सिंधिया और जितिन प्रसाद के बाद क्या अब नवीन जिंदल भी कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने वाले हैं?

कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं.

Update: 2021-06-18 05:50 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक |अजय झा  | कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. नेतृत्व के ऊपर पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उठा विवाद मानो कम नहीं था कि अब हरियाणा (Haryana) से खबर आ रही है कि एक और युवा नेता पार्टी को अलविदा कहने की तैयारी में है. खबर है कि कुरुक्षेत्र से दो बार सांसद रहे नवीन जिंदल (Naveen Jindal) कांग्रेस पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होने वाले हैं. नवीन जिंदल का नाम देश के बड़े उद्योगपतियों में शामिल है. 2004 और 2009 के चुनाव जीतने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में मोदी के आंधी में जिंदल भी चुनाव हार गए. 2019 के चुनाव में काफी नाटकीय ढंग से जिंदल ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया था. कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने चुनाव के ठीक पहले अपने कुरुक्षेत्र के दौरे में मंच से नवीन जिंदल के उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी.

हमउम्र होने के कारण राहुल गांधी और जिंदल करीबी माने जाते थे. जिंदल चुनाव लड़ना तो चाहते थे पर कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में नहीं. ऊपर से परिवार का भी दबाव था. बड़े भाई सज्जन जिंदल, जिनके मोदी से अच्छे सम्बन्ध रहे हैं, का दबाब था कि नवीन बीजेपी के टिकट पर चुनाव लडें. बीजेपी उन्हें टिकट देने को तैयार थी. 2014 में जिंदल को हराने वाले राजकुमार सैनी ने बीजेपी छोड़ कर अपनी खुद की एक पार्टी बना ली थी. बीजेपी को तलाश थी एक ऐसे प्रत्याशी की जो सैनी को हरा सके और जिंदल इस मानदंड पर फिट थे.
नवीन जिंदल शुरू से बीजेपी से प्रभावित थे
एक तरफ राहुल गांधी का मंच से उनकी उम्मीदवारी का ऐलान और दूसरी तरफ परिवार का दबाव, जिंदल ने चुनाव के ठीक पहले फैसला लिया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. बीजेपी को हरियाणा के तत्कालीन मंत्री नायब सिंह सैनी को अपना उम्मीदवार बनाना पड़ा और कांग्रेस पार्टी ने निर्मल सिंह को मैदान में उतरा गया. एक तरफ़ा लड़ाई में नायब सिंह सैनी ने निर्मल सिंह को 3.85 लाख मतों से हरा दिया और राजकुमार सैनी का सूपड़ा साफ़ हो गया.
नवीन जिंदल को छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि थी. पिता ओमप्रकाश जिंदल राजनीति में काफी सक्रिय थे. लोकसभा सांसद और बाद में कांग्रेस के विधायक थे. कहा जाता है कि नवीन जिंदल अटल बिहारी वाजपेयी से काफी प्रभावित थे और बीजेपी के टिकट पर 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, पर पिता के दबाव में और इच्छा के विरुद्ध उन्हें कांग्रेस पार्टी में शामिल होना पड़ा. कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और वह लगातार दो बार चुनाव जीते भी. भले ही वह 2014 में चुनाव हार गए, पर जिंदल कांग्रेस पार्टी से खुश नहीं थे. कोयला घोटाले (Coalgate Scam) में जिंदल की कम्पनी का भी नाम आया था और जिंदल का मानना था कि पार्टी से उन्हें इस विवाद में कोई सहयोग नहीं मिला.
दुश्मनों में दोस्ती हो गई है
लेकिन अब जिंदल का बीजेपी में शामिल होने में कोई बाधा नहीं है. पिता ओमप्रकाश जिंदल की 2005 में जब वह हरियाणा सरकार में मंत्री थे, एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी, मां सावित्री जिंदल जो ओमप्रकाश जिंदल के स्थान पर विधायक और हरियाणा में मंत्री बनी, 2014 के विधानसभा चुनाव में पराजित हो चुकी थीं और अब वह भी राजनीति से दूर हैं. नायब सिंह सैनी को भी कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि उनका मन प्रदेश की राजनीति में है. उन्हें मजबूरीवश लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ा था. कहां हरियाणा में मंत्री होते थे और अब लोकसभा में सांसदों की भीड़ में खो चुके हैं. और अब Zee TV के मालिक सुभाष चंद्रा से भी जिंदल की सुलह हो चुकी है.
