किसान पंचायत के बाद वेस्ट यूपी में जाट-मुस्लिम एकता की बात, कितनी हकीकत-कितना फसाना

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में 5 सितंबर को आयोजित हुए किसान महापंचायत में जिस तरह से जाट-मुस्लिम एकता पर जोर दिया गया है

Update: 2021-09-07 15:00 GMT

संयम श्रीवास्तव। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में 5 सितंबर को आयोजित हुए किसान महापंचायत में जिस तरह से जाट-मुस्लिम एकता पर जोर दिया गया है, उससे अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव (Assembly Election) का समीकरण बदलने की बात की जा रही है. महापंचायत में किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने एक नारा लगाया था, "अल्लाहू अकबर, हर हर महादेव". इसके जरिए टिकैत हिंदू-मुस्लिम को साधने की कोशिश कर रहे थे. मुजफ्फरनगर की महापंचायत यूपी में अपनी ताकत दिखाने और किसान आंदोलन को एक नया रूप देने के लिए बुलाई गई थी. लेकिन उस मंच से किसान की बात कम और राजनीतिक आरोप ज्यादा लगाए गए.

आज से 8 साल पहले सांप्रदायिक दंगों की आग में जिस तरह मुजफ्फरनगर की जमीन जली थी, इससे हिंदू-मुस्लिम के बीच की दरार और ज्यादा बढ़ गई थी. लेकिन इतने सालों बाद अब फिर से मुजफ्फरनगर को यूपी की सियासत की धुरी बनाने का काम किया जा रहा है. जाट-मुस्लिम अगर एक हो गए तो इससे सबसे ज्यादा फायदा विपक्ष को पश्चिमी यूपी के सीटों पर मिलेगा. किसान नेता राकेश टिकैत भी पश्चिमी यूपी से ही आते हैं.
जिस तरह से वो इस मंच का इस्तेमाल यूपी की राजनीति के लिए कर रहे हैं, क्या इससे यूपी की सियासत में कुछ बदलने जा रहा है? यूपी में बीजेपी इसके विकल्प के रूप में किसकी तलाश करेगी? अगर ये एक हो गए तो कितने सीटों पर इनका दबदबा होगा? जाट और मुस्लिम को एक कर अपने पाले में लाने के लिए राष्ट्रीय लोक दल (RLD) और समाजवादी पार्टी ने भाईचारा सम्मेलन की शुरुआत की है, जिसका ऐलान RLD अध्यक्ष जयंत चौधरी ने हाल ही में किया था. RLD मुजफ्फरनगर के खतौनी में इसका आयोजन भी कर चुकी है.
क्या सच में जाट और मुसलमान एक हो पाएंगे?
यूपी में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी पार्टियां अपने कोर वोटर को साधने और उसे साथ लाने की कोशिश में जुट गई हैं. कभी यूपी में जाट और मुस्लिम वोट पर अपना वर्चस्व रखने वाली पार्टी आरएलडी आज उस हाशिए पर आ खड़ी हो गई है, जहां से उसे वापस से अपना वोटबैंक हासिल करने में भाईचारा सम्मेलन की शुरुआत करनी पड़ रही है. आरएलडी और समाजवादी पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में साथ लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. बता दें कि जिस पार्टी के साथ गठबंधन कर आरएलडी जाट-मुस्लिम को एक करने में जुटी है. उसी के शासन काल में इसने अपने कोर वोटर खोए थे.
दरअसल, 2013 में जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब मुजफ्फरनगर में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे. जिसने हिंदू-मुस्लिम के बीच ऐसी खाई पैदा हुई कि राष्ट्रीय लोक दल शिखर से शून्य की तरफ चला गया. और इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ. 2013 के बाद से यूपी में हुए सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जाट का भरपूर समर्थन मिला. और मुसलमान का वोट कई पार्टियों में बंट गया.
यूपी में मुसलमानों के हक को लेकर अपनी सियासी जमीन तलाशने निकले असदुद्दीन ओवैसी की अगुआई वाली पार्टी एआईएमआईएम भी जिस तरीके से सक्रिय दिख रही है. उससे मुस्लिमों का वोट एक और हिस्से में बंट सकता है. बिहार में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद वो यूपी में भी मुसलमानों को साधने में जुटी है. मुसलमानों के पक्ष में जिस तरह से मुखर होकर ओवैसी बयान देते हैं उसकी तुलना में अन्य पार्टी के नेता नहीं देते हैं. क्योंकि उन्हें हिंदू वोटबैंक पर भी पकड़ बनानी होती है.
