2008 के मालेगांव कांड में हुई गिरफ्तारियों के बाद उछाला गया था हिंदू आतंकवाद का जुमला
2008 के मालेगांव कांड
महाराष्ट्र के मालेगांव में विस्फोट मामले के एक गवाह के यह कहने के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाने पर आश्चर्य नहीं कि मुंबई के तत्कालीन आतंकवाद निरोधक दस्ते यानी एटीएस ने उसे योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के चार नेताओं का नाम लेने के लिए मजबूर भी किया था और प्रताड़ित भी। तब इस एटीएस के अतिरिक्त आयुक्त थे परमबीर सिंह, जो कई गंभीर आरोपों से दो-चार हैं और फिलहाल निलंबित चल रहे हैं। मालेगांव मामले के गवाह ने एटीएस पर जो सनसनीखेज आरोप लगाया, वह एनआइए की विशेष अदालत के समक्ष लगाया। यह पहली बार नहीं, जब इस तरह की बातें सामने आई हों। मालेगांव मामले के अन्य गवाह भी इसी तरह के आरोप लगा चुके हैं। यह भी सनद रहे कि महाराष्ट्र में गुजरात पुलिस के हाथों एक मुठभेड़ में मारी गई लश्करे तैयबा की आतंकी इशरत जहां को किस प्रकार निर्दोष साबित करने की कोशिश की गई थी। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि 2008 के मालेगांव कांड में हुई गिरफ्तारियों के बाद हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला गया था।
2008 में ही मुंबई में भीषण आतंकी हमले के बाद एक पुस्तक लिखकर देश-दुनिया को दहलाने वाले इस हमले को आरएसएस की साजिश बताने की फूहड़ कोशिश की गई थी। जिन्होंने भी ऐसी कोशिश की, उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, लेकिन इससे यह तो पता चल ही गया कि किस तरह हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा करने की चेष्टा हो रही थी। इसमें तत्कालीन संप्रग सरकार के केंद्रीय मंत्री भी शामिल पाए गए थे। उनकी ओर से भी यह कहा जा रहा था कि हिंदू आतंकवाद उभर आया है।
यह वह दौर था, जब खुद राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से कहा था कि भारत को लश्कर और जैश सरीखे आतंकी संगठनों से ज्यादा खतरा हिंदू संगठनों के अतिवाद से है। इस सबको देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि इस सवाल का जवाब तलाशने की कोई कोशिश की जाए कि मालेगांव मामले की जांच के नाम पर देश-दुनिया को गुमराह करने की कोशिश तो नहीं की गई? इस सवाल का जवाब इसलिए खोजा जाना चाहिए, क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यह सामने आना ही चाहिए कि कहीं किसी साजिश या फिर संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तो हिंदू आतंकवाद का जुमला नहीं गढ़ा गया? यदि यह साबित होता है कि किसी राजनीतिक मकसद से हिंदू आतंकवाद का जुमला गढ़ा गया तो फिर यह भी साफ होगा कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर देश की सुरक्षा व्यवस्था और साथ ही जांच एजेंसियों से खिलवाड़ भी किया गया।महाराष्ट्र के मालेगांव में विस्फोट मामले के एक गवाह के यह कहने के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाने पर आश्चर्य नहीं कि मुंबई के तत्कालीन आतंकवाद निरोधक दस्ते यानी एटीएस ने उसे योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के चार नेताओं का नाम लेने के लिए मजबूर भी किया था और प्रताड़ित भी। तब इस एटीएस के अतिरिक्त आयुक्त थे परमबीर सिंह, जो कई गंभीर आरोपों से दो-चार हैं और फिलहाल निलंबित चल रहे हैं। मालेगांव मामले के गवाह ने एटीएस पर जो सनसनीखेज आरोप लगाया, वह एनआइए की विशेष अदालत के समक्ष लगाया। यह पहली बार नहीं, जब इस तरह की बातें सामने आई हों। मालेगांव मामले के अन्य गवाह भी इसी तरह के आरोप लगा चुके हैं। यह भी सनद रहे कि महाराष्ट्र में गुजरात पुलिस के हाथों एक मुठभेड़ में मारी गई लश्करे तैयबा की आतंकी इशरत जहां को किस प्रकार निर्दोष साबित करने की कोशिश की गई थी। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि 2008 के मालेगांव कांड में हुई गिरफ्तारियों के बाद हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला गया था।
2008 में ही मुंबई में भीषण आतंकी हमले के बाद एक पुस्तक लिखकर देश-दुनिया को दहलाने वाले इस हमले को आरएसएस की साजिश बताने की फूहड़ कोशिश की गई थी। जिन्होंने भी ऐसी कोशिश की, उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, लेकिन इससे यह तो पता चल ही गया कि किस तरह हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा करने की चेष्टा हो रही थी। इसमें तत्कालीन संप्रग सरकार के केंद्रीय मंत्री भी शामिल पाए गए थे। उनकी ओर से भी यह कहा जा रहा था कि हिंदू आतंकवाद उभर आया है।
यह वह दौर था, जब खुद राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से कहा था कि भारत को लश्कर और जैश सरीखे आतंकी संगठनों से ज्यादा खतरा हिंदू संगठनों के अतिवाद से है। इस सबको देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि इस सवाल का जवाब तलाशने की कोई कोशिश की जाए कि मालेगांव मामले की जांच के नाम पर देश-दुनिया को गुमराह करने की कोशिश तो नहीं की गई? इस सवाल का जवाब इसलिए खोजा जाना चाहिए, क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यह सामने आना ही चाहिए कि कहीं किसी साजिश या फिर संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तो हिंदू आतंकवाद का जुमला नहीं गढ़ा गया? यदि यह साबित होता है कि किसी राजनीतिक मकसद से हिंदू आतंकवाद का जुमला गढ़ा गया तो फिर यह भी साफ होगा कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर देश की सुरक्षा व्यवस्था और साथ ही जांच एजेंसियों से खिलवाड़ भी किया गया।
दैनिक जागरण