यूक्रेन के बाद दो सवाल- चीन व पाक से विवाद के परिप्रेक्ष्य में भारत के साथ कौन खड़ा है?

सम्पादकीय

Update: 2022-02-26 04:59 GMT
Soumitra Roy
ईश्वर युद्ध की रचना इसलिए करता है, ताकि अमेरिकियों को दुनिया के भूगोल का पता चले. मार्क ट्वेन की इस उक्ति को रूस-यूक्रेन के मौजूदा युद्ध के बरक्स खूब अच्छे से आंका जा सकता है और कल रात यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेन्सकी के उस रुला देने वाले भाषण से भी. जिसमें उन्होंने कहा कि उनके देश के साथ आज कोई नहीं खड़ा है. हम भारतीयों को अपने शहर का भूगोल ही पता नहीं होता, लेकिन पाकिस्तान का भूगोल कोई भी बता देगा.
यूक्रेन पर रूसी हमले के आलोक में 2 सवाल उभरे हैं- भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद के परिप्रेक्ष्य में भारत के साथ कौन खड़ा है? यही सवाल अब ताइवान के सामने भी है. वह भी खुद को आज बहुत अकेला महसूस कर रहा होगा. यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया की तमाम गोलबंदी और शक्ति संतुलन को बदल दिया है. अमेरिका पर कौन भरोसा करेगा, जो रूस और चीन से लड़ना नहीं चाहता?
जैसे ही बाइडेन ने पिछली रात यह बात कही तो नैशडेक उछल गया. निवेशक लहालोट हो गए. खुद नाटो देशों की अमेरिकापरस्ती भी डगमग है. हालांकि अमेरिका ने कहा है कि अगर रूस ने नाटो की ओर कदम बढ़ाए तो लड़ाई फैलेगी. क्या तब भी अमेरिका कूदेगा?
चलिए दुनिया का भूगोल समझें-
रूस की समुद्री सीमा 36000 किमी है, लेकिन ज़्यादातर तट 6 महीने जमे रहते हैं, सो भूमध्य सागर इकलौता व्यापारिक जलमार्ग है, जहां यूक्रेन फंस रहा था. याद कीजिये 2013-2014 में पुतिन के उस बयान को जिसमें उन्होंने कहा था- किसी स्प्रिंग को उसकी हद तक दबाओगे तो वह दोगुना उछलेगा.
यूक्रेन का तट काला सागर को भूमध्य सागर से जोड़ता है और सालभर खुला है. 2010 में हुए चुनाव में यूक्रेन के पूर्वी हिस्से ने रूस का साथ देकर बगावत कर दी थी. अगर यूक्रेन ने सिर्फ अपने पश्चिमी हिस्से के नाटो में शामिल होने की मांग पर रूस के मिजाज की अनदेखी की है तो इसे समझदारी नहीं कहेंगे.
पुतिन, अमेरिका और नाटो की इस चाल को बखूबी समझ गए कि यूक्रेन के बहाने रूस की घेराबंदी की जा रही है. अब यूक्रेन पर कब्ज़े के बाद भी रूस को बोसफोरस नहर का रास्ता पकड़ना होगा, जो नाटो देश तुर्की के नियंत्रण में है. उधर, अमेरिका ने रोमानिया में रूस का रास्ता रोकने की कोशिश शुरू की है.
बात सिर्फ़ यूक्रेन पर कब्ज़े की ही नहीं, बल्कि व्यापारिक रास्ते की भी है. जिसकी ज़रूरत रूस को अब आर्थिक प्रतिबंधों के बाद ज़्यादा होगी. उसे कतई बर्दाश्त नहीं होगा कि तुर्की या रोमानिया में से कोई भी उसके रास्ते की रुकावट बने. फिर अमेरिका का रुख क्या होगा?
इस पूरी जंग में कौन जीता और कौन हारा? पुतिन अपनी जनता को समझा देंगे कि देश को घेरने और व्यवसायिक मार्ग बंद करने की कोशिश का जवाब देने के लिए उनके सामने और कोई रास्ता नहीं था. लेकिन बाइडेन, नाटो और भारत जैसे गैर नाटो देशों को कभी मदद का यकीन नहीं दिला पाएंगे.
शक्ति संतुलन चीन और रूस के पास केंद्रित हो चुका है और दोनों अब साथ-साथ हैं. रूस का तेल, गैस, गेहूं, हथियार, खनिज- सब चीन खरीदेगा. भारत किसके साथ खड़ा होगा?
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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