एयर इंडिया: 1978 की टूट के बाद एक चक्र हुआ पूरा, फिर टाटा के हाथ आए महाराजा

फरवरी 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Desai) ने उन दिनों कोलकाता में रह रहे

Update: 2021-10-09 12:14 GMT

बिक्रम वोहरा फरवरी 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Desai) ने उन दिनों कोलकाता में रह रहे रिटायर्ड एयर चीफ मार्शल पीसी लाल को फोन कर उन्हें जेआरडी टाटा से इंडियन एयरलाइंस (Indian Airlines) के प्रमुख का पदभार लेने को कहा. पीसी लाल ने मेरे साथ बातचीत में बताया था कि उन्होंने जेआरडी के पीठ पीछे उन्हें हटाए जाने का विरोध किया, मगर मोरारजी देसाई की जिद के आगे उनकी एक नहीं चली और उन्हें जेआरडी टाटा (JRD Tata) से मिलने मुंबई जाना पड़ा. फिर रिटायर्ड एयर चीफ मार्शल पीसी लाल और जेआरडी टाटा के बीच कुछ इस तरह से बातचीत हुई. लाल ने पूछा, "सर, मैं अजीब पसोपेश में हूं. मेरे पास एयरलाइंस को टेकओवर करने का सरकारी आदेश है. आप क्या चाहते हैं? मैं आपकी इजाजत चाहता हूं."

जिसने भी जेआरडी से मुलाकात की हो वे जानते होंगे कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वो अपनी शिष्टता और गरिमा नहीं खोते थे. जेआरडी ने सिर्फ कंधा उचकाया और कहा, "एयर मार्शल आपको मेरी अनुमति की जरूरत नहीं है. आपके पास प्रधानमंत्री के आदेश की तामील करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. हां, मुझे पहले से इसकी जानकारी दे दी गई होती तो अच्छा लगता. मेरी तरफ से आपको बधाई." अगली सुबह एयरलाइंस के मैनेजिंग डायरेक्टर केजी अप्पूसामी और उनके डिप्टी नारी दस्तूर ने लाल को प्रमुख नियुक्त करने के विरोध में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वो जेआरडी टाटा ही थे जिन्होंने दोनों को वापस काम पर लौटने का आदेश दिया.
43 साल बाद फिर से एयर इंडिया 'टाटा' के पास
आज 43 साल बाद (और एयर इंडिया की स्थापना के 68 साल बाद) दोनों नाम एक बार फिर साथ जुड़ गए हैं. मगर आगे का रास्ता आसान नहीं है. पिछले तैंतालीस वर्षों में एयर इंडिया को बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई. इस वक्त महाराजा पर 40,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. सरकार की योजना है कि वो इनमें से 17,000 करोड़ रुपये खुद वहन करेगी और बाकी 23,000 करोड़ कर्ज का बोझ नये मालिक यानि टाटा को वहन करना होगा.
उम्मीद की जा रही है कि टाटा के हाथ में लौटकर एयर इंडिया अपनी पुरानी साख पा लेगा. 1978 तक, जब तक महाराजा टाटा के हाथ में था, वो दुनिया की बेहतरीन एयरलाइंस में से एक था. आज एयर इंडिया की स्थिति देखकर कोई उसके स्वर्ण काल की कल्पना भी नहीं कर सकता.
एयर इंडिया के सामने कई चुनौतियां
हवाई सेवा के बाजार को सिर्फ कोरोना महामारी ने बर्बाद नहीं किया है. इंडिगो को छोड़कर बाकी सभी एयरलाइंस घाटे में चल रहे हैं. इसलिए एयर इंडिया में दोबारा जान फूंकने के लिए फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा. उसे फायदे वाले हवाई रूट चुनने होंगे, कर्मचारियों और रख-रखाव के खर्च पर अंकुश लगाना होगा, और उन नेताओं और नौकरशाहों के चंगुल से बाहर निकलना होगा जिन्होंने एयर इंडिया को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति और जागीर की तरह इस्तेमाल किया है.
इंडियन एयरोस्पेस एंड डिफेंस पत्रिका में लिखते हुए महाराजा के बारे में एयर इंडिया के पूर्व जनसंपर्क निदेशक जीतेंद्र भार्गव कहते हैं, "करीब दो दशक पहले विनिवेश की पहली प्रक्रिया के बाद एयर इंडिया के मूल्य में भारी गिरावट देखी गई. जैसे-जैसे वक्त बीता इसकी संपत्ति और कीमत कम होती चली गई. आज हवाई क्षेत्र में एयर इंडिया हाशिये पर है. घरेलू बाजार में इसकी मौजूदगी केवल 12 से 13 फीसदी रह गई है. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में भी महाराजा की हिस्सेदारी महज 17 फीसदी तक सिमट गई है. आने वाले वक्त में जैसे-जैसे दूसरे निजी एयरलाइंस अपने हवाई बेड़े का विस्तार करेंगे, एयर इंडिया की भारतीय उड्डयन बाजार में हिस्सेदारी और कम हो सकती है. क्योंकि पूंजी की कमी की वजह से एयर इंडिया का विस्तार नहीं हो सका है. सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी की अपनी एक सीमा होती है. अंदरूनी खामियों की वजह से वो प्रतियोगी माहौल में नहीं टिक पाती है.
क्या एयर इंडिया फिर से अपने स्वर्ण काल में लौट सकेगा
एयर इंडिया के एक पूर्व प्रबंध निदेशक ने कहा था कि एयरलाइंस के प्रबंधन में यहां CEO भी अपना आधा ही योगदान दे पाता है, क्योंकि उसका आधा वक्त मंत्रियों, संसदीय समितियों और अफसरों के साथ बैठकों में या उन सांसदों के सवालों के जवाब देने में ही बर्बाद हो जाता है जो खुद को एयरलाइन का मालिक समझते हैं."
निकट भविष्य में लो-बजट कैरियर आकाश के आने और जेट के दोबारा शुरू होने की खबर से आशा की किरण जगी है. भारत में इन दिनों रिकॉर्ड 2,300 लैंडिंग और टेकऑफ दर्ज की जा रही है. ऐसे में ये सोचना जरूरी है कि एयर इंडिया इन सब के बीच खुद को स्थापित करने के लिए क्या कर सकता है. पिछले 10 साल में किंगफिशर, जेट और कोस्टा सहित 7 भारतीय हवाई कंपनियां बंद हो गईं. आज भी स्पाइसजेट और गोएयर जैसे लो-बजट एयरलाइंस और विस्तारा जैसे फुल-बजट एयरलाइंस माली तौर पर अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय रूट का बड़ा भंडार एयर इंडिया के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है. घरेलू सर्किट सहित दुनिया भर में एयर इंडिया के 6,200 स्लॉट हैं. खुद एयर इंडिया एक्सप्रेस के पास 555 हवाई रूट हैं, जो इसे पुराने रंग में वापस लाने में बेहद अहम सबित हो सकते हैं. एक हवाई अड्डे पर जितना कम वक्त एक एयरलाइंस को मिलता है उसका स्लॉट उतना ही महत्वपूर्ण हो जाता है. उम्मीद है टाटा के अंदर एयर इंडिया का कायाकल्प हो जाएगा.


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