कोयला घोटाले के दौरान नवीन जिंदल ने Zee TV पर उनसे 100 करोड़ मांगने का आरोप लगाया था. Zee TV के दो वरिष्ठ पत्रकारों का उन्होंने गुप्त रूप से कोयला घोटाले से सम्बंधित ख़बरों से उन्हें दूर रखने के एवज में पैसे मांगने का विडीयो बना लिया था जिसपर काफी हंगामा हुआ. जिंदल ने पुलिस केस किया और दोनों पत्रकार गिरफ्तार हो गए थे. जिंदल और सुभाष चंद्रा में ऐसी ठनी की नवीन जिंदल ने खुद की एक टीवी कम्पनी बना डाली और माना जाता है कि सुभाष चंद्रा का नवीन जिंदल और सावित्री जिंदल का 2014 में चुनाव हारने में अहम् भूमिका रही. जिंदल और सुभाष चंद्रा दोनों हरियाणा के हिसार जिले से आते हैं, दोनों एक ही जाती से भी हैं. सुभाष चंद्रा शुरू से बीजेपी के करीबी रहे हैं और अब राज्यसभा के सांसद हैं. एक केंद्रीय मंत्री के पहल पर नवीन जिंदल और सुभाष चंद्रा में सुलह हो चुकी है और सुभाष चंद्रा को भी जिंदल को बीजेपी में शामिल करने में कोई ऐतराज नहीं है.
नवीन जिंदल की वजह से ही आज तिरंगे पर आम आदमी का भी अधिकार है
माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिंदल को बीजेपी में शामिल करने के लिए हरी झंडी दिखा दी है. जिंदल बीजेपी के लिए इसलिए और भी ज्यादा उपयुक्त हैं क्योंकि बीजेपी अपने को राष्ट्रवादी पार्टी मानती है और राष्ट्रवाद से जिंदल का नाम इतिहास के पन्नों में जुड़ चुका है. आज अगर देश का कोई भी नागरिक 26 जनवरी और 15 अगस्त के अलावा भी भारतीय तिरंगा लहरा सकता है तो इसका श्रेय नवीन जिंदल को जाता है. छत्तीसगढ़ में अपने एक फैक्ट्री पर उन्होंने राष्ट्रीय तिरंगा लहराया था. शासन वर उन्हें झंडा उतरने का आदेश दिया गया था जिसके बाद पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने जिंदल के पक्ष में फैसला सुनाया और भारतीय तिरंगा पर आम भारतीय का भी अधिकार हो गया. आज अगर भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों के हेलमेट पर तिरंगा लगा होता है तो यह नवीन जिंदल के कारण ही संभव हो पाया है.
कांग्रेस से क्यों एक के बाद एक युवा नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं
जिंदल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल होते हैं तो इसमें कोई बड़ा अचरज नहीं होना चाहिए. पर सवाल वहीं आ कर रुक जाता है कि जब कांग्रेस पार्टी को 2019 से ही पता था कि नवीन जिंदल कांग्रेस पार्टी में खुश नहीं हैं तो पार्टी ने उन्हें मानाने की कोई पहल क्यों नहीं की? अगर जिंदल कांग्रेस पार्टी छोड़ देते हैं तो इसकी एक बड़ी वजह वही होगी जिसके कारण ज्योतिरादिया सिंधिया और जितिन प्रसाद ने पिछले 14 महीनों में पार्टी छोड़ दी, पार्टी में उनकी अनदेखी.
हरियाणा कांग्रेस विभिन्न गुटों में बंटा हुआ है और पार्टी भूल ही गयी कि जिंदल दो बार सांसद रह चुके हैं और 2019 में उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था, पार्टी छोड़ी नहीं थी. पर कांग्रेस पार्टी की एक पॉलिसी रही है कि जो रूठा हो, जो विद्रोह के मूड में हो, जब चुनाव का समय आता है तब ही उनसे बात की जाती है. नवीन जिंदल का बीजेपी में शामिल होना, जो लगभग तय है, कांग्रेस पार्टी के लिए झटका भले ही ना हो, पर इससे जनता के बीच एक गलत सन्देश तो जाएगा ही कि कांग्रेस पार्टी में कुछ न कुछ गड़बड़ है, वर्ना एक के बाद एक युवा नेता ऐसे पार्टी छोड़ कर बीजेपी का दामन नहीं थामते दिखते. साथ ही साथ, कांग्रेस पार्टी हरियाणा में और भी कमजोर हो जायेगी क्योंकि जिंदल परिवार का हिसार और कुरुक्षेत्र इलाके में जनता पर अभी भी खासा प्रभाव है.


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