यूपी में कितने फीसदी जाट और मु्स्लिम?
यूपी का जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी में जाटों की जनसंख्या लगभग 17 फीसदी है. जो यूपी के सभी 403 विधानसभा सीटों में से 77 सीटों पर अपना दबदबा रखते हैं. और इतना ही नहीं जाट समुदाय यूपी के 50 सीटों पर हार जीत तय करता है. वहीं मुस्लिमों के आबादी की बात की जाए तो वेस्टर्न यूपी में उनकी जनसंख्या लगभग 25 फीसदी है. जिसे सीटों के गणित में डिकोड किया जाए तो वो 40 फीसदी सीटों के करीब होगा. यानि कि मुस्लिम यूपी में लगभग 143 सीटों पर अपना दबदबा रखते हैं. जाटों की तरह यूपी में मुस्लिम भी एकजुट होकर किसी एक पार्टी को विधानसभा चुनाव में वोट कर दिए तो वो पार्टी लगभग 73 सीटों पर अपनी जीत आसानी से दर्ज कर सकती है. क्योंकि इन सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी या उससे ज्यादा है. वहीं 70 सीटों पर मुसलमानों की जनसंख्या बीस से तीस फीसदी के बीच है.
अगर हम पिछले विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टियों की बात करें तो 20 से 30 फीसदी वाले 70 सीटों में से समाजवादी पार्टी को 37 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 13 सीटें मिली थीं. राष्ट्रीय लोक दल और कांग्रेस के खातें में 8-8 सीटें आई थीं. वहीं मुस्लिम बहुल्य आबादी वाली सीटों, यानि जहां मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है, एसपी को 35 सीटें मिली थीं तो बीएसपी को 13 सीटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं कांग्रेस और आरएलडी के हिस्से में 6 सीटें आईं थी.
किसान महापंचायत का असर क्या पूरे यूपी में होगा?
किसान आंदोलन का असर शुरू से ही दिल्ली के आसपास के इलाकों तक ही सीमित रहा है. पूर्वांचल का किसान या बुंदेलखंड का किसान इस आंदोलन से कोई वास्ता नहीं रखता है. इसलिए यह कहना कि इस महापंचायत का असर पूरे यूपी में होगा जरूरी नहीं है. हालांकि बीजेपी को पश्चिमी यूपी में जरूर कुछ सीटों पर इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन एक बात यह भी जानने वाली है कि पश्चिमी यूपी में राकेश टिकैत के साथ ज्यादातर जाट और मुस्लिम समुदाय के लोग हैं, वहीं बीजेपी की पकड़ अब भी गैर जाटव दलितों और गैर यादव ओबीसी वर्ग में बरकरार है.
जाट-मुस्लिम एकता से निपटने के लिए बीजेपी कितनी तैयार
पहली बात तो जाट-मुस्लिम एकता विधानसभा चुनाव तक बरकरार रहेगी इस पर कई सवाल हैं. दूसरी बात मुजफ्फरनगर दंगों की चोट ने दोनों समाज के बीच इतनी खाई पैदा कर दी है कि उनका एक साथ आना मुश्किल है. बीजेपी के पास अभी भी राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का तगड़ा हथियार है. पूरे यूपी में फिलहाल विपक्ष की एकता कहीं नहीं दिख रही है. सभी राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जिससे बीजेपी को भरपूर फायदा होगा क्योंकि बीजेपी का कोर वोटबैंक है जो उसके खिलाफ कहीं नहीं जाने वाला है.
राकेश टिकैत ने किसान महापंचायत के मंच से भले ही अल्लाह हू अकबर और हर-हर महादेव के नारे के साथ हिंदू मुस्लिम एकता की बात की, लेकिन मंच पर कोई मुस्लिम नेता नहीं दिखा. दरअसल किसान महापंचायत के मंच से तमाम खापों के नाम लेकर उनके बड़े नेताओं को एक-एक मिनट का समय दिया गया. ताकि वह जनता से मुखातिब हो सकें, जो कहीं ना कहीं जाट एकता के लिए राकेश टिकैत की तरफ से बेहतरीन कदम था.


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