राजद्रोह कानून के खिलाफ

आज के दौर में राजद्रोह कानून का सवालों के कठघरे में खड़ा होना न केवल सामान्य

Update: 2021-07-16 02:00 GMT

आज के दौर में राजद्रोह कानून का सवालों के कठघरे में खड़ा होना न केवल सामान्य, बल्कि स्वाभाविक बात है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि आखिर इस कानून को खत्म क्यों नहीं किया जा रहा? यह आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कानून था। शीर्ष अदालत ने इस दंडात्मक कानून की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब-तलब किया है। कोई आश्चर्य नहीं, नाराजगी जाहिर करते हुए अदालत ने कहा है कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को चुप कराने के लिए किया था। अदालत की इस आपत्ति का स्वागत किया जाना चाहिए। लोकतंत्र में लोक को हमेशा सम्मान हासिल होना चाहिए, लेकिन जब लोक पर तंत्र हावी हो जाता है, तब जाहिर है, लोकतंत्र का स्वरूप बिगड़ जाता है। राजद्रोह कानून से क्या देश को लाभ हो रहा है?

खुशी की बात है कि शीर्ष अदालत की नाराजगी के बाद अटॉर्नी जनरल ने लचीले रुख के साथ कहा कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय किए जा सकते हैं। उन्होंने इस कानून को पूरी तरह से खारिज करने के बजाय उसकी जरूरत का बचाव किया। हालांकि, अनेक कानून ऐसे रहे हैं, जिनको केंद्र सरकार ने समय के साथ लोगों के अनुकूल बदला है। राजद्रोह के कानून को भी जाना चाहिए। कोर्ट ने उचित ही पूछा है कि जब पुराने अनेक कानूनों को खत्म किया गया है, तब राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है? खैर, अब केंद्र सरकार अगर राजद्रोह कानून को बनाए रखना चाहती है, तो उसे मजबूत तर्क के साथ सामने आना पड़ेगा। सबसे बड़ी चिंता ऐसे कानूनों का दुरुपयोग है, जिसे नए दौर में रोकना जरूरी है। देखना चाहिए कि कहीं राजद्रोह कानून तंत्र को भ्रष्ट तो नहीं बना रहा है? यह कानून लोकहित में ज्यादा है या तंत्रहित के लिए ही इसे बनाए रखा गया है? एक समय था, 1962 में केदारनाथ यादव बनाम बिहार सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को बनाए रखा था, लेकिन अब दौर दूसरा है।
प्रधान न्यायाधीश की पीठ ने बिल्कुल सही कहा है कि हमारी मुख्य चिंता इस कानून के दुरुपयोग को लेकर है। आईपीसी की धारा 124अ (राजद्र्रोह) को चुनौती देते हुए पूर्व सैन्य अधिकारी मेजर जनरल एसजी वोम्बाटकेरे ने याचिका दायर की थी। उनकी दलील है कि इस कानून का इस्तेमाल कई बार अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने के लिए किया जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124अ के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति अपने शब्दों, लेखन, चिह्नों, दृश्य माध्यम या फिर अन्य किसी माध्यम से भारत में कानून के तहत बनी सरकार के खिलाफ विद्रोह को भड़काता है, तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। यह अपराध गैर-जमानती भी है, अत: यह कानून प्रशंसनीय नहीं है। काश! पुलिस सुधार पूरे हुए होते, तो राजद्रोह कानून का दुरुपयोग भी रुक गया होगा, लेकिन अब किसी भी सभ्य समाज और देश में लोगों को अनुशासित रखने के लिए सीधे राजद्रोह कानून के बजाय दूसरे कानूनों का इस्तेमाल बेहतर है।


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