आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्यों बने हुए हैं दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता
मार्निंग कंसल्ट के सर्वेक्षण का एक अन्य पहलू भी उल्लेखनीय है
श्रीराम चौलिया। अमेरिकी आंकड़ा विश्लेषक कंपनी मार्निंग कंसल्ट के एक हालिया जनमत सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। सर्वेक्षण में 71 प्रतिशत भारतीयों ने उनका अनुमोदन किया। वह मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेज लोपेज ओबरादोर से पांच अंक ऊपर रहकर शीर्ष पर रहे। इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी अपने देशवासियों से 60 प्रतिशत अनुमोदन प्राप्त करके तीसरे स्थान पर हैं। उनके पीछे जापान के फुमियो किशिदा (48 प्रतिशत), जर्मनी के ओलाफ शुल्ट्ज (44 प्रतिशत), कनाडा के जस्टिन ट्रूडो (43 प्रतिशत) और अमेरिका के जो बाइडन (43 प्रतिशत) हैं। विश्व के 13 दिग्गज लोकतांत्रिक देशों के शासनाध्यक्षों की सूची में मोदी का अव्वल आना नई उपलब्धि नहीं है। अगस्त 2019 से मार्निंग कंसल्ट ने समय-समय पर ऐसे सर्वेक्षण किए हैं और मोदी हमेशा समकक्षों को पछाड़ते नजर आए हैं। यहां तक कि मई 2021 में जब भारत कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रचंड प्रकोप से त्रस्त था और मोदी की स्वीकार्यता घटकर 63 प्रतिशत हो गई थी, तब भी वह अन्य देशों के नेताओं की तुलना में अधिक लोकप्रिय आंके गए थे। जब किसी सरकार के प्रमुख का न्यूनतम प्रदर्शन ही वैश्विक कसौटी पर सर्वोत्तम हो तो इसका तात्पर्य है कि मोदी हैं तो वाकई मुमकिन है।
मार्निंग कंसल्ट के सर्वेक्षण का एक अन्य पहलू भी उल्लेखनीय है। जिन नेताओं को लेकर यह संस्था जनमत जुटाता है, उनमें मोदी सबसे लंबे समय से सत्ता में हैं। राजनीति शास्त्र की एक अवधारणा के अनुसार जो नेता लंबी अवधि तक सत्तारूढ़ रहता है, उसके खिलाफ जनता में नापसंदगी बढ़ती है। इसके विपरीत करीब साढ़े सात वर्षों से प्रधानमंत्री रहने के बावजूद मोदी लोकप्रिय बने हुए हैं। यह इसलिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि गत बीस वर्षों से वह पहले मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री जैसे उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हैं। जो व्यक्ति दो दशक से ऐसे दायित्व संभाल रहा हो और जनता फिर भी उससे ऊबी न हो तो स्वाभाविक है कि उनमें कुछ विलक्षण क्षमताएं होंगी।
मोदी के राजनीतिक चमत्कार के रहस्य को कई किरदारों के माध्यम से आंका जा सकता है। उनका पहला लुभावना अवतार 'चौकीदार' का है, जिससे करोड़ों भारतीय प्रभावित हैं। जिस देश में रिश्वतखोरी और घपले-घोटाले राजनीति के पर्याय बन गए थे और जहां लोगों में लोकतंत्र के प्रति कुंठा बढ़ रही थी, वहां चौकीदार और 'प्रधान सेवक' के रूप में मोदी के अनुकरणीय व्यवहार और साफ नीयत ने आशाओं का पुनर्जागरण किया।
मार्निंग कंसल्ट के सर्वेक्षण में दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता मेक्सिको के लोपेज ओबरादोर और नरेन्द्र मोदी में कई समानताएं हैं। मसलन दोनों की छवि साफ है और दोनों सादगी एवं ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। ऐसे नेताओं की ईमानदारी यही संदेश देती है कि राजनीति माल बटोरने या अपने वंशजों को समृद्ध करने का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र कल्याण और निर्माण हेतु अथक प्रयास का जरिया है।
मोदी पर भारतीयों के बढ़े भरोसे की एक और वजह है 'प्रेरक अभिभावक' का उनका अवतार। तमाम समस्याओं और चुनौतियों से जूझने वाले विकासशील देश बहुत आकांक्षी भी होते हैं। उन्हें एक खेवनहार की आवश्यकता होती है। मोदी इस भूमिका में खरे उतरते हैं। उद्यमिता और आकांक्षाओं को नए आयाम देने का काम मोदी से बेहतर शायद ही किसी पूर्व प्रधानमंत्री ने किया हो। वह जब किसी मुद्दे पर आह्वान करते हैं तो पूरा देश उसकी पूर्ति में जुट जाता है। निज कल्याण और देश की उन्नति, प्राचीन आध्यात्मिक अस्तित्व और आधुनिक दृष्टिकोण जैसी धारणाओं में अक्सर जो विरोधाभास होता है, मोदी ने देश का अभिभावक बनकर उन्हें सुलझाने का प्रयास किया है। चाहे आंतरिक नीतियां हों या अंतरराष्ट्रीय, मोदी ने उन्हें महान लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ जोड़ दिया है। उनकी पूर्ति के लिए उन्होंने कई संकल्प मंत्र भी दिए। इससे भारत की पुनर्प्रतिष्ठा हुई है।
मोदी का कुशल शासक होना लंबे अर्से से उनके जनसामान्य का हृदय सम्राट बने रहने का तीसरा मुख्य कारक है। जिस दक्षता से वह विभिन्न मंत्रालयों के प्रशासन की बारीकियां सीखते और समझते हैं, नागरिकों तथा अधिकारियों का विश्वास जीतकर व्यवस्थाओं मे सुधार लाने और कठोर निर्णय लेने का जतन करते हैं और चुनावी वादों को यथासमय पूर्ण करते हैं उससे भारतीयों को यह भरोसा मिलता है कि उनका वर्तमान और भविष्य योग्य हाथों में है। कई टिप्पणीकार मानते हैं कि मोदी अद्वितीय इसलिए हैं, क्योंकि समकालीन राजनीति में विपक्षी नेता बहुत ढुलमुल किस्म के हैं।
मोदी की वाकपटुता और सहज भाव से विभिन्न तबकों से संवाद करने की कला निश्चय ही उनके शासक अवतार का एक और मुख्य बिंदु है। मोदी न केवल देश के चहुंमुखी उत्थान की योजनाएं बनाते हैं, बल्कि सच्चे लोकतांत्रिक नेतृत्व का परिचय देते हुए जनता को उनका मर्म समझाकर उनमें उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित कराते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी जिस गर्मजोशी से उन्होंने भारत के सामरिक संबंध मजबूत किए और विश्व में भारत की साख बढ़ाई है, उससे सुशासन में संवाद की अहम भूमिका सिद्ध होती है।
मोदी के निंदक-आलोचक जितना भी झुंझलाएं, परंतु मार्निंग कंसल्ट और अन्य कई सर्वेक्षणों तथा चुनावी परिणामों से स्पष्ट है कि भारत में उपयुक्त नेतृत्व है। नि:संदेह अभी भी भारत में तमाम अपूर्णताएं हैं, परंतु नेतृत्व के मामले में हम सिर ऊंचा रखकर चल सकते हैं।
(लेखक जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)