बिहार, बंगाल के बाद यूपी में भी कैसे महिलाओं ने किया खेल, समझिए
यह महिलाओं की राजनीतिक लामबंदी का एक प्रभावी औजार साबित हुआ
यामिनी अय्यर, प्रेसिडेंट, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च.
हमें मोदी पसंद हैं- ये शब्द थे रावत समुदाय की उस महिला के, जो मोहनलालगंज में अपने पति के साथ बैठकर सरकारी योजनाओं से मिलने वाले फायदे हमें गिना रही थी। उसे सरकारी इमदाद के रूप में राशन और गैस मिल रहे थे, साथ ही, नए बने 'ई-श्रम कार्ड' से 1,000 रुपये बहुत जल्द मिलने का वादा किया गया था। दूसरी ओर, उसके पति की राय भी बिल्कुल स्पष्ट थी। बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई की वजह से उसका वोट समाजवादी पार्टी को जाने वाला था। एग्जिट पोल पर यदि विश्वास करें, तो पति-पत्नी की सोच में यह अंतर कोई अपवाद नहीं था।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम हिस्सों में हिंदू महिला मतदाताओं के साथ बातचीत में हमने कुछ ऐसा ही महसूस किया। न सिर्फ घर के महिला व पुरुष सदस्यों की प्राथमिकताओं में हमें अंतर दिखा, बल्कि मोदी के साथ भावनात्मक जुड़ाव व कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलने संबंधी वादे पर उनको भरोसा करते हुए भी हमने देखा। यह विश्वास दिल से किए गए वर्षों की मेहनत से कमाए गए हैं। दरअसल, महिला मतदाताओं के बीच विश्वास जमाने और उनसे संपर्क बनाने की एक कोशिश 2017 की उज्ज्वला योजना थी, जिसके तहत उनमें गैस सिलेंडर मुफ्त में बांटे गए थे। 2022 में यह काम मुफ्त राशन ने किया। कई महिला वोटरों ने बताया कि उन्हें अक्सर पार्टी कार्यकर्ताओं के फोन आते हैं, जो राशन ले आने की बात याद दिलाते हैं।
हालांकि, यह ताकीद महज राशन की नहीं होती थी। मोहनलालगंज में ही एक युवा गृहिणी ने (जिसने इस बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बजाय संभवत: भाजपा को वोट दिया होगा) बताया, 'उनके फोटो हर जगह दिखते हैं'। यानी, लगातार स्मरण करने की इस कवायद ने लाभकारी योजनाओं को लेकर ऐसा माहौल बनाया, जिसमें प्रधानमंत्री की कल्याणकारी छवि और भाजपा के पार्टी काडर की ताकत, दोनों का संगम सुगमता से हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम लोगों का भरण-पोषण करने वाले नेता के रूप में उभरे। यह महिलाओं की राजनीतिक लामबंदी का एक प्रभावी औजार साबित हुआ।