकिन क्यों? इस सवाल के जवाब में मैं दो घटनाओं को आपके सामने रखना चाहती हूं। पहली घटना राजस्थान के अलवर से जुड़ी है। बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 11 जनवरी की देर शाम तिजारा पुलिया पर लहूलुहान हालत में एक मूक-बधिर नाबालिग लड़की मिली। लड़की के प्राइवेट पार्ट्स के पास से बहुत खून निकल रहा था। करीब आठ घंटे ऑपरेशन चला। और फिलहाल पीड़िता जयपुर के एक बड़े सरकारी अस्पताल की पहली मंज़िल पर स्थित मुख्य सर्जिकल आईसीयू में भर्ती है। वो केवल पंद्रह साल ही है।
रेप की खबर और एक चुप्पी
पीड़िता की हालत देखकर कर पहले स्थानीय पुलिस अधिकारी ने कहा था-
कुछ तो बहुत बुरा हुआ है। रेप हुआ है। लेकिन एक हफ़्ते बाद रेप पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और अभी तक मिले तकनीकी साक्ष्य के आधार पर पुलिस का कहना है कि 'सेक्सुअल पेनिट्रेशन', 'वजाइनल और इनर पेनिट्रेशन' की पुष्टि नहीं हुई है, माने रेप नहीं हुआ है। वहीं पीड़िता की मां का भी कहना है कि उसकी लड़की के साथ कुछ ना कुछ बहुत बुरा हुआ है। गंदा काम हुआ है। लेकिन पुलिस कह रही है कि इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है।
अभी तक इस मामले में कोई गिरफ़्तारी भी नहीं हुई है। पीड़िता के पिता ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी का फोन आया था और उन्होंने कहा है कि बेटी को न्याय मिलेगा। फोन पर बात करना, गले लगाना। मिलने जाना। ये सब तो ठीक है। लेकिन इस घटना को लेकर राजस्थान सरकार, पुलिस और दिल्ली में बैठे तथाकथित महिला मामलों के पहरुओं की चुप्पी हैरान करने वाली है।
लड़कियों से दुष्कर्म जैसे मामलों पर भी सियासत अलग ढंग से होने लगी है।
केरल की घटना और बिशप की रिहाई
अब दूसरी घटना की बारी, 14 जनवरी को केरल के चर्चित नन रेप केस में कोर्ट का फैसला आया। अदालत ने नन से रेप के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी कर दिया है। 57 वर्षीय फ्रैंको मुलक्कल भारत के ऐसे पहले कैथोलिक बिशप थे, जिन्हें नन के यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कोट्टायम की अदालत ने 100 दिनों से अधिक समय तक चले मुकदमे के बाद यह फ़ैसला दिया।
अदालत का कहना था कि सबूतों का अभाव था। लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ इस मामले में 83 गवाहों और 30 से अधिक सबूतों के आधार पर सुनवाई हुई थी। जब ये फ़ैसला आया तो महिलाओं का एक बड़ा वर्ग हैरान-परेशान रह गया। क़ानून की समझ रखने वालों के माथे पर भी पसीना आ गया। अभी तक कोई भी कोर्ट के इस फैसले को समझ नहीं पा रहा है। केरल की पुलिस भी कोर्ट के फैसले को हज़म नहीं कर पा रही है लेकिन रेप के आरोपी ने इस फैसले को भगवान की कृपा बताया है।
अब पता नहीं ये भगवान की कैसी कृपा है जो इतने सारे गवाह और सबूतों के बाद भी जज साहब को आरोपी निर्दोष लगा। और उन्होंने न्याय करते हुए आरोपी को बरी कर दिया। फिलहाल जो खबर है उसके मुताबिक़ केरल पुलिस इस फैसले के खिलाफ अपील करने वाली है, ऐसा हो तो ही बेहतर।
ख़ैर, अब मैं अपने लेख के पहले पैरा पर आती हूं। हिंदी पट्टी के एक राज्य, राजस्थान और देश के सबसे शिक्षित माने जाने वाले प्रदेश केरल से एक साथ, एक आवाज़ आ रही है- रेप नहीं हुआ! राजस्थान में ये बात पुलिस कह रही है, आधार मेडिकल रिपोर्ट को बनाया जा रहा है, और केरल में आधार - सबूतों का अभाव है। लेकिन बातें दोनों जगह से एक सी ही कही जा रही है।
अब ऐसे माहौल में महिलाओं को टिकट देने, 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' जैसे नारे देने और मिलने-मिलाने पर कैसे बात हो? मेरे से तो नहीं हुआ। लेकिन आप ख़ूब कर पा रहे हैं। आप, मानें वे, जो ऐसे हर मामले में सोशल मीडिया को सर पर उठा लेते हैं। हाय-तौबा मचाते हैं लेकिन पता नहीं क्यों, इन दो मामलों पर आपकी आवाज़ मैं नहीं सुन पा रही। मेरी बात मानिए, जब भी कहीं कुछ गलत हो, कुछ गड़बड़ा रहा हो तो एक-सी ऊर्जा से लिखिए न, बोलिए न। एक मामले में बहुत ऊंचा बोलना और दूसरे में चुप्पी साध लेना सही बात नहीं है। ठीक है? तो बोलते रहिए और कहिए-रेप हुआ तो न्याय मिले। इधर-उधर की बातें ना हो। ...